Saturday 5 February 2022

सतगुरु दाताश्री गुलाबदास जी महाराज के पत्र:- (4)


-:सतगुरु दाताश्री गुलाबदास जी महाराज के पत्र:- (4)

हम सब अभी जिस लोक में बैठे है उसको मृत्यु लोक कहते है। यहां जिसने जन्म लिया, फिर चाहे उसकी उम्र लाख वर्ष की ही क्यों न हो, उसको जाना ही पड़ेगा। देखो, हम सब कई बार जन्मने मरने के कारण बहुतों के माता, पिता, भाई, बहिन हो चुके है। पिछले जन्म में हमारे अनेक सम्बन्धी थे परन्तु उस सम्बन्ध के समाप्त हो जाने से उनके सुख-दुख से हमारे सुख-दुख पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सुख-दुख स्वार्थ से होते हैं और अब हमारा उन भूतकाल के सम्बन्धियों से कोई स्वार्थ सिद्ध नहीं होता इसलिए उनके सुख-दुख का हमारे सुख-दुख से कोई सम्बन्ध नहीं।
संसार में मनुष्यों का जो एक दूसरे से सम्बन्ध है वह कर्मों के अनुसार है, सो, मनुष्य माता, पिता, पति, भाई बनकर अपना-अपना लेना-देना पूरा कर लेते हैं। अब थोड़ा विचार करके देखो कि इन नकली और नाशवान माता पिता, भाई बहिन के बिछोह में हम कितने दुखी होते हैं जब कि हमारे जन्म-जन्म के पिता, कभी न मरने वाले, नित्य के साथी रामजी के विछोह में तनिक भी दुखी नहीं होते। यदि हम एक बार भी राम के बिलोह में वास्तविक रूप से दुखी हो जाएं तो सदा सर्वदा के लिए जन्म-मरण का दुख मिट जायगा।

सब जीव उस परम पिता की आज्ञा से संसार में कर्मों के अनुसार जन्म लेते हैं और अपनी खोटी-खरी कमाई करके चले जाते हैं। संसार केवल सराय है। थोड़ा विचार करो, कि पति और देवर लड़की के लिये कितने दिन से पति और देवर है ? सगाई हुई जब से। जब वही लड़की पांच सात वर्ष की थी तो ये लोग उसके क्या थे ? कुछ नहीं। बस तो फिर, जो पहले कुछ नहीं थे वे अब भी कुछ नहीं है। बीच में कुछ समय के लिए स्वप्नवत कुछ सम्बन्ध सा हो गया था। वह नाता टूटने पर कोई किसी का नहीं। इसके विपरीत रामजी का नाता अजर-अमर है और सदा एक सा रहने वाला है। जो रामजी से नाता जोड़ लेता है वह भी अजर अमर हो जाता है। भगवान जिस दशा में रखते हैं उसी में खुशी से रहना चाहिए क्योंकि हम उसके कार्य को समझ नहीं सकते। न जाने हमारे लिए वह क्या ठीक समझता है। हमारा काम यह है कि हम, सदा-सोहागिन मीरा की तरह अपने अजर-अमर वर, राम के साथ प्रेम सगाई करके उसी की गोद में जा बैठे।
रामजी सदा ही प्रेम के ग्राहक है। प्रेमी भक्तों का माहेरा भरते है रथ हांकते हैं, पैर धोते हैं, और संसार में कोई काम नहीं जो रामजी अपने भक्त के लिये नहीं करते। बस, जब हमारा ऐसा पिता है तो हम दुखी क्यों होते हैं ? इसलिए कि हम समझते नहीं। रामजी तुम्हारे पास ही है, बस, पकड़ लो उनका हाथ और रो-रो कर जो चाहो मांग लो। परन्तु सावधान, सत्य और अविनाशी वस्तु मांगना नहीं तो नाशवान वस्तु नष्ट होने पर अभी की तरह फिर रोना पड़ेगा। सच्ची और नाशरहित वस्तु तो स्वयं राम ही हैं। कहीं भूल कर भी तुमने दूसरी वस्तु मांग ली तो रामजी तुमको वह वस्तु देकर स्वयं तुम से दूर रह जायेंगे। बड़ा आश्चर्य है कि राम के रहते हम दुखी है। उनसे बातें करो, वे तुम्हारी सब सुनेंगे और मन लगा कर सुनेंगे और सब इन्तेजाम खुद करेंगे। परन्तु कोई सुनाने वाला हो तब तो ? सब लोग जगत को अपना दुख सुनाते फिरते हैं परन्तु जगपति को कोई नहीं सुनाता। जगत तो बेचारा स्वयं दुखी है। जगतपति रामजी को एक बार प्रहलाद की तरह पुकारों, ध्रुव की तरह पुकारो, मीरा की तरह पुकारो, । इनका राम से सम्बन्ध था वही सम्बन्ध राम से हमारा भी है। वह है झक मारकर सुनेगा, नाचेगा, लटके करेगा, परन्तु कोई नचाने वाला हो तब तो। बस, अब समझ रखो कि तुम रामजी की गोद में हो। वह जो कुछ करता है हमारे लिए ठीक करता है। हम उसके काम को समझते नहीं इसलिए दुखी होते हैं। यह भूल हमारी है कि हम उसके काम में खोट निकालते हैं। तुम उसकी गोद में बैठे हो, बल्कि उसके पेट में बैठे हो परन्तु ऐसा न मानने से दुखी हो । मानली तो तुम सुखी बन जाओगे और फिर तुम जगत को भी सुखी बना सकोगे क्योंकि ऐसा करने की शक्ति तुम में आजाएगी। इससे बढ़कर न शान है, न ध्यान है। राम मंत्र भगवान को नचाने का उपाय है। भजन-भरोसा रखो। राम राम

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