Wednesday 12 October 2022

अथ राजा बखतसिंघजी को प्रसंग

अथ राजा बखतसिंघजी को प्रसंग

इस प्रसंग में जोधपुर दरबार श्री बखतसिंह जी का रेण जाकर आचार्य श्री का दर्शन करके शिष्यत्व स्वीकार करना ।

बधी भगत की रीत, चंद ज्यूं कला सवाई। 
सोभा अनंत अपार, आप राजा सुण पाई || 
तब राज ली फोज, मोज कर दरसण आया। 
जन दरिया सुं प्रीत, रीत कर प्रेम बढाया ॥ 
नरपत कहयो सवाल, धीन मेरो अवतार । 
धिन धिन हे आदेश, धिन दीदार तुमारा ॥ 
ता दरसण अघ जात, करम दाग लगे न कोई। 
चढे ग्यान गजराज, पारगत सेजां होई ॥ 
कहयो नरपत राठोड़, क्रपा कर मोय उधारो । 
नगर नाव नागौर, एक दिन आप पधारो ॥ 
महरबान म्हाराज, मया कर आप पधारया । 
सुखरामजी साथ, चरण गढ माहीं धारया ॥
राजा भयो निहाल, परम सुख उपज्यो भारी । 
ऐसा जन दरियाव, जिस्या सन कादिक च्यारी ॥ 
जैसे ध्रु प्रहलाद नाम दे, दास कबीरा । 
परगट जन दरियाव, ग्यान गोरख ज्यूं पूरा ॥ 
तब बोले नरपतराय, क्रपा कर भेद बताओ। 
सांसो सोग संताप, भरम सब दूर उड़ावो ॥ 
मया करी म्याराज, ग्यान भगवंती कीनो । 
दया सहत निज नाव, भेद राजा कूं दीनो ॥ 
बगतसिघ नरेश देश मुरधर को राजा । 
जन दरिया के चरण, सरण जब सरिया काजा ॥
मास एक दरियावजी, रहया गढ नागौर । 
प्रीत करी राजा घणी, जैसे चंद चकोर ॥

No comments:

Post a Comment