अथ राजा बखतसिंघजी को प्रसंग
इस प्रसंग में जोधपुर दरबार श्री बखतसिंह जी का रेण जाकर आचार्य श्री का दर्शन करके शिष्यत्व स्वीकार करना ।
बधी भगत की रीत, चंद ज्यूं कला सवाई।
सोभा अनंत अपार, आप राजा सुण पाई ||
तब राज ली फोज, मोज कर दरसण आया।
जन दरिया सुं प्रीत, रीत कर प्रेम बढाया ॥
नरपत कहयो सवाल, धीन मेरो अवतार ।
धिन धिन हे आदेश, धिन दीदार तुमारा ॥
ता दरसण अघ जात, करम दाग लगे न कोई।
चढे ग्यान गजराज, पारगत सेजां होई ॥
कहयो नरपत राठोड़, क्रपा कर मोय उधारो ।
नगर नाव नागौर, एक दिन आप पधारो ॥
महरबान म्हाराज, मया कर आप पधारया ।
सुखरामजी साथ, चरण गढ माहीं धारया ॥
राजा भयो निहाल, परम सुख उपज्यो भारी ।
ऐसा जन दरियाव, जिस्या सन कादिक च्यारी ॥
जैसे ध्रु प्रहलाद नाम दे, दास कबीरा ।
परगट जन दरियाव, ग्यान गोरख ज्यूं पूरा ॥
तब बोले नरपतराय, क्रपा कर भेद बताओ।
सांसो सोग संताप, भरम सब दूर उड़ावो ॥
मया करी म्याराज, ग्यान भगवंती कीनो ।
दया सहत निज नाव, भेद राजा कूं दीनो ॥
बगतसिघ नरेश देश मुरधर को राजा ।
जन दरिया के चरण, सरण जब सरिया काजा ॥
मास एक दरियावजी, रहया गढ नागौर ।
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