Saturday 10 May 2014

दरियाव जी महाराज की दिव्या वाणी

दरिया इस संसार में,सुखी एक है संत ।
पिये सुधारस प्रेम से,राम नामनिज तंत ।।


दरिया आत्म मल भरा ,कैसे निर्मल होय ।
साबुन लावे प्रेम का,राम नाम जल धोय ।। 


वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु,कर किरपा अपनायो।
खायो न खूटे चोर न लुटे,दिन-दिन बढ़त सवायो।।


मुझ में राम तुजमे राम,हम सब में राम समाया ।
करलो सभी से प्रेम,जगत में कोई नही पराया ।।


तीन लोक को बीज है ,ररो ममो दोई अंक।
दरिया तन मन अर्प के,पिछे होय निसंक ।।


पंडित ज्ञानी बहु मिले,वेद ज्ञान परवीन !
दरिया ऐसा ना मिला,राम नाम लवलीन !!


दरिया दूजे धर्म से,संसय मिटे न सूल!
राम नाम रटता रहे,सब धर्मो का मूल!!


राम राम सब कोई करे,ठग ठाकर और चोर ।
बिना प्रेम रीझे नही,नागर नन्द किशोर ।।


दरिया नरतन पाय कर,किया चाहें काज ।
राव रंक दोनों तरे,जो बैठे नाम जहाज ।।


दरिया सुमिरे एक राम,एक राम सारे सब काम।


मरना है रहना नही,जा में फेर न सार'
जन दरिया भय मानकर,अपना राम संभार"


दरिया धन वे साधवा,रहे राम लौ लाय!
राम नाम बिन जिव को,काल निरंतर खाय!!


मरना है रहना नही,जा में फेर न सार'
जन दरिया भय मानकर,अपना राम संभार"


दरिया सुमिरे एक राम।
एक राम सारे सब काम।।


दरिया प्रेमी आत्मा,राम नाम धन पाया।
निर्धन था धनवंत हुवा,भुला घर आया।।


गुरु बिन ज्ञान न उपजे,गुरु बिन मिले न भेव।
गुरु बिन संशय न मिटे,जै जै जै गुरुदेव।।


दरिया सांचा सुरमा,अरिदल धाले चूर।
राज थरपिया राम का,नगर बसा भरपूर।।