Friday 22 July 2016

अपारख का अंग

अपारख का अंग
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हीरा हलाहल क्रोड का,जा की कौडी मौल।
जन दरिया कीमत बिना,बरतै डाँवाडोल॥
हीरा लेकर जौहरी,गया गँवारै देस।
देखा जिन कंकर कहा,भीतर परख न लेस॥
दरिया हीरा क्रोड का,कीमत लखै न कोय।
जबर मिलै कोई जौहरी,तबही पारख होय॥
आई पारख चेतन भया,मन दे लीना मोल।
गाँठ बाँध भीतर धसा,मिट गई डाँवाडोल॥
कंकर बाँधा गाँठडी,कर हीरा का भाव।
खोला कंकर नीसरा,झूठा यही सुभाव॥

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