अथ जाट को प्रसंग
इस प्रसंग में आचार्य श्री दरियावजी महाप्रभु के शिष्य मनसाराम मोदाणी का निमन्त्रण देना अति प्रेम के कारण भूल में तीनों भाइयों द्वारा आचार्य महाप्रभु की सेवा नहीं करना प्रसन्नचित्त आचार्य महाप्रभु का सांजु ग्राम से रेण लौटना मार्ग में एक जाट भक्त की भक्ति के अत्याग्रह से आचार्य श्री द्वारा बाजरा के दाने (पूंख) का जीमना व रेण पधार जाना। पता लगने पर मोदाणी का जाट के पास जाकर बाजरा दाने पुण्य के भागीदार बनने के लिए जाट को पैसा देने का आग्रह करना, पर जाट का कुछ भी नहीं लेना, फलस्वरूप उसी जाट का दूसरे जन्म में नागौर नगर में हरखारामजी के शिष्य रामकरण नाम से जन्म लेना ।
जन दरिया महाराज, आप सांजु में आया।
निमसकार कर जोड़, जाट जब सीस नवाया ॥
भाव प्रेम रस रीत, प्रीत कर फूंक जीमाया।
जन दरिया महाराज, आप तंदुल ज्युं पाया ॥
प्रसन्न भया महाराज, सभा में गिरा उचारी।
नफो लीयो हे जाट, बंदगी कीनी भारी॥
मोदाण्यां सुण बात, कहयो अब कैसे कीजे ।
मन माग्या सो दाम, चाल फेर उनको दीजे ॥
रिप्या दाम सो लेर गया, जब तीन भाई।
कही जाट ने बात, दाय उनके नहीं आई।
म्हारे तो परताप, दास दरिया को भारी ।
मनसा भोजन मिले, राबड़या दूध त्यारी ॥
दोहा
फूंकां का परसाद ते, भई बात इदकार।
बदयो भाग उस जाट को, बड़ जितनो विस्तार ॥
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