Tuesday 18 October 2022

अथ घट प्रचा को प्रसंग

अथ घट प्रचा को प्रसंग

इस प्रसङ्ग में ध्यान योग साधना का प्रायोगिक विशद वर्णन रसना कण्ठ हृदय में शब्द की अद्भुत लीला व नाभी पताल में सुरत शब्द योग से अद्भुत चमत्कार का होना शब्द का बंकनाल में चलकर त्रिकूटी में जाना और वहाँ पर शब्द कृपा का प्रत्यक्ष (भीतर की) आँखों के दर्शन करना एवं शब्द का ब्रह्मरन्ध्र में पहुँचना व कई प्रकार वाद्यों का सुनना व पूर्ण आनन्दका अनुभव करना और सत्गुरु प्रेमदासजी महाराज का प्रसन्न होना।

रसणा हिरदे नाभ काम गढ जीता भारी । 
मूल चक्र कुं वंद भेद पायो इदकारी ॥ 
लांघ्या ओघट घाट मेर होय मारग लागा। 
चढ्या चिकुटी तगत, अघट सिव दाना बागा ॥ 
वरस एक रख मास, दास काया गढ जीता। 
मिल्या ब्रह्म सुं जाय, मंड में भया वदीता ॥ 
घुरया नाद घण घोर, भेर मुरली धुन बाजे । 
विन बादल तां बीज, घोर गन अमर गाजे ॥
वरसै जिर मिर मैह, चलै अगम जल धारा । 
नाल खाल धहचाल, हरया वन भार अडारा ॥ 
बोले चातग मोर टहु का कोयल देवे। 
कंवला पोप केतकी फुली, भंवर माह सुख लेवे ॥ 
गङ्ग जमुन बह उलट, सुरसरी बहे अकारी। 
अला पींगला नार, सुखमण गावे प्यारी ॥ 
पग बिन पातर खेल, नाच नो विद को ल्यावे । 
बहत्तर नार हजार, राग रंग विन मुख गावे ॥ 
जल में लागी लाय, चहुं दिस ज्वाला छुटी । 
चढा धरण आकास, बात इचरज की दीठी ॥ 
जिल मिल जोत अपार, अनन्त ससि भाव प्रकासा । 
मान सरोवर मंझ हंस जहां करे बीलासा ॥ 
बांज नार के एक पुरुष बिन बालक हुआ। 
गुरगडी मरदंग ताल, बीण बंजर सहनाई ॥ 
गूगर की जंणकार, श्री मंडल इद काई । 
वरगु भृंगल ढोल, पूरें कर नाल नागारो ॥ 
मोर चंग सितार, नुपंग बाजै इकतारो । 
रणसींगो ततकार सार, सत सबद उचारो॥ 
घड़ियावल की ठोर, तबला ता संग घंट कारा। 
गैरो गुरे तंदूर, मजीरा रूण जुण बाजे ॥
अल गोजां की टेर सुणी तरबीणी छाजे ।
घुरे गिगन में घूंस करे नागण की ललकारा। 
सिव शक्ति असथान सूणी रुरु रुम कारा ॥ 
बाजे चेंघर वाब घोर कमा कम व्रह चलावे । 
इत पुगी सुरवीण राग सारंगी गावे ॥ 
बाजे अनहद तूर, होय झालर झणकारा । 
धजा फरूके सुन संख, बोल इक धारा ॥ 
बाजा राग छतीस, जंत्र ही जंत्र बजावे | 
रोम रोम जणकार, सबद धुन मंगल गावे ॥ 
बिन देवल जहां देव, पिंड विन सेवा करहे। 
अनंत जुगां का संत, ध्यान धुन अनहद धरहे ॥ 
देख्या चैन अनंत, गुरां कुं बात सुणाई ।
घमंड भया घट माही, संत घर बटी बधाई ॥ 
कहयो प्रेम महाराज, सुणो जन दरिया दासा। 
बणी बात बहै बींत, ब्रह्म की जोत प्रकासा ॥ 
करो भजन भरपूर, भगत केवल इदकारी । 
सिव ब्रह्मा अरु विश्नु, सेस लग मेमा भारी॥ 
रात दिवस नित नेम, भजन को गाढ समायो । 
अवगत अगम अनाद, भगत को बिड़द बधायो ॥

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