Thursday, 7 August 2025

दरिया सतगुरु शब्द की ।। श्री दरियाव वाणी


दरिया सतगुरु शब्द की, लागी चोट सुठौड़ ।
चंचल सो निस्चल भया , मिट गई मन की दौड़।।


❖ शब्दार्थ:

  • दरिया = संत दरियावजी महाराज
  • सतगुरु शब्द की = सतगुरु की वाणी / उपदेश / वचन
  • चोट सुठौड़ = सही स्थान पर सीधी और प्रभावशाली चोट
  • चंचल = चपल, इधर-उधर भागने वाला (मन)
  • निश्चल = स्थिर, शांत
  • मन की दौड़ = मन का लगातार भागते रहना — इच्छाएं, कल्पनाएं, भटकाव

❖ भावार्थ:

संत दरियावजी कहते हैं कि सतगुरु की वाणी ने मेरे भीतर सीधी और सटीक चोट मारी,जिसके कारण मेरा चंचल और भटकता हुआ मन स्थिर हो गया,और वह मन की लगातार भागने की दौड़, जो न जाने कितने जन्मों से चल रही थी — वह समाप्त हो गई


❖ व्याख्या:

यह दोहा आत्म-साक्षात्कार की उस गहराई को छूता है जो केवल सतगुरु की कृपा से संभव है।

  • संत दरियावजी बताते हैं कि सतगुरु की वाणी मात्र शब्द नहीं होती — वह ऐसी अंतरात्मा को झकझोरने वाली चोट होती है, जो सीधे चित्त के केंद्र पर पड़ती है।
  • इस “चोट” का अर्थ है — सतगुरु का वह उपदेश या अनुभव जो हमारी अंदर की मूल गलत धारणाओं, वासनाओं और भटकावों को तोड़ देता है।
  • जब वह चोट पड़ती है, तो मन की चंचलता — जो इंद्रियों, विचारों और इच्छाओं के पीछे भाग रही होती है — शांत हो जाती है, और साधक की आत्मा स्थिरता का अनुभव करती है
  • इस स्थिरता में ही प्रेम, भक्ति और आत्मिक शांति की नींव रखी जाती है

यह स्पष्ट संकेत करता है कि मन की दौड़, यानी “यह भी चाहिए, वह भी चाहिए, ये करो, वहां जाओ” — इस अनंत दौड़ का अंत केवल तब होता है जब सतगुरु की कृपा से भीतर जागरण होता है


❖ टिप्पणी:

इस दोहे का केंद्रीय भाव है:
👉 सतगुरु वाणी वह औषधि है जो सीधी आत्मा पर असर करती है
👉 वह मन की अशांत धारा को मोड़कर उसे निश्चल, शांत और प्रेमपूर्ण बना देती है

यह दोहा हमें बताता है कि:

  • केवल बाहरी उपदेश से कुछ नहीं होता,
  • जब वाणी हृदय में लगती है, जब सतगुरु की वाणी भीतर “सुठौड़” चोट करती है, तभी असली परिवर्तन होता है।


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