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Thursday, 31 August 2017

अपारख का अंग

अपारख का अंग

अथ श्री  दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का " अपारख का अंग " प्रारंभ । राम !

हीरा हलाहल क्रोड़ का, जा का कौड़ी मौल ।
जन दरिया कीमत बिना, बरतै डाँवाँडोल (1) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि हीरा तो बहुत कीमती तथा करोड़ों रूपयों का है परन्तु जब यह हीरा किसी मूर्ख व्यक्ति के हाथ में आया तो वह हीरे की कीमत नहीं जानने के कारण उसका उपयोग नहीं कर सका । इसी प्रकार परमात्मा की सत्ता होने पर भी परमात्मा का महत्व नहीं जान पाने के कारण आज संसार नरक और चौरासी में जा रहा है । राम राम  !

हीरा लेकर जौहरी, गया गिंवारे देश ।
देखा जिन कंकर कहा, भीतर परख न लेश (2) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि एक बहुत बड़ा जौहरी बहुत ही कीमती हीरा लेकर किन्हीं मूर्खों के गाँव में पहुँचा ।उसने हीरा खोलकर उन्हें दिखाया तो वह मूर्ख कहने लगे कि यह तो  एक चमकीला पत्थर है क्योंकि उन्हें परख नहीं थी । महाराजश्री कहते हैं कि मुझे इस बात का आश्चर्य होता है तथा दुःख भी होता है कि प्रभु की सत्ता  वर्तमान होने पर भी लोग उस सत्ता को स्वीकार करके अपना कल्याण नहीं कर पा रहे हैं । राम राम!

दरिया हीरा क्रोड़ का, कीमत लखै न कोय ।
जबर मिले कोई जौहरी, तब ही पारख होय  (3) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि हीरा तो करोड़ों रुपयों का है परन्तु जब कोई जौहरी मिलता है , तब ही उसकी परीक्षा हो सकती है । इसी प्रकार जिस व्यक्ति के हृदय में भक्ति का अंकुर है वही महापुरुषों को पहचान सकते हैं । राम राम  !

आई पारख चेतन भया, मन दे लीना मोल ।
गाँठ बाँध भीतर धसा, मिट गई डाँवाँडोल (4) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जब परीक्षा हुई, तब उस मूर्ख के हृदय में चेतनता आई तथा उसे हीरे के प्रति लगाव हुआ । तत्पश्चात उसने हीरे को एक  सुरक्षित स्थान पर रखकर ताला लगा दिया तथा करोड़पति बन गया । इसी प्रकार जब मानव को भगवत नाम के महत्व के विषय में ज्ञान हो जाता है, तब वह राम नाम रुपी हीरे संग्रह करके अत्यंत धनवान हो जाता है । राम राम!

कंकर बाँधा गाँठड़ी, कर हीरा का भाव ।
खोला कंकर नीसरा,झूठा यही सुभाव (5) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि आज वर्तमान में मानव समाज की दौड़ केवल अर्थसंग्रह को लेकर हो रही है । रात-दिन एक  करके आज हम यह कंकर ही इकट्ठे कर रहे हैं । परंतु मन में भले ही इन्हें हीरे मान लो परन्तु मरते समय यह सब कंकर हो जायेंगे । इस देव दुर्लभ मानव शरीर की महिमा केवल इसके सदुपयोग से ही है । राम राम!

अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का " अपारख का अंग " संपूर्ण हुआ । राम

आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com .

डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241

Thursday, 1 September 2016

अपारख का अंग (श्री दरियाव वाणी)


हीरा हलाहल क्रोड का,जा की कौडी मौल।
जन दरिया कीमत बिना,बरतै डाँवाडोल॥
हीरा लेकर जौहरी,गया गँवारै देस।
देखा जिन कंकर कहा,भीतर परख न लेस॥
दरिया हीरा क्रोड का,कीमत लखै न कोय।
जबर मिलै कोई जौहरी,तबही पारख होय॥
आई पारख चेतन भया,मन दे लीना मोल।
गाँठ बाँध भीतर धसा,मिट गई डाँवाडोल॥
कंकर बाँधा गाँठडी,कर हीरा का भाव।
खोला कंकर नीसरा,झूठा यही सुभाव॥

Friday, 22 July 2016

अपारख का अंग

अपारख का अंग
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हीरा हलाहल क्रोड का,जा की कौडी मौल।
जन दरिया कीमत बिना,बरतै डाँवाडोल॥
हीरा लेकर जौहरी,गया गँवारै देस।
देखा जिन कंकर कहा,भीतर परख न लेस॥
दरिया हीरा क्रोड का,कीमत लखै न कोय।
जबर मिलै कोई जौहरी,तबही पारख होय॥
आई पारख चेतन भया,मन दे लीना मोल।
गाँठ बाँध भीतर धसा,मिट गई डाँवाडोल॥
कंकर बाँधा गाँठडी,कर हीरा का भाव।
खोला कंकर नीसरा,झूठा यही सुभाव॥