Monday, 4 August 2025

अन्तर थो बहु जन्म को ।। श्री दरियाव वाणी

अन्तर थो बहु जन्म को , सतगुरु भाँग्यो आय ।

दरिया पति से रूठनो , अब कर प्रीति बनाय ।।


❖ शब्दार्थ:

  • अन्तर = दूरी, विरह
  • थो = था (राजस्थानी / ब्रज शैली में)
  • बहु जन्म को = अनेक जन्मों का
  • सतगुरु भाँग्यो = सतगुरु ने तोड़ दिया / समाप्त कर दिया
  • दरिया = संत दरियावजी महाराज
  • पति से रूठनो = अपने परमपति (परमात्मा, रामजी) से रूठे रहना
  • प्रीति बनाय = प्रेम स्थापित करना, प्रेम-संबंध जोड़ना

❖ भावार्थ:

संत दरियावजी कहते हैं कि हमारे और परमात्मा के बीच की दूरी कोई एक जीवन की नहीं, बल्कि अनेक जन्मों की दूरी है।
यह दूरी सतगुरु की कृपा से ही मिट सकती है
अब जबकि सतगुरु ने वह दूरी समाप्त कर दी है, तो परमात्मा से रूठे रहना उचित नहीं
बल्कि अब हमें उनसे प्रेम और आत्मिक संबंध जोड़ना चाहिए।


❖ व्याख्या:

यह दोहा उस आध्यात्मिक सच्चाई को उजागर करता है, जो अक्सर साधकों की दृष्टि से ओझल रहती है — कि हमारा परमात्मा से जुड़ाव टूटा नहीं है, बस हम भूल गए हैं

  • संत दरिया जी कहते हैं कि यह भूल, यह विरह, यह अन्तराल कोई एक जीवन की नहीं, असंख्य जन्मों की है।
  • इतने दीर्घकाल से परमात्मा से हमारा प्रेम-संबंध टूटा हुआ है
  • लेकिन जब सतगुरु कृपा करते हैं, तो वे उस भूल को भंग कर देते हैं, आत्मा को उसका मूल स्वरूप और परम लक्ष्य याद दिलाते हैं।

संत दरिया आगे कहते हैं कि अब जब सतगुरु ने वह दूरी मिटा दी है, तो अब भी परमात्मा से रूठे रहना, उनसे प्रेम न करना — यह उचित नहीं है।

अब समय है कि हम:

  • रूठे हुए परम पति से प्रीति करें
  • अपने भीतर उस भक्ति, प्रेम और आत्मीयता को जगाएं
  • और उस पवित्र संबंध को फिर से जोड़ें जो आत्मा और परमात्मा के बीच जन्मजात था

❖ टिप्पणी:

यह दोहा हमें याद दिलाता है कि सतगुरु ही वह पुल हैं, जो जीव और परमात्मा के बीच के अनेक जन्मों के विरह को समाप्त करते हैं

मगर केवल दूरी मिटा देना पर्याप्त नहीं — अब हमें स्वयं प्रेम की डोर थामनी होगी, रूठे हुए परमात्मा से मिलन की पहल करनी होगी

यह वाणी एक आत्मिक आह्वान है — कि अब और देरी मत कर, प्रेम में उतर जा, सत्य से जुड़ जा


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