Wednesday 26 July 2017

7.नाद ब्रह्म मोक्ष प्राप्ति मे हेत

7.नाद ब्रह्म मोक्ष प्राप्ति मे हेतु
नाद ब्रह्म की उपासना मोक्ष प्राप्ति का साधन है । राम नाम का ध्यान योग सहित निरंतर जाप करने से वह अन्तश्चेतना में प्रगट होकर शरीर के भीतर अलौकिक प्रकाश आनन्दरूप में अवतरित (प्रकट) होता है । नाद(आवाज) सर्वव्यापक है । जैसे घर्षण से अग्नि,दधि मंथन से घी प्रकट होता है वैसे ही शवासोश्वास राम नाम जाप से नाद ब्रह्म का प्राकट्य होता है,जैसे-हृदय में नाद (राम शब्द का उच्चारण) प्रेम ज्ञान प्रकाश उत्पन्न करके साधक को आत्मानन्द का अनिर्वचनीय सुख प्रदान करता है नाभि स्थान में, जहाँ सम्पूर्ण शरीर की नाड़ियों का केंद्र बिंदु है, नाद (राम) ध्वनि में अलौकिक आलाप उत्पन्न करके सम्पूर्ण शरीर मे अजपाजाप का आत्मानुभूति-आनन्द अनुभव करता है एवं सही नाद क्रमश:रोम रोम में विचरण करता हुआ साधक को सदा सदा के लिये अजपाजाप में स्थायित्व प्रदान करता है। इस प्रकार यही नाद साधक को इहलोक में अखण्ड सुख तथा परलोक में मोक्ष लाभ की प्राप्ति करवाता है।
नाभि कंवल के भीतर,भंवर करत गुंजार ।
रूप न रेख न वरन है,ऐसा अगम अपार ।।
दरिया नाद प्रकासिया,किया निरंतर बास ।
पार ब्रह्म परसा सही,जह दरसन पावे दास ।।
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6. साधक को कभी भी निराश नहीं होना चाहिये:

6. साधक को कभी भी निराश नहीं होना चाहिये:
साधक को देश भगत की तरह साधना में निरंतर लगे रहना चाहिए । साधना काल मे साधक के जीवन मे स्वयं के पाप कर्म संगठित होकर एक सेना की तरह आक्रमण करके उसे साधना मार्ग से गिराने(भ्रष्ट करने)का प्रयास करते है परन्तु राम का प्रेमी शूरवीर भजनानंदी साधक उस कर्मरूपी सेना से संघर्ष करके अपनी तीव्र साधना शक्ति से उसे परास्त कर देता है । ईश्वर स्मरण,समाज सेवा,देश सेवा जैसे शुभकार्यो में विघ्न आना स्वाभाविक है परन्तु साधक को विघ्नों को देख कर परास्त नही होना चाहिए । सच्चे साधक को केवल प्रतिकूल परिस्थितियों में अविचलित होकर केवल ईश्वर स्मरण में दत्तचित्त होना ही साधक जीवन कसौटी में खरा उतरना है । धन एवं बल से समर्थ होकर असहाय दीन दुखियों पर अत्याचार करना वीरता नही है, अपितु निर्बलों की सहायता करना तथा अपने दुष्कर्मो एवं अविवेक पर विजय प्राप्त करने वाला ही सच्चा शूरवीर है ।
साध सूर का एक अंग,मना न भावे झूठ।
साध न छोड़े राम को,रन में फिरे न पूठ।।
आगे बढ़े फिरे नहीं, यह सूरा की रीत।
तन मन अरपे राम को,सदा रहे अध जीत।।
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5. महापुरुषों का संग ही परम सुख का साधन है :

5. महापुरुषों का संग ही परम सुख का साधन है :
महापुरुषों के चरणों की धूलि से अपने को नहलाये बिना अर्थात महापुरुषों के सत्संग एवं सेवा के बिना केवल तप, यज्ञ,अनुष्ठान ,उपासना आदि किसी भी साधन से यह परमात्मा-ज्ञान प्राप्त नही हो सकता । केवल महापुरुषों के सत्संग से प्राप्त ज्ञान रूपी तलवार से मनुष्य इस लोक में ही अपने पारिवारिक मोह बन्धन को काट डालता है ।
महापुरुषों के सत्संग द्वारा हुए अभ्यास से प्रभु स्मृति बनी रहने के कारण मानव सुगमता से ही संसार सागर को पार करके भगवान को प्राप्त कर लेता है । जैसे शरीर स्वास्थ्य रक्षा के लिए अन्न जल की अति आवश्यकता है । वैसे ही अध्यात्म ज्ञान हेतु आत्मबल व परम शान्ति के लिये सत्संग करना अति आवश्यक है अतः महापुरुषों का संग ही परम सुख का साधन है।
दरिया संगत साध की,
सहजे पलटे अंग।
जैसे संग मजीठ के,
कपड़ा होय सुरंग।।
" सागर के बिखरे मोती"
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"
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4.धन उपार्जन में नहीं इसकी आसक्ति में दोष है :

4.धन उपार्जन में नहीं इसकी आसक्ति में दोष है :
सांसारिक भोग असार है अतः जिसे अज्ञान अंधकार से मुक्त होने की इच्छा हो उसे सांसारिक विषयों में आसक्ति कभी नही करनी चाहिये क्योंकि यह विषयासक्ति धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधक है । इन चारों पुरुषार्थों में  मोक्ष ही श्रेष्ठ माना जाता है ।
धन एवं विषयो का चिन्तन सभी पुरुषार्थो को नष्ट  करने वाले है ।
इनके चिन्तन से मानव ज्ञान विज्ञान से भ्रष्ट होकर पतन के गर्त में गिर जाता है । यदि मानव सत्य प्रयास से धन कमा कर इसका सदुपयोग दरिद्र नारायण की सेवा में करता है तो इस प्रकार के धन के उपार्जन में नही इसकी आसक्ति में दोष है।
झूठी कुल की सम्पदा,
झूठा तन धन धाम।
दरिया साचा देखिया,
साहिब जी का नाम।।
"सागर के बिखरे मोती"
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"
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3. ऐसे आचरण वाले गृहस्थी भी साधु है :

3. ऐसे आचरण वाले गृहस्थी भी साधु है :
मनुष्य गृहस्थ आश्रम में रहकर भी महापुरुषों के सत्संग सान्निध्य से पारिवारिक झंझट से अलग रह सकता है। मनुष्य गृहस्थ आश्रम में रहे और गृहस्थ धर्म के अनुसार सब काम करे, परन्तु उन्हें भगवान के प्रति समर्पित कर दे और महापुरुषों की सेवा करे, अवकाश के अनुसार संत महात्माओं में निवास करे और बारबार श्रद्धा पूर्वक भागवत कथा सुधा का पान करता रहे।
जैसे स्वपन टूट जाने पर मनुष्य स्वपन के सम्बन्धियो से आसक्त नही रहता वैसे ही ज्यों ज्यों सतगुरु संग द्वारा बुद्धि शुद्ध होती है त्यों त्यों शरीर स्त्री,पुत्र,धन आदि की आसक्ति स्वयं छोड़ता चले,क्योकि एक न एक दिन ये सब छूटने वाले ही है।मनुष्य को चाहिए कि वो आवश्यकता के अनुसार घर परिवार शरीर की चिन्ता करे, अधिक नहीं। भीतर से विरक्त रहे,बाहर से रागी के समान लोगों से साधारण मनुष्य जैसा ही व्यवहार करे। ऐसे आचरण वाले गृहस्थी भी साधु है।
हाथ काम मुख राम है,
हिरदे सांची प्रित।
जन दरिया गृही साध की,
यहि उत्तम रीत।।
सतगुरु ज्ञान विचार के,
ताजिये आत्म जंझाल।
दरिया विलंब न कीजिये,
बेगा राम संभाल।।
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2. ईश्वर स्मरण करना ही पूणता को प्राप्त करना ह

2. ईश्वर स्मरण करना ही पूणता को प्राप्त करना है:
इस लोक में मनुष्य का वही जन्म,वही कर्म,वही वाणी और वही मन सफल है जिसके द्वारा ईश्वर स्मरण किया जाय। जिनके द्वारा अपने स्वरूप की प्राप्ति करने वाले श्री हरि को प्राप्त न किया जाय तो देवताओं के समान लम्बी आयु से,शास्त्र ज्ञान से, तप से,वाणी को चतुराई से अनेक प्रकार की बातें याद रखने से एवं इंद्रियों की पटुता से भी मानव जीवन को क्या लाभ ? जिस प्रकार वृक्ष की जड़ो को सींचने से तना, शाखा,उप शाखा आदि सभी का पोषण हो ता है उसी प्रकार ईश्वर भजन से सारे गुण आ जाते है। अतः ईश्वर स्मरण करना ही पूर्णता को प्राप्त करना है।
दरिया नर तन पाय कर,
किया न राम उचार।
बोझ उतारन आइया,
सो ले चले सिर भार।।
लख चौरासी भुगत कर,
मानुष देह पाई।
राम नाम ध्याया नही,
तो चौरासी आई।।
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1.ऐसे लोग भगवद धाम को प्राप्त करते है:

1. ऐसे लोग भगवद धाम को प्राप्त करते है:
बड़ो के प्रति सहनशीलता,छोटो के प्रति दया,सम व्यस्को के प्रति मित्रता तथा समस्त जीवों के प्रति समता का व्यवहार करने से ही ईश्वर प्रसन्न होते है। प्रभु के प्रसन्न होने पर मानव अपने अवगुणों को त्यागकर ईश्वरीय गुणों को धारण करते हुए अंत मे परम मोक्ष को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति अपना जीवन रात दिन प्राणियों के कल्याण के लिए अर्पित करते है तथा जीव मात्र को भगवान (राम) का स्वरूप समझकर उन्हें प्रसन्न रखते है एवं भागवत भगतों को अपना हितेषी समझकर सम्मान पूर्वक उनके कथन व सिद्धान्तों का पालन करते है, ऐसे लोग सुगमता पूर्वक भगवत धाम को प्राप्त कर लेते है।

सुपने का अंग / श्री दरियाव वाणी

सुपने का अंग
अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का सुपने का अंग प्रारंभ

दरिया सोता सकल जग,जागत नाहिं कोय
जागे में फिर जागना, जागा कहिये सोय (1)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सारा जगत सोया हुआ है प्रातःकाल होते ही हम लोग जाग जाते हैं तथा अपनी अपनी क्रिया में रत हो जाते हैं वह जागना नहीं है जागना तो वह है जिसमें योगी परमात्मा के विरह मे जागता है राम राम!

साध जगावे जीव को, मत कोई उट्ठे जाग
जागे फिर सोवे नहीं, जन दरिया बड़ भाग (2)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि संत-महात्मा तो जीवों को जगाते ही रहते हैं परन्तु मती अर्थात जो बुद्धिमान व्यक्ति होता है, वही जाग सकता है इस प्रकार से जो जीव जाग जाने के पश्चात पुनः सोता नहीं है, वह बड़भागी है आगे महाराजश्री कहते हैं कि बड़भागी वही है, जो परमात्मा के चरणों में लगा हुआ है राम राम!

माया मुख जागे सबै, सो सूता कर जान
दरिया जागे ब्रह्म दिश , सो जागा प्रमाण  (3)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो माया के सन्मुख जागा हुआ है , वह वास्तव में सोया हुआ ही है क्योंकि जो है ही नहीं उसे "माया" कहते हैं माया के प्रभाव से मानव जागृत अवस्था में भी अपने शरीर में विद्यमान ब्रह्म को पहचानने में असमर्थ हो रहा है अतः उसी मानव का जागना सार्थक है जो माया के बंधन से मुक्त होकर अपने शरीर में स्थित ब्रह्म का अनुभव कर सके अन्यथा  जागता हुआ संसार भी सोया हुआ ही है राम राम  !

दरिया तो साँची कहै , झूठ मानो कोय
सब जग सुपना नींद में, जान्या जागन होय (4)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मैं सत्य कह रहा हूँ ,झूठ नहीं बोल रहा हूँ यह सारा संसार स्वप्नावस्था की नींद में  सोया हुआ है ।जब जीव को इस संसार से वैराग्य हो जाता है, तब जान लेना चाहिए कि यह जीव जाग गया है केवल  सत्संग, स्वाध्याय, भगवत भजन इत्यादि शुभ कर्म करते रहना ही वास्तव में जागना है राम राम  !

साँख जोग नवधा भक्ति, यह सुपने की रीत
दरिया जागे गुरूमुखी , तत नाम से प्रीत (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सांख्य शास्त्र, योग शास्त्र तथा नौ प्रकार की भक्ति का विधान भी एक स्वप्न के समान  है इनका कोई महत्व नहीं है गुरू के मुख से राम नाम की महिमा समझकर, राम नाम के जाप में लीन रहने वाला ही जागा हुआ हैअन्य सभी सोये हुए हैं राम राम  !

साँख जोग नवधा भक्ति, यह सुपने की रीत
दरिया जागे गुरूमुखी , तत नाम से प्रीत (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सांख्य शास्त्र, योग शास्त्र तथा नौ प्रकार की भक्ति का विधान भी एक स्वप्न के समान  है इनका कोई महत्व नहीं है गुरू के मुख से राम नाम की महिमा समझकर, राम नाम के जाप में लीन रहने वाला ही जागा हुआ हैअन्य सभी सोये हुए हैं राम राम  !

दरिया सतगुरु कृपा कर, शब्द लगाया एक
लागत ही चेतन भया , नेतर खुला अनेक  (6)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि गुरुदेव कृपा करके शिष्य को जगाते हैं उनके एक ही शब्द से शिष्य के सारे ज्ञान के दरवाजे खुल जाते हैं सतगुरु के जगाने पर ऊर्जाशक्ति जागृत होती है तब अनन्त विषयों का ज्ञान हो जाता है - यही अनेक नेत्रों का खुलना है राम राम  !

अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का सुपने का अंग संपूर्ण हुआ राम !

 आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com .

डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241

सुपने का अंग / श्री दरियाव वाणी







हंस उदास का अंग (दरियाव वाणी)