दरिया सतगुरु शब्द सौं , मिट गई खैंचा तान ।
भरम अंधेरा मिट गया, परसा पद निर्वान।।
❖ शब्दार्थ:
- दरिया = संत दरियावजी महाराज
- सतगुरु शब्द सौं = सतगुरु के वचन / उपदेश / दिव्य वाणी से
- खैंचा तान = मन की खींचतान, अंदरूनी द्वंद्व, सांसारिक संघर्ष
- भरम = भ्रम, अज्ञान
- अंधेरा = अज्ञान का अंधकार
- परसा = प्राप्त हुआ, अनुभव हुआ
- पद निर्वान = परमपद, आत्मशांति, मोक्ष, परमात्मा का अनुभव
❖ भावार्थ:
संत दरियावजी कहते हैं कि जब मुझे सतगुरु का वाणी-रूपी उपदेश मिला, तो मन की सारी खींचतान — द्वंद्व, उलझनें, और सांसारिक झंझट — सब मिट गए।
उस वाणी ने मेरे भीतर का अज्ञान और भ्रम का अंधकार दूर कर दिया, और उसी क्षण मुझे परमपद (निर्वाण) का अनुभव हो गया।
❖ व्याख्या:
इस दोहे में सतगुरु वाणी की शक्ति और उसका प्रभाव अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रकट किया गया है।
- संत दरियावजी अपने आत्मिक अनुभव को साझा करते हुए कहते हैं कि जब तक उन्हें सतगुरु का “शब्द” (दिव्य उपदेश, नाम, नाद) प्राप्त नहीं हुआ था, तब तक वे मन के द्वंद्व में उलझे हुए थे — यानी भीतर संसार और आत्मा के बीच खींचतान चल रही थी।
- लेकिन जैसे ही सतगुरु की कृपा से वाणी मिली, उस क्षण सारा अंदरूनी संघर्ष शांत हो गया।
- वह वाणी ऐसी शक्ति लिए थी कि उसने मनोमय और अज्ञानमय अंधकार को मिटा दिया — वह अंधकार जिसमें आत्मा जन्मों से भटक रही थी।
- जब भ्रम मिटता है, तब ही निर्वाण पद, अर्थात शांति, स्थिरता और परमात्मा का अनुभव संभव होता है।
यह वाणी इस बात को सिद्ध करती है कि ज्ञान से अधिक प्रभावशाली होता है सतगुरु का शब्द, क्योंकि वह शब्द केवल विचार नहीं, चेतना का संचार करता है।
❖ टिप्पणी:
यह दोहा उस क्षण का चित्रण है, जब साधक को सतगुरु वाणी का वास्तविक अर्थ भीतर उतरता है।
वह कोई साधारण शिक्षा नहीं होती — वह आत्मा को झकझोर देने वाली, जाग्रति लाने वाली दिव्य चिंगारी होती है।
संत दरियाव जी महाराज का यह अनुभव हमें सिखाता है कि:
- जीवन में जो भीतर का द्वंद्व है, उसका समाधान तर्क से नहीं, सतगुरु वाणी की कृपा से होता है।
- और जब वह कृपा हो जाए, तो भ्रम, अंधकार और भय सब समाप्त हो जाते हैं, और आत्मा को मिलती है शाश्वत शांति — निर्वाण।
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