Friday 31 May 2019

भक्ति का प्रभाव

भक्ति का प्रभाव
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भगत के जीवन मे अनेक कष्ट, विघ्न और बाधाए आती रहती है,लेकिन प्रभु समर्पित भगत अपना सारा जीवन प्रभु को सौपकर निश्चिंत हो जाता है । भगति मति मीरा को मारने के लिए राणा ने विष से भरा प्याला भेजा  लेकिन उसने तो अपना तन मन सर्वस्व अपने गिरधर गोपाल की भगति में सोप दिया था अतः प्रभु किरपा से वह विष भी अमृत बन गया । तत्पश्यात उसे शेर और हाथी के सामने भेजा गया लेकिन मीरा की सच्ची भगति भावना से वह मस्त हाथी और शेर भी इतने विनम्र बन गये की उन्होंने भी मीरा के चरणों की पावन धूलि को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया । सच्ची भगति की यही महिमा की उसका सम्मुख हिंसक भी विनम्र बन जाते है ।

"जन दरिया मन उलट जगत सु ,अपना राम संभाल" ।

सागर के बिखरे मोती,,,,
श्री श्री 1008 आचार्य श्री हरिनारायण जी शास्त्री जी

Thursday 30 May 2019

प्रत्येक वस्तु ईश्वर की सम्पति

प्रत्येक वस्तु ईश्वर की सम्पति
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प्रत्येक वस्तु को ईश्वर की सम्पति मानकर मनुष्य की उसका उपयोग करना चाहिए।ईश्वर की सम्पति को अपना मनना हमारी भूल है।जो वस्तु मनुष्य की अपनी नही है और वह उसे अपनी मानता है,तो यह भी एक प्रकार की चोरी है ।जो व्यक्ति अपना सर्वस्व ईश्वर को अर्पित कर देता है , ईश्वर उसे कल्याण का रास्ता स्वयं बता देता है ।
         उपभोग की सभी वस्तुओं को मनुष्य ईश्वर की मानकर अहंकार त्याग दे तो वह उसी क्षण से सुखी बन जाता है। मनुष्य सद्गुरु और परमात्मा से अच्छे सम्बन्ध बनाने का प्रयास तो करता है, लेकिन उसके तुरन्त फल नही मिलने के कारण दुःखी हैओ जाता है । सत्संग और पुण्य से सतगुरु और परमात्मा से निकटता बढ़ जाती है । संसार के लोग गिरे हुओं को गिराते है । जबकि ईश्वर गिरे हुओं को उठाता है । पाप करने वाला ईश्वर की दृष्टि से भी गिर जाता है।

चिन्तन धारा (  रेण पीठाधीश्वर आचार्य श्री श्री 1008 श्री हरिनारायण जी महाराज जी के प्रवचन  )

Wednesday 15 May 2019

श्री श्री 1008 श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज की कुंडलियां

श्री श्री 1008 श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज की कुंडलियां
गुरु वचन तो एक ही कर दे भवजल पार ।
प्रीत सहित आदर करो लहै शब्द उर धार।
लहे शब्द उर धार सार समझी ने जपिये।
हुए जावे दुख दूर भवसागर फेर न पडीये।
दरिया गुरु पारक सही (सो) जामें फेर न सारा।
गुरु वचन तो एक ही कर दे भवजल पार ।।1।।

राम शब्द धारण करें जपे निरंतर सोय।
जन्म जन्म के पाप सब छीन छीन परले होय।
छीन छीन परले होय तास में फेर न सारा।
निगम कहत निज भेद जीव को करत उधारा।
दरिया संसो को नाही जीव परम सुख होय ।
राम शब्द धारण करें जपे निरंतर सोय।।2।।

राम समान मंत्र नहीं सब नामा सिरदार।
जब करत रे अनेक ही जाको छेह न पार।
जाको छेहन पार अधर्मी अनंत उधारै।
पतित भय भव पार निगम निज संत पुकारे।
नाम समो बड़ को नहीं महिमा अगम अपार।
राम समान मंत्र नहीं सब नामा सिरदार।।3।।

दरिया तो सांची कहे जामें फैर न सार ।
राम नाम का भजन बिना किस बिध उतरे पार।
किस बिध उतरे पार सोई जमपुर में जावे ।
किया करम संग साथ भुगतता बहू पिछतावे।
पहली चैतो प्राणियां भजन करो हुशियार।
दरिया तो सांची कहे जामें फैर न सार ।।4।।

दरिया सुमीरे राम को ( धर ) राम नाम विश्वास।
दु:ख सुख मना विसार के रहिये नहि उदास।
रहिये नहि उदास ध्यान उन्हीं को धारो ।
जैसे समुन्दर लहर होय यू सकल पसारो ।
अंक लिखा लिलाट में सो बद घटे ना तास।
दरिया सुमीरे राम को ( धर ) राम नाम विश्वास।।5।।

होनहार सो होत है मिथ्या कदे न होय ।
अंक लिखा लिलाट मे घटबद सके ना कोय।
घटबद सके ना कोय मूरखा सोच विचारों ।
राम धणी करतार तास को बेग चितारों ।
अंत काल वोही संगो सो चित्त चेतन होय।
होनहार सो होत है मिथ्या कदे न होय ।।6।।

दरिया साचि कहत है साचि समझो सोय ।
ज्ञान ध्यान विश्वास बिना भला किस बिध होय ।
भला किस बिध होय राम को रटै जो नाहि ।
इस विध अर्थ सम सार के तन यह वर्था नखोय ।
राम नाम रटै नही भव से पार न होय।
दरिया साचि कहत है साचि समझो सोय ।।7।।

पाप पुण्य यह जीव करे भुगते निश्चय सोय ।
बायो बीज सो खेत में कण निपजेगो वोय ।
कण निप जेगा वोय और कोय निप जे नाहि ।
ताते समझ विचार पाप नहीं करना भाई ।
दरिया तत सार एक नाम है वा सम और न कोई ।
पाप पुण्य यह जीव करे भुगते निश्चय सोय । ।8। ।

टैक धरो निज राम की और टैक दो छोड़।
मन निवरण सिमरण करो करो न कासो जोड ।
करो ना कासो जोड़ आत्मा एक ही जाणे।
राग द्वेष नहीं कोय कोय की निन्दा ठाणे।
एक आसरो सीस धर सकल फ़न्द दे तोड़।
टैक धरो निज राम की और टैक दे छोड़ ।।9।।

शील क्षमो है व्रत नहीं शील प्रदारथ होय।
जाघट राखो शील को विघन लगे नहि कोय।
विघन लगे नहि कोय देवता दरशण कर हे।
उपजे उत्तम ज्ञान सहज भव सागर तिरहे ।
दरिया शील रतन सबते सिरे शील क्षमा नही कोय ।
शील क्षमो है व्रत नहीं शील प्रदारथ होय ।।10।।

रात दिवस जक नहि लहे उद्दम करे हजार ।
दरिया पुर्णराम जी मिले जो उतना सार।
मिले जो उतना सार करम अंक लिखा सो होय ।
भजो दिन उर रात पाया सो लिखा सोहोय।
दरिया समता पकड़ के भजो राम करतार।
रात दिवस जक नहि लहे उद्दम करे हजार ।।11।।

अजगर आशा एक कछुना उद्दम करहे।
राम राय ता जाय उदर वाको भर है।
उदर वाकौ भरहै भूलत वाकों नाहि।
ताते सोच निवार के रख सुरति हरि माहि।
दरिया सब घट जान है सबको उदर भर हे।
अजगर आशा एक कछुना उद्दम कर हे।।12।।

राम नाम सुमरण करे रसना से एक धार।
दरिया रस अमृत झरे जामें फैर न सार ।
जामें फैर न सार करम मध्यम कट जावें।
होवे राम घर राज चोर कोय रहन न पावे।
तत् दरसे दीदार ही रोम-रोम रणकार।
राम राम सुमरण करें रसना से एक धार।।13।।

नाभ नाषिका गगन बिच परम तेज प्रकाश।
बिन बादल अमृत झरे देखत हरि का दास।
देखत हरि का दास कर बिन बाजा बाजे।
देखत ही अदलत सुनतहि हीवडा छाजै ।
दरिया उन पद गम नहि गुरू मुख पावे वास।
नाभ नाषिका गगन बिच परम तेज प्रकाश।।14।।

भेष धार साधू फिरे तीव्र दिखावत त्याग।
लक्षण कहिये चोर का कर नी हंदा काग।
करनि हंदा काग चाल तो हंस बतावे ।
बुग जूं मच्छी खाय कपट कर ध्यान दिखावे।
दरिया कहे वह सन्त नहि अंत पड़ेगी सांग।
भेष धार साधू फिरे तीव्र दिखावत त्याग।।15।।

जो जो मिले सो लालची राम पियासी नाहि।
राम पियासी जो हुये जांके तृष्णा नाहि।
जाके तृष्णा नाहि वो घर में ही गुण गायें।
कह लेवे तीव्र वेराग जगत फिर आस नचावे।
दरिया साध शिरोमणि दरशण किया दुख जाय।
जो जो मिले सो लालची राम पियासी नाहि।।16।।

राम भजन जो जन करे धन अवनी अवतार।
आप तिरे औरों को तारे जपे नाम सत सार।
जपे नाम सत सार धन उन कुल को कहिये ।
टैक सजी निज ज्ञान में उन मुन रहिये।
दरिया सदा रहे आनन्द में उर सेवा हुशियार।
राम भजन जो जन करे धन अवनी अवतार।।17।।

हंस चाल छोडे नाहि कभी काग संग जाय।
पण अपनों साचों रखे चोंच न और बहाय।
चोच न और न बहाय प्राण तज भल ही जावे।
मोती बिना ओर हंस के काम न आवे।
दरिया सांचा साध्वा नाम निरंजन ध्याय।
हंस चाल छोडे नाहि कभी काग संग जाय।।18।।

दरिया के संग प्राणिया भूलो मति गवार।
अन्त समय दु:ख पावसी पड़सि जमकी मार।
पड़सी जमकी मार सहाय कुण करसी तेरी।
विपत्ति पड़ी जब होय भाग सी किन की सैरी।
मिनख देह तज सी परी जामें फैरन सार।
दरिया के संग प्राणिया भूलो मति गवार।।19।।

जग हिसाब त्याग न करों हरि हिसाब कर सोय।
जग हिसाब दु:ख पावसि हरि हिसाब सुख होय ।
हरि हिसाब सुख होय अन्त पण इनसु कामा।
माया मुलक परिवार संग नाहि चाले धामा।
दरिया सब रिता सहि जामें फैर न सार।
जग हिसाब त्याग न करों हरि हिसाब कर सोय।।20।।

हंसा मत सो राखिये बुग संग दे छिटकाय।
संगत हंसा सुख मिले बुग संग नरका जाय।
बुग संग नरका जाय बात ये साचि जानो।
वो चुगता है मंछ मुगता हंस को खानों ।
जन दरिया जाने जगत हंसा बुग बिलगाय।
हंसा मत सो राखिये बुग संग दे छिटकाय।।21।।