संत दरियावजी का जीवन परिचय
जन्म: 1676 ई., द्वारिका पुरी
गुरु: प्रेमदास जी महाराज
संत दरियावजी अपने समय के महान संत, समाज सुधारक और राम भक्ति के प्रचारक थे। उन्होंने कठोर साधना और ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने विचारों का प्रचार किया। उनके उपदेश सरल, गहन और मानवता के लिए प्रेरणादायक हैं।
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संत दरियावजी की शिक्षाएं और विचार
1. गुरु का महत्व
उन्होंने गुरु को सर्वोच्च देवता बताया और कहा कि गुरु भक्ति के माध्यम से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
गुरु की भक्ति और शिक्षाओं पर अमल करना आवश्यक है।
2. राम नाम की महिमा
राम के नाम का जप मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।
उन्होंने राम शब्द को हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बताया:
"रा" – भगवान राम का प्रतीक।
"म" – पैगंबर मुहम्मद का प्रतीक।
3. गृहस्थ जीवन और मोक्ष
उन्होंने कहा कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए गृहस्थ जीवन छोड़ने की आवश्यकता नहीं है।
कपट रहित साधना और राम नाम के जप से गृहस्थ व्यक्ति भी ब्रह्म में लीन हो सकता है।
4. सामाजिक आडंबर और अंधविश्वास का विरोध
संत दरियावजी ने तीर्थ यात्रा, व्रत, उपवास, और मूर्ति पूजा को मोक्ष प्राप्ति के लिए अनावश्यक बताया।
उनका मानना था कि ब्रह्म की प्राप्ति कर्मकांडों से नहीं, बल्कि सच्ची भक्ति और साधना से होती है।
उन्होंने वर्ण व्यवस्था, धार्मिक पाखंड और इंद्रिय सुखों की आलोचना की।
5. राम नाम और ब्रह्मलीनता
उन्होंने राम नाम का निरंतर जप करने और साधना के माध्यम से ब्रह्म में लीन होने का मार्ग बताया।
उनका दृष्टिकोण यह था कि व्यक्ति को सभी सांसारिक भ्रमों से मुक्त होकर आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
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संत दरियावजी का समाज सुधार में योगदान
उन्होंने समाज में व्याप्त रूढ़ियों, धार्मिक पाखंड, और अंधविश्वासों का खुलकर विरोध किया।
उनका उद्देश्य मानवता को एकजुट करना और सच्चे ईश्वर की ओर प्रेरित करना था।
उनके विचारों में समानता, सरलता, और भक्ति का संदेश है।
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निष्कर्ष
संत दरियावजी महाराज ने अपने जीवन और उपदेशों के माध्यम से भक्ति, मानवता, और धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया। उन्होंने राम भक्ति और गुरु महिमा का प्रचार करते हुए समाज में एकता, समानता और सच्चाई की भावना जगाई। उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और मानवता को सही दिशा प्रदान करती हैं।
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