Friday, 1 August 2025

दरिया सतगुरु भेंटिया ।। श्री दरियाव वाणी


दरिया सतगुरु भेंटिया , जा दिन जन्म सनाथ ।
श्रवना शब्द सुनाय के, मस्तक दीना हाथ।।


❖ शब्दार्थ:

  • दरिया = संत दरियावजी महाराज
  • सतगुरु भेंटिया = सच्चे गुरु से मिलन हुआ
  • जा दिन = जिस दिन
  • जन्म सनाथ = जीवन धन्य हो गया, जन्म सार्थक हुआ
  • श्रवना = कानों द्वारा, श्रवण के माध्यम से
  • शब्द सुनाय = दिव्य वाणी / नाद / सतगुरु का उपदेश
  • मस्तक दीना हाथ = सिर पर कृपा का हाथ रखा, आशीर्वाद दिया

❖ भावार्थ:

संत दरियावजी कहते हैं कि जिस दिन उन्हें सतगुरु का साक्षात्कार हुआ, उसी दिन उनका मानव जन्म सार्थक हो गया। सतगुरु ने जब उनके कानों में दिव्य वाणी (शब्द) सुनाया और माथे पर कृपा का हाथ रखा, तभी से उनका जीवन पूर्ण हो गया।


❖ व्याख्या:

यह दोहा सतगुरु की कृपा और उसके प्रभाव की गहराई को दर्शाता है।
संत दरिया जी बताते हैं कि जीवन के हर पल में भटकने के बाद जब उन्हें सच्चे सतगुरु का साक्षात्कार हुआ, तभी उन्हें असली अर्थ में “मानव जन्म” की सार्थकता समझ में आई।

सतगुरु ने उन्हें:

  • श्रवण के माध्यम से “शब्द” (दिव्य वाणी, नाद, उपदेश) सुनाया — यह “शब्द” आत्मा को झकझोरने वाला, जाग्रत करने वाला होता है।
  • और फिर कृपा का हाथ उनके मस्तक पर रखकर उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ा दिया।

यह अनुभव कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई में उतरने वाला दिव्य मोड़ है, जिससे जीवन ही बदल जाता है।


❖ टिप्पणी:

यह दोहा दर्शाता है कि सतगुरु से मिलना ही असली जन्म है
बिना गुरु के जीवन भटका हुआ रहता है, पर जब सतगुरु मिलता है और अपनी वाणी से आत्मा को झकझोरता है, तब जन्म “सनाथ” हो जाता है — अर्थात वह अब अनाथ नहीं, परमात्मा से जुड़ा हुआ हो जाता है।

“मस्तक दीना हाथ” केवल आशीर्वाद नहीं, बल्कि वह कृपा संचार है जिससे साधक का मन, चित्त और आत्मा सभी रूपांतरित हो जाते हैं।