Tuesday 18 October 2022

अथ घट प्रचा को प्रसंग

अथ घट प्रचा को प्रसंग

इस प्रसङ्ग में ध्यान योग साधना का प्रायोगिक विशद वर्णन रसना कण्ठ हृदय में शब्द की अद्भुत लीला व नाभी पताल में सुरत शब्द योग से अद्भुत चमत्कार का होना शब्द का बंकनाल में चलकर त्रिकूटी में जाना और वहाँ पर शब्द कृपा का प्रत्यक्ष (भीतर की) आँखों के दर्शन करना एवं शब्द का ब्रह्मरन्ध्र में पहुँचना व कई प्रकार वाद्यों का सुनना व पूर्ण आनन्दका अनुभव करना और सत्गुरु प्रेमदासजी महाराज का प्रसन्न होना।

रसणा हिरदे नाभ काम गढ जीता भारी । 
मूल चक्र कुं वंद भेद पायो इदकारी ॥ 
लांघ्या ओघट घाट मेर होय मारग लागा। 
चढ्या चिकुटी तगत, अघट सिव दाना बागा ॥ 
वरस एक रख मास, दास काया गढ जीता। 
मिल्या ब्रह्म सुं जाय, मंड में भया वदीता ॥ 
घुरया नाद घण घोर, भेर मुरली धुन बाजे । 
विन बादल तां बीज, घोर गन अमर गाजे ॥
वरसै जिर मिर मैह, चलै अगम जल धारा । 
नाल खाल धहचाल, हरया वन भार अडारा ॥ 
बोले चातग मोर टहु का कोयल देवे। 
कंवला पोप केतकी फुली, भंवर माह सुख लेवे ॥ 
गङ्ग जमुन बह उलट, सुरसरी बहे अकारी। 
अला पींगला नार, सुखमण गावे प्यारी ॥ 
पग बिन पातर खेल, नाच नो विद को ल्यावे । 
बहत्तर नार हजार, राग रंग विन मुख गावे ॥ 
जल में लागी लाय, चहुं दिस ज्वाला छुटी । 
चढा धरण आकास, बात इचरज की दीठी ॥ 
जिल मिल जोत अपार, अनन्त ससि भाव प्रकासा । 
मान सरोवर मंझ हंस जहां करे बीलासा ॥ 
बांज नार के एक पुरुष बिन बालक हुआ। 
गुरगडी मरदंग ताल, बीण बंजर सहनाई ॥ 
गूगर की जंणकार, श्री मंडल इद काई । 
वरगु भृंगल ढोल, पूरें कर नाल नागारो ॥ 
मोर चंग सितार, नुपंग बाजै इकतारो । 
रणसींगो ततकार सार, सत सबद उचारो॥ 
घड़ियावल की ठोर, तबला ता संग घंट कारा। 
गैरो गुरे तंदूर, मजीरा रूण जुण बाजे ॥
अल गोजां की टेर सुणी तरबीणी छाजे ।
घुरे गिगन में घूंस करे नागण की ललकारा। 
सिव शक्ति असथान सूणी रुरु रुम कारा ॥ 
बाजे चेंघर वाब घोर कमा कम व्रह चलावे । 
इत पुगी सुरवीण राग सारंगी गावे ॥ 
बाजे अनहद तूर, होय झालर झणकारा । 
धजा फरूके सुन संख, बोल इक धारा ॥ 
बाजा राग छतीस, जंत्र ही जंत्र बजावे | 
रोम रोम जणकार, सबद धुन मंगल गावे ॥ 
बिन देवल जहां देव, पिंड विन सेवा करहे। 
अनंत जुगां का संत, ध्यान धुन अनहद धरहे ॥ 
देख्या चैन अनंत, गुरां कुं बात सुणाई ।
घमंड भया घट माही, संत घर बटी बधाई ॥ 
कहयो प्रेम महाराज, सुणो जन दरिया दासा। 
बणी बात बहै बींत, ब्रह्म की जोत प्रकासा ॥ 
करो भजन भरपूर, भगत केवल इदकारी । 
सिव ब्रह्मा अरु विश्नु, सेस लग मेमा भारी॥ 
रात दिवस नित नेम, भजन को गाढ समायो । 
अवगत अगम अनाद, भगत को बिड़द बधायो ॥

अथ समाद को प्रसंग

अथ समाद को प्रसंग 

इस प्रसंग में दरिया महाप्रभु के सुरत शब्द योग से समाधि लगना शरीर जड़वत् होना निश्चेष्ट शरीर को देखकर शिष्यों को चिन्ता होना व जैन मन्दिर में जाकर महावीर भगवान् की समाधियुक्त मूर्त को देखकर धैर्यधारण करना समाधि-विराम के बाद दरिया महाप्रभु द्वारा शिष्यों को ध्यान योग कृपा चमत्कार बताना।

पहल प्रथम दरियाव, आप समाद लगाइ । 
बई नग्र में बात, दुनी सब देखण आई ॥ 
सोच करे नर नार, और षड दर्शन उभा । 
पड़ी हाक बाजार, भया एक बड़ा अचंभा ॥ 
रामस्नेही जके सभा सब संगत बैठी। 
सुणी न कानां बात, नई कोई आंख्या दिठी ॥ 
या गत लषी न जाई, करे इचरज जो सारा। 
हंस गयो हर पास, पिये इमृत रस धारा ॥ 
बधी कला करतूत, देह को नूर सवायो । 
सरद पुन्यूं की रात, चंद ज्यूं निरमल थायो ॥ 
खुल्या कँवल ज्यूं नेण, साम रेखा सब न्हासत । 
शुक्ल वरण चष रूप, तेज उडगण ज्यूं भ्यासत ॥ 
नष चष यह सेनाण, तुचा सो वरण विराजे। 
ता घट लोही न मांस, प्राण सुन सेवा साजे ॥
आसण वजर विग्यान, धुन धू ज्यूं धारयो । 
कुशालचंद कुशवगत, उगत कर अर्थ विचारयो ।
अग्याकार इदकार बीरबल, अकल उपाई। 
गया दोड़ ततकाल, ज्यांन का मन्दिर मांही ॥ 
ब्राजमान मूरत, पदम आसण इदकारी । 
उनमुन मुद्रा ध्यान, दिसट नासा धुन भारी॥ 
मूरत को आकार, देख पाछा घर आया । 
डूंगर पूर्णदास जनां कुं भेद बताया ।।
सोच करो मत कोय, सुन समाद कहीजे । 
नामदेव कबीर तायें के आह सुणीजे ॥ 
निमसकार कर जोड़, आण परसाद चढाया। 
सब सिख करे उछाहें, सतगुरु पुरा पाया ॥ 
परबुधी परवीण, परष समाद बताई । 
जन दरिया के सिख, सोभ नारद ज्यूं पाई ॥ 
सवा पोहर समाद, दास दरिया के लागी। 
निरभो पद निरवाण, चढया अणभो अणरागी ॥ 
सुन मंडल में जाय, आप पाछा फिर आया। 
तेज पुंज का नूर, प्रथम लीलाट झलकाया ॥
चेतन भया सरीर, इन्द्र घट भीतर खोल्या । 
क्रिपा कर म्हाराज, बेण इम्रत का बोल्या ॥
प्रसन करी म्हाराज, सिषा कुं सबद सुणाया। 
म्हाने लागी समाद, कुणी जन भेद बताया ॥
धिन बड भागी सिष, गुरु सुं अरजी किनी। 
भई आपकी मेहर, बात मैं दिल में चिनी ॥
भगवंत पारस नाथ, जिनां की मूरत देखी। 
आसण इडग अडोल, सुरत नहचल धुन पेषी ॥
निरष परख आकार, आप के चरणां लागो । 
मुख सुं कही समाद, भरम सारों को भागो ॥
परसण भये म्हाराज, आप शिष पर राजी । 
कुरसी बंद कुशाल, चाकरी आछी साजी ॥
अकल बजीर मन कुवास, बुध विचक्षण ज्यूं भारी । 
जन दरिया के सिख, ग्यांन पूरण इदकारी ॥
भगतण भजन प्रगट्या, लागी सुन समाद । 
पदमा जन दरियाव की, महिमा अगम अगाद ॥

अथ महालक्ष्मी को प्रसंग

अथ महालक्ष्मी को प्रसंग

इस प्रसंग में दरिया महाप्रभु के भजन ध्यान पूर्ण स्थिति को देखकर स्वर्ण कटोरा लेकर महालक्ष्मी द्वारा अमृत पान करना।

क्रिपा करी महाराज, आप महा लिछमी आया। 
किनक कटोरो हाथ, भरयो इमृत को लाया ।।

इस्यो तेज अद्भुत रूप मायो को भारी । 
अंछण देवी आप, त्रिगुण ईश्वर अवतारी ॥ 

कहयो आप महाराज, पीयो जन दरिया दासा ।
 इम्रत रस इदकार, ग्यान केवल परकासा ॥ 

पीयो ध्रुव प्रहलाद, नाम कबीर ज्यूलावे । 
आप संगत म्हाराज, दास दरियाव ने पावे ॥ 

नमसकार कर जोड़, हाथ दोन्यो में लीनो । 
एक घूंट भर पीयो, भेर दूजो नहीं पीनो ॥

आरो कठण कखर, सुदारस पीयो न जाइ। 
पीवे विरला संत, सुन समाध लगाई ॥

पूथा चौथे देश, जहां कोई दिवस न राती। 
आप ही उपर आप, अखंडत जागे जोती ॥

जगे अखंडत जोत, छोत कोइ लागे नाही । 
जन दरिया महाराज, मिल्या केवल पद माही ॥

Monday 17 October 2022

मदली खांन पठाण को प्रसंग

मदली खांन पठाण को प्रसंग

इस प्रसंग में दिल्ली बादशाह के दीवान मदलीखान पठाण द्वारा पानीपत की दूसरी लड़ाई में घायल स्थिति में आचार्य सतगुरु दरियाव महाराज की प्रार्थना करना । प्रार्थना सुनकर आचार्य द्वारा स्वयं शिष्य की रक्षा करना।

पाणीपत असतान, मंड्यो एक भारत भारी । 
फौजा का घमसाण, बात सुणज्यो नर नारी ॥ 
कल हलीया के काण, आवड्या आमा सामा। 
भया रण संगराम, धुरया रणजीत धमामा ॥ 
मदली षाण पठान, लड़यो सांवत सूरो। 
बण्यो साम को काम, पड्यो लोहरिण पूरो ।। 
रोम रोम नरब चख, पीड़ घट भीतर भारी । 
चेतन भयो शरीर, आप मुंह गिरा उचारी ॥ 
हो हो जन दरियाव, दया कर आप पधारो । 
मेटो तन की पीड़, विपत सब दूर निवारो ॥ 
सुणी टेर भगवान, दास के बदले आया। 
धर दरिया को रूप, घाव दुख दूर गमाया ॥

दोहा

चेतन भयो शरीर, नीकस्यो बारे बाण । 
जन दरिया परताप सु, बात परगट जुग जाण ॥

अथ माया को प्रसंग

अथ माया को प्रसंग

सतरा से के सम्वत, चोतरो वरस वदितो। 
पांच सेर को धान, भाव जब मूंगो विगतो ।।

एक दिन आकास भई, दरिया कूं वाणी । 
अंछाया रूपी आप, बोलिया सारंग प्राणी ॥

तीन सबद की वाज, धान की आग्या दीनी । 
मान मान दरियाव, क्रिपा तोय पर कीनी ॥

माया ईश्वर आप, त्रिगुणी रूप दिखाया। 
जन दरिया म्हाराज, भेद अन्तर में पाया ॥

प्रसन करी म्हाराज, शिख सुं गिरा उाचरी । 
भयो अचंभो मोय, विघन मायो को भारी ॥

धान लीयो ते मोल, जाय पाछो फिर दीजे । 
राम भरोसो राख, राम को सिवरण कीजे ॥

राखण हारा, राम, कहो कैसी विद मारे। 
रोम रोम रमतीत, आप व्यापग है सारे । 

धन बड भागी सिष, गुरां को कहीयो जकीनो। 
नफा सहत ले धान, जाय वणिया ने दीनो ॥ 

दिन दस को ले धान, घरे जीमण ने राख्यो । 
कुशालचंद ले आप, जाय कोठी में नाख्यो ।

भाव प्रेम परसाद, आप नित भोजन पायो । 
षट् मास लग रहयो, दिन दिन वधयो सवायो ॥ 

आठ सिद नो नीद, सदा संतन के आगे । 
और विघन की कूंण, देख दूरां सुं भागे ॥ 

काम धेनु कल्प छ, पदार्थ मिठा चितामण । 
च्यार मुगत वैकुंठ, नहीं अंछाया सपनायण ॥


दोहा

छाडन माया संग रहे, नित नेम हजुरी । 
पकड़ विघन उठावे, जाय सो कोसां दूरी ॥ 

जैसा राम दयाल, साय सन्तन की करहे। 
मेटे विघन अनेक, आण अवतारज धरहै ॥

अथ नारदजी को प्रसंग

अथ नारदजी को प्रसंग

इस प्रसंग में महाविष्णु की प्रेरणा पाकर दरिया महाप्रभु को नारद मुनी द्वारा दर्शन व सभी देवता लक्ष्मी भगवान की कृपा का वर्णन व दरियाव महाराज का नारदजी द्वारा भगवान को प्रणाम व कृपा बनायें रखने की प्रार्थना | नारद मुनि द्वारा भगवान को सारा वृत अवगत कराना भगवान द्वारा दरिया महाप्रभु को आशीर्वाद देना।

तब नारद होय प्रसण, दरस दीदार दिखाया। 
कर क्रिपा महाराज, मिलण दरिया सु आया ॥ 
प्रसन करी म्हाराज, श्रीमुख कथा उचारी। 
सुरगादिक वैंकुंठ, अनंत सोभा है भारी ।। 
आप विसन भगवान, भगत की महमा गावे।
सिव ब्रह्मा अरु सेस, हस मुख प्रेम बढावे ॥ 
सनकादिक रिषराय, पारषत सदा चितारे । 
म्हा लिखमी म्हाराज, ध्यान हिरदा में धारे ॥ 
भगत तेज परताप, इसी विध सोभा छाजे । 
च्यार मुगत वैंकुंठ, ताही में जाय विराजे ॥ 
कहयो दास दरियाव, सुणो रिष नारद सामी। 
सिव ब्रह्मा अरु सेस विस्न है अंतर जामी ॥ 
हूँ तो खानाजाद, सदा चरणां को चेरो। 
ररंकार भरतार, और दूजो नहीं मेरो ॥
तम जावो वैकुंठ, विसन को केज्यो हमारी । 
कहयो दास दरियाव, सदा सरणागत थांरी ॥
जब नारद भगवान, आप वैकुंठ पधारया । 
धिन धिन जन दरियाव, श्रीमुख वचन उचारया ॥

अथ फतारामजी को प्रसंग

अथ फतारामजी को प्रसंग

इस प्रसंग में दरिया महाप्रभु द्वारा ममेरा भाई फतहचंद को यमदूत योनी से बचाना, दरिया प्रभु की कृपा से फतहचंद को भगवत प्राप्ति होना।

फतहराम इदकार, दास दरिया ममेरा का भाई ।
अवगत अवग्या सरूप, जूण जमरां की पाई ॥

एक दिन आया आप, दास दरिया के दरसण ।
रोवे अन्त अघाय, कृपा कर बोल्या परसण ।।

मेरो दुःखी शरीर, आप सुख सागर देवा । 
मेटो जम की जूण, करां चरणां की सेवा ॥

परसण भया महाराज, दया दिल माहीं उपाई। 
करी विश्नु से अरज, जम तें लिया छुड़ाई ॥

एसा समरथ संत, अनंत परचे इंदकारी।
सुणे सबद सत वेण, परम सुख उपजे भारी ॥

एसी हरकी भगत, जगत कोई जाणे नाही । 
कुल कारण नहीं कोय, मिले हरजन हरिमाही ॥

अथ समनजी को प्रसंग

अथ समनजी को प्रसंग

इस प्रसंग में आचार्य श्री दरियाव जी महाप्रभु द्वारा पागल कुत्ता से काटा हुआ समन महात्मा की रक्षा करना।

सहर सलेमा बाज, संमन जन आप विराज्या ।
जन दरिया परताप, भजन सिवरण भल साज्या ॥

एक दिन भयो विजोग, बीठले लाल लगाई। 
उपज्यो दुःख शरीर, कहण में आवे नाही ॥

घड़ी पहर के माहीं, देह को होतब आयो । 
समन करी पुकार, दास दरिया सुण पायो ॥

दया करी म्हाराज, राहेण सुं आप पधारया ।
सहर सलिमा बाद, शिष कुं जाय उबारया ॥

धन सम्रथ महाराज, क्रपा कर दर्शन दीन्हां । 
मीरां वाली बात, जहर अमृत कर लीन्हां ॥

करी पुत्र की साह, प्रगट अब सुणज्यो साखी। 
भरगु सुकर जिसी, राम परतग्या राखी ॥

Friday 14 October 2022

अथ फतैचंदजी भोजन को प्रसंग

अथ फतैचंदजी भोजन को प्रसंग

इस प्रसंग में मेड़ता सिटी के सेवक (ब्राह्मण) फतहचन्द का आचार्य महाप्रभु को निमंत्रण देना। प्रेम के कारण से भूल से भोजन में तेल परोसना महाराज की कृपा से तेल का घृत बन जाना।

फतैचंद भोजग मेड़ते रहे वड भागी । 
जन की प्रीत सवाय, दास दरिया सुं लागी ॥
करी एक दिन अरज, आप परसाद करीजे । 
पूरब प्रीत पिछाण, मोय गिणती में लीजे ॥ 
धिन मेरो वड भाग, आप की कृपा भारी। 
आय मिल्यो संजोग, वीदर घर किसन मुरारी ।।
 राजा के प्रतीत, आप की मन में साची । 
 लिया जद आराध, रहण सुं कीनी आछी ।। 
 ओरां को परसाद, राज सूं करी मनाई। 
 ओ मोसर ओ डाव, फेर असो नहीं आई ।। 
 फतेचंद कर जोङ, कहयो सादां के आगे । 
 आप करो परसाद, भाग भल मेरो जागे ॥
  सुणे बात दरबार, करे राजा तकरारी । 
  धन समर्थ म्हाराज, दया दिल देखो म्हारी ॥
   आग्या दीवी म्हाराज, आप किरपा कर भारी । 
   कर बेगो परसाद, होय हाजर सो तियारी ॥ 
   प्रेम मगन मतवाला, ईस्यो मन माही हुँस्यो। 
   भयो तियार परसाद, तेल जब आण परुस्या ॥ 
   जीम जूट म्हाराज, आप तब चलु कराई। 
   फतेचंद ने बात याद, जब मन में आई ॥ 
   हो हो किरपा निधान, जलम मेरो मैं हारयो । 
   धिरत जाण म्हाराज, तेल भोजन में डारयो ॥
   ईस्यो दोष अपराध, कोहो कैसी विध जावे। 
   बार बार सेवग, आप मन में पिसतावे ।।
    कहयो दास दरियाव, प्रीत साधां सुंथारी। 
    आज परसाद स्वाद, बोत विध लागो भारी ॥ 
    भयो तेल को श्रीत, रामजी आछी कीनी।
     आद अंत म्हाराज, सोब संता ने दीनी ॥ 
     बालमीत पंच ग्रास, लिया पांडवा के द्वारे। 
     वागो संख पचाण, प्रगट सब संत पुकारे ॥ 
     कीसन देव म्हाराज, भगत की सिपत बधारी । 
     पंडवां के जिग माहिं, करी अत महिमा भारी ॥ 
     साग बीदर घर पाय, प्रीत का छूत अरोग्या । 
     तंदुल सुदामा दिया, महल कंचन का होग्या ॥
      इस्यो संत गोग्रास, ताय सम तुले न कोई । 
      तीन लोक वैकुंठ, ब्रह्मा लग प्रकट होई ॥ 
      सिव ब्रह्मा अरु सेस, आहा नारायण भाखी।
       भगवंत श्रीमद्, फेर रामायण साषी ॥

दोहा

सानभद्र को जीव थो, पेलै जन्म मेघवाल । 
आहार दियो भगवंत को, तूठा दीन दयाल ॥ 
धन व निंद सदा, कंचन जड़त अवास। 
जनम लियो साह गोमंद घर, सेनक नगरी वास ॥

अथ राजा विजेसिंघजी को प्रसंग

अथ राजा विजेसिंघजी को प्रसंग

इस प्रसंग में श्री विजय सिंह जी का सेना समेत मेड़ता सिटी में ठहरना व आचार्य श्री को बुलाकर सेवा करना और आचार्य महाप्रभु की आज्ञा मानकर मेड़ता परगना में कर माफ करना ।

विजेपाल भोपाल, भगत नोदा इदकारी। 
जन दरिया सुं प्रीत, रीत आरत उर धारी ॥
मोरधज अम्रीक, परीखत जैसो राजा। 
जोधाणा नाथ सुनाथ, चले दरसण के काजा ॥ 
च्यार सीरायत साथ, मीसल आठु ही लारे । 
दर कूचां घरबार, मेड़ते आप पधारया ।।
भाव प्रेम जग्यास, साध लावो एक छिन में। 
में दरसण को प्यास, धार आयो हूँ मन में । 
गंगादास नाजर, दूसरो गोरधन खींची। 
चढया वेग तत काल, बात सो कीनी ऊंची ॥ 
राहेण नगर मंजार, लेण साधांनु आया। 
भाव प्रेम परसाद, भेट नारेल चढ़ाया ॥ 
अरज करी कर जोड़, मेड़ते आप पधारो । 
हो करुणा का भवन, चरण राजा घर धारो ॥ 
रथ बैठे दरियाव, मेड़ते आप सिधाया । 
नरपत कर उछाव, मोतीयां थाल बंदाया ॥ 
रहया दिन पचीस, मेड़ते नगर मंजारा । 
राजा परजा रेत, दरसण मिल आया सारा ॥ 
अयेसो नाम परताप, नरपत सो चरणां लागा। 
सुण्या ग्यान बहैबीत, भरम सारा का भागा ॥ 
तब राजा बीजे पाल, भेट पूजा विसतारी। 
लाग बाग सब माफ, सही कर दीनी सारी ॥ 
बीजेपाल नरपत राय, मेड़ते डेरा दीना । 
जन दरियां का दरसण, परसण होय परगट कीना ॥
नित नेम परसाद, राज सुं थाल पुगावे । 
जन दरिया म्हाराज, आप जब भोजन पावे ॥ 
वालमीत ज्यूं प्रगट, ईस्या महाराज कहीजे । 
कहयो राजा विजेपाल, नफो पाडवां ज्यूं लीजे ॥ 
ज्यां जिम्या जिग मांह, संख जब प्रगड वागो । 
च्यार वरण आश्रम, भरम सारो को भागो ॥ 
कुल को कारण नाहीं, नांव की महिमा भारी। 
भारत में कहयो ब्यास, गीता में किशन मुरारी ॥ 
औ नरपत के स्वाल, वचन अत बोले गाडा । 
हाथ जोड़ आधीन, दीन होय आपै ठाडा ॥

दोहा

संत प्रगट दरियावजी मुरधर देश दयाल । 
तां दरसण न्रप उधरया बखतसिंघ व्रीजपाल।।

अथ महिमा को प्रसंग

अथ महिमा को प्रसंग

इस प्रसंग में पद्मदास कृत आचार्य श्री दरिया महाप्रभु की महिमा का वर्णन है।

जन दरिया भगवंत संत प्रगट अवतारी। 
परमानन्द परबुध, अगम की कथा उचारी ॥ 
गिरधर गोविन्द राम, राम राधो भज लीना । 
खेम द्वारका दास, राम भज कारज कीना ॥ 
हरिदास हर भगत, राम ही राम उचारया ।
 रामदास ध्रुराम, राम कहे कारज सारया ॥ 
 तीन पुत्र सीष सात, प्रेम के परगट भारी ।
  तां मध जन दरियाव, बड़ा दीरग इदकारी ॥
   ग्यान ध्यान भरपूर, नूर निरमल सुखदाई। 
   भगत तेज परताप, सुंन समाद लगाई ॥ 
   प्रेमदास परताप, ईस्या परगट जुग सारे । 
   अनंत उधारया जीव, फेर अनंता कुं तारे ॥ 
   असो नाम परताप, दास द्ररिया के भारी। 
   ब्राह्मणछत्री वंस, सुद्र चेला ईदकारी ॥ 
   पूरणदास किसनो बड भागी । 
   सुखराम नानग, सुरत साहिब सुं लागी ॥ 
   भगत करी परवेस, देस मुरधर खंड माहि । 
   च्यारुं सिखां सुजाण, परगट घट व्यापक साही ॥

अथ सरूपचंदजी को प्रसंग


अथ सरूपचंदजी को प्रसंग

इस प्रसंग में इडवा निवासी स्वरूपचन्द जी सुराना (ओसवाल) द्वारा आचार्य श्री दरियाव जी महाप्रभु का दर्शन हेतु रामधाम रेण की ओर गमन करना मार्ग में ग्वाला से गुरुमोक्ष समाचार सुनकर आचार्य श्री वियोग से दुःखी होकर प्राण त्यागना ।

सरूपचंद महाजन, जात सुराणो प्रगट । 
नगर इड़वा माहीं, प्रेम भगता जन गगड़ ||
एक दिन उपज्यो भाव, प्रीत सतगुर सुं लागी । 
होय घोड़े असवार, चल्यो दरसण बड भागी ॥
दोय कोस उनमान, रेण को कांकड़ आयो । 
सांमो मिल्यो ग्वाल, जाण तांको बतलायो ॥
कोहो गुवाल मम साच, बात एक पूछू तौने ।
 जन दरिया का कुसल, प्रसण होय कैजे मोने ।। 
 कहयो गवाल मुख सवाल, हाल मोड़ा क्यूं आया।
  जन दरिया महाराज, आप तो धाम सिधाया ॥ 
  सुण्यो सरवण सबद, देह हंकारे छुटी। 
  पींगला जैसी प्रीत, प्रेम की गागर फूटी ॥ 
  आण मिल्यो संजोग, पुन पूरबलो भारी । 
  मनसा वाचा साच, मिल्या जन देव मुरारी ॥ 
  जन दरिया परताप, परम गत जैसे पाई । 
  सदा काल आनन्द, रहै चरणां के मांई ॥

साखी

पदमा जन दरियाव जी, कलुकाल भगवन्त । 
अवतारां ज्यूं अवद है, मोख गिरामी सन्त ॥ 
मोख मुगत पर लोक में, जाहां निरंजण राम । 
पदमा जन दरियावजी, पूथा केवल धाम ॥ 
केवल मिल केवल हुआ, अन्तर रही न रेख। 
पदमा जन दरियावजी, मिलगा ब्रह्म अलेख ॥ 
एक मेल हिलमिल हुवा, ज्यूं पाणी में लुण। 
पदमा जन दरियावजी, धरे न दूजी जूण ॥
आहा कही गुरदेवजी, सब सन्तन की साख । 
भागवत गीता कहयो, वेद पुराणां के वाख ॥ 
अनंत जीव तिरसी घणा, सत संगत सुख लेह । 
पदमा नाम परतापते, धरे न दूजी देह ॥
 राम मन्त्र है पदम दास, तीहुं लोक सिरताज।
  गिर परबत जल पर तिरया, पसू जूठा गजराज ॥ 
  पसु पंखेरू भूत गत, म्हा क्रम कुल नीच । 
  पदमा नांव परताप ते, तिरग्या बन्दर रीछ ।।
  लीला जन दरियाव की, सुणो सकल घट पूर । 
  सुख संपत नो निधि रहे, आठ सिध हजूर ।।
  लीला जन दरियाव की, पढ सुण करे विचार । 
  ग्यान भगत उर में उदे, भोजल उतरे पार ॥ 
  मो मन सारुं मैं कही, सतगुर के उपगार । 
  जनम जनम का दुःख मिट्या, दरिया के उपकार ॥ 
  पदमा जन दरियाव की, म्हैमा कही न जाय ।
   मो मुख महिमा का कहुं, म्हमा अथंक अथाय ॥ 
   पदमदास महमा कही, जन मोती परताप ।
   तां सुणिया सुख उपजे, कटे जनम जनम के पाप ॥ 
   सिख तो जन दरियाव का, जन मोती महाराज। 
   पदमदास सिर तपे, सरव सुंधारण काज।।
   
दोहा

समत अठारे से इकंतरो, चेत मास सुद जाण।
 तिथ पून्यू गुरवार दिन, हुई लीला परवाण ।।
गुर हरजन कृपा करी, कह्यो लीला ग्रन्थ विचार । 
नर नारी श्रवण करो, उपजे सुख अपार ।। 
आ पदमा की बिनती सुनो सन्त जगदीश । 
घटत बधत मम वचन है, गुना करो बगसीस ॥ 
पदमो बालक आपको, मात पिता गुर राम । 
भुलै चुके ओलबो, माफ करो घण साम ॥
म्हैमा सिध अघाध है, आवे नाहीं अन्त ।
में लघु चिड़कली, पीवे अणी चांच भरत ॥

Wednesday 12 October 2022

अथ भेरु को प्रसंग

अथ भेरु को प्रसंग 

इस प्रसंग में एक बार आचार्य महाप्रभु का मेड़ता सिटी से रामधाम रेण पधारना अंधेरी रात को देखकर भेरु द्वारा हाथ में मुसाल (प्रकाश) लेकर आचार्य श्री दरियावजी महाराज की सेवा करना भेरु की प्रार्थना से आचार्य श्री द्वारा भेरु को शिष्यत्व प्रदान करना।

एक समे दरियाव, मेड़ते आप पधारया।
 करी घरां दिस गमन, चरण अवनी पर धारयो ।।
 असत भयों जब भाण, रेण जब पड़ी अंधारी । 
 भेरु मिल्यो भोपाल, काल का सुन इदकारी ॥ 
 निमसकार कर जोड़, दोड़ परदिखणा दीनी । 
 लीनी हाथ मुसाल, टेल संतन की कीनीं ॥ 
 कहयो दास दरियाव, सुणो भेरुं भोपाला। 
 किण विध उपजी प्रीत, रित तैं राखी काला ॥ 
 कह भेरु भोपाल, भगत को दरसण पाउं । 
 संत शिरोमण आप, ताहि कूँ मैं पूछाउं ॥ 
 जोजन एक परवांण, संत को घर पुगाया। 
 सब भूता दिस साथ, टेहल में सारा आया ॥ 
 असो नाम परताप, बंदगी भेरुं कीनी। 
 जन दरिया म्हाराज, ताय को दिक्ष्या दीनी ॥ 
 क्रिपा करी म्हाराज, कथा अद्भुत उचारी। 
 भजन तेज परताप, पड़यो भेरु पर भारी ॥

अथ जाट को प्रसंग

अथ जाट को प्रसंग

इस प्रसंग में आचार्य श्री दरियावजी महाप्रभु के शिष्य मनसाराम मोदाणी का निमन्त्रण देना अति प्रेम के कारण भूल में तीनों भाइयों द्वारा आचार्य महाप्रभु की सेवा नहीं करना प्रसन्नचित्त आचार्य महाप्रभु का सांजु ग्राम से रेण लौटना मार्ग में एक जाट भक्त की भक्ति के अत्याग्रह से आचार्य श्री द्वारा बाजरा के दाने (पूंख) का जीमना व रेण पधार जाना। पता लगने पर मोदाणी का जाट के पास जाकर बाजरा दाने पुण्य के भागीदार बनने के लिए जाट को पैसा देने का आग्रह करना, पर जाट का कुछ भी नहीं लेना, फलस्वरूप उसी जाट का दूसरे जन्म में नागौर नगर में हरखारामजी के शिष्य रामकरण नाम से जन्म लेना ।

जन दरिया महाराज, आप सांजु में आया। 
निमसकार कर जोड़, जाट जब सीस नवाया ॥ 
भाव प्रेम रस रीत, प्रीत कर फूंक जीमाया।
 जन दरिया महाराज, आप तंदुल ज्युं पाया ॥ 
 प्रसन्न भया महाराज, सभा में गिरा उचारी। 
 नफो लीयो हे जाट, बंदगी कीनी भारी॥ 
 मोदाण्यां सुण बात, कहयो अब कैसे कीजे । 
 मन माग्या सो दाम, चाल फेर उनको दीजे ॥ 
 रिप्या दाम सो लेर गया, जब तीन भाई। 
 कही जाट ने बात, दाय उनके नहीं आई।
म्हारे तो परताप, दास दरिया को भारी । 
मनसा भोजन मिले, राबड़या दूध त्यारी ॥

दोहा

फूंकां का परसाद ते, भई बात इदकार। 
बदयो भाग उस जाट को, बड़ जितनो विस्तार ॥

अथ खाजु मीरां को प्रसंग

अथ खाजु मीरां को प्रसंग

इस प्रसंग में अजमेर के खाजा मीरा (मामा भानजा) दोनों द्वारा रामधाम रेण जाकर आचार्य श्री दरियाव जी महाराज का दर्शन कर प्रसन्न होना ।

षाजु मीरा सा है दो मामो भाणजा । 
तारागढ अजमेर, फरु के परगढ नेजा ॥ 
हिन्दु मुसलमान दोहुँ पूजे इकतारी । 
कलारूप करतूत जगत में मेमा भारी ॥ 
एक इन्छा धार, मिलण दरिया सुं आया । 
भाव प्रेम रस रीत, प्रीत करु दरसन पाया ॥ 
सुकल रूप सिर पांव, सुगन्ध सुरगादिक जैसी। 
देखन जन दरियाव, हुवा दिन मन माहीं खुशी ॥ 
परसण भये म्हाराज, भक्ति की राह बताई । 
खाजु मीरां साह, जीकर की फिकर लगाई।॥ 
राम नाम परताप नहीं, काई जुग में छानो । 
परगट जन दरियाव, नबी साहेब ज्यूं जानो ॥

अथ राजा बखतसिंघजी को प्रसंग

अथ राजा बखतसिंघजी को प्रसंग

इस प्रसंग में जोधपुर दरबार श्री बखतसिंह जी का रेण जाकर आचार्य श्री का दर्शन करके शिष्यत्व स्वीकार करना ।

बधी भगत की रीत, चंद ज्यूं कला सवाई। 
सोभा अनंत अपार, आप राजा सुण पाई || 
तब राज ली फोज, मोज कर दरसण आया। 
जन दरिया सुं प्रीत, रीत कर प्रेम बढाया ॥ 
नरपत कहयो सवाल, धीन मेरो अवतार । 
धिन धिन हे आदेश, धिन दीदार तुमारा ॥ 
ता दरसण अघ जात, करम दाग लगे न कोई। 
चढे ग्यान गजराज, पारगत सेजां होई ॥ 
कहयो नरपत राठोड़, क्रपा कर मोय उधारो । 
नगर नाव नागौर, एक दिन आप पधारो ॥ 
महरबान म्हाराज, मया कर आप पधारया । 
सुखरामजी साथ, चरण गढ माहीं धारया ॥
राजा भयो निहाल, परम सुख उपज्यो भारी । 
ऐसा जन दरियाव, जिस्या सन कादिक च्यारी ॥ 
जैसे ध्रु प्रहलाद नाम दे, दास कबीरा । 
परगट जन दरियाव, ग्यान गोरख ज्यूं पूरा ॥ 
तब बोले नरपतराय, क्रपा कर भेद बताओ। 
सांसो सोग संताप, भरम सब दूर उड़ावो ॥ 
मया करी म्याराज, ग्यान भगवंती कीनो । 
दया सहत निज नाव, भेद राजा कूं दीनो ॥ 
बगतसिघ नरेश देश मुरधर को राजा । 
जन दरिया के चरण, सरण जब सरिया काजा ॥
मास एक दरियावजी, रहया गढ नागौर । 
प्रीत करी राजा घणी, जैसे चंद चकोर ॥

Sunday 9 October 2022

अथ मदुचंदजी को प्रसंग

अथ मदुचंदजी को प्रसंग

इस प्रसंग में आचार्य महाप्रभु दरियावजी महाराज द्वारा दिल्ली निवासी नगर सेठ श्रावक (जैन) शिष्य मधुचंद को जमुना जल में डूबते हुए की रक्षा करना। अतः इसी गुरुभक्त सेठ द्वारा सतगुरु के नाम से दिल्ली के एक मुहल्ले को दरियागंज नाम से अलंकृत करना।

मधु सेठ सरावगी, रहतो दिल्ली मंजार । 
प्रात समे असमान को, लीयो नेम निरधार ॥ 
काल्या धेह के माहीं, धस्यो जल के माहीं आगो। 
हुणहार की बात, आप डुबण ने लागो ॥ 
करणां करी पुकार, दास दरियाव उबारो । 
मो अबला की लाज राखज्यो बिड़द तुमारो ॥ 
धरयो रूप भगवान, दास दरिया को भारी । 
करी सहाय ततकाल, इस्या है देव मुरारी ॥ 
भगत काज महाराज, साहे एसी विध कीनी । 
करण हार करतार, दास कुं सोभा दीनी ॥

दोहा

कलु काल परचो भयो, जाणे जग संसार । 
जन दरिया परताप ते, तिरायो साहुकार ॥