Monday 27 February 2017

सुमिरन का अंग


सुमिरन का अंग
-: अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी से सुमिरन का अंग प्रारंभ :-

राम भजै गुरु शब्द ले , तो पलटै मन देह ।
दरिया छाना क्यों रहै , भू पर बूठा मेंह (1) 

महाराजश्री ने राम भजन में " गुरु " शब्द को प्रधान कारण बताया है । गुरु शब्द को ग्रहण करने से अंतःकरण में परमात्मा का प्राकट्य होता है ।वर्षा होने पर वह छिपी हुई नहीं रहती है । दूर-दराज वर्षा होने पर भी उसकी सुगंध हम तक पहुंच जाती है । इसी प्रकार गुरु शब्द लेने वाले व्यक्ति का जीवन छिपा हुआ नहीं रहता है, ऐसा भगवत नाम का प्रभाव है । राम!
दरिया नाम है निरमला, पूरन ब्रह्म अगाध ।
कहे सुने सुख ना लहै , सुमिरे पावे स्वाद (2) 

महाराजश्री कहते हैं कि भगवान का नाम निर्मल, पूर्ण तथा अगाध है अर्थात इसका कोई वार-पार नहीं है । जिसे कहने सुनने से नहीं अपितु स्मरण करने से ही स्वाद आता है । इसलिए पूर्ण राम का ही जाप करना चाहिए एवं उन्हीं का आश्रय लेना चाहिए । राम!
दरिया सुमिरै राम को, करम भरम सब खोय ।
पूरा गुरु सिर पर तपै, विघ्न न व्यापे कोय (3)

महाराजश्री कह रहे हैं कि राम नाम का जाप करने से कर्म और भ्रम सब नष्ट हो जाते हैं । आध्यात्मिक जीवन रूपी फसल को काम , क्रोध और लोभ रूपी जीवजंतु नष्ट न करे, इसके लिए सतगुरु रूपी बाड़ की आवश्यकता होती है । इस प्रकार पूरा गुरु मिलने पर ही विघ्न नहीं आते हैं । राम!
दरिया सुमिरै राम को, करम भरम सब चूर ।
निस तारा सहजै मिटै , जो उगै निर्मल सूर (4) 

महाराजश्री कहते हैं कि ईश्वर का स्मरण करने से कर्म और भ्रम का चूरा हो जाता है अर्थात ये जलकर नष्ट हो जाते हैं । सूर्य उदय होने के पश्चात रात्रि, तारा, नक्षत्र, तथा ग्रह सब नष्ट हो जाते हैं । परिवार के सुख-दुख रूपी द्वंद्व ही तारे हैं तथा हमारे अंतःकरण मेंं छाया अज्ञान ही निशा है जो ईश्वर की कृपा से स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं ।राम!
राम बिना फीका लगै , सब किरिया शास्त्र ग्यान ।
दरिया दीपक कहा करै ,  उदय भया निज भान (5)

महाराजश्री कहते हैं कि आपकी क्रिया अत्यंत शुद्ध और पवित्र है तथा आपके अंदर शास्त्रीय ज्ञान भरपूर है परन्तु यदि आपका राम के प्रति प्रेम नहीं है तो आपकी यह पवित्रता और शास्त्रीय ज्ञान निष्फल है । इसी प्रकार से भगवत नाम रूपी सूर्य के सामने, यह क्रिया-कर्म तथा ज्ञान दीपक के समान नगण्य है । राम!
दरिया सूरज ऊगिया , नैन खुला भरपूर ।
जिन अंधे देखा नहीं, उनसे साहिब दूर  (6) 

महाराजश्री कहते हैं कि सूर्य उदय होते ही हमारे नैन खुल जाते हैं परन्तु उल्लू की दृष्टि सूर्य उदय होने के पश्चात बंद हो जाती है । अतः आचार्यश्री कहते हैं कि उल्लू दृष्टि  (मन)वाले लोग परमात्मा को नहीं देख पाते हैं परमात्मा उनसे बहुत दूर चले जाते हैं । राम!
दरिया सूरज ऊगिया, चहूँ दिस भया उजास ।
नाम प्रकाशै देह में, तौ सकल भरम का नाश (7) 

आचार्यश्री कहते हैं कि सूर्य उदय होता है तो चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है तथा अंधेरा नष्ट हो जाता है । उसी प्रकार शरीर के अंदर नाम प्रकाशित होता है तो सारे भ्रमों का नाश हो जाता है । राम!
आन धरम दीपक जिसा , भरमत होय बिनास ।
दरिया दीपक क्या करै, आगे रवि परकास (8) 

आचार्यश्री ने राम नाम को सूर्य के समान तथा भगवत नाम को छोड़कर अन्य सभी साधन को दीपक बताया है । इसलिए महाराजश्री कहते हैं कि राम को ह्रदय में प्रकट करके सूर्य उदय कर लो ।राम!
दरिया सुमिरै राम को, दूजी आस निवार ।
एक आस लागा रहै , तो कदे न आवै हार (9)

महाराजश्री कह रहे हैं कि यदि तू राम का स्मरण करता है तो दूसरी सभी आशाओं का परित्याग कर दे । केवल एक रामजी महाराज का ही आसरा होना चाहिए । दूसरी आशा ही साधक के लिए बहुत ही बाधक है । राम!
  दरिया नरतन पाय कर, कीया चाहै काज ।
  राव रंक दोनों तरैं , जो बैठे नाम जहाज  (10) 

 आचार्यश्री कह रहे हैं कि मनुष्य शरीर प्राप्त करके वही कार्य करने चाहिए, जो मनुष्य को शोभा देते हैं । राम-नाम रूप जहाज के ऊपर राजा-रंक,गरीब-अमीर,बालक-वृध्द, स्त्री-पुरुष कोई भी बैठता है तो वह अवश्य पार होता है । राम!
नाम जहाज बैठे नहीं, आन करै सिर भार ।
दरिया निश्चय बहैंगे , चौरासी की धार  (11) 

महाराजश्री कहते हैं कि यह संसार समुद्र के समान है । जिस प्रकार सागर को पार करने के लिए जहाज का सहारा लेना पड़ता है, उसी प्रकार जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए राम नाम रूपी जहाज का आश्रय लेना अति आवश्यक है, अन्यथा चौरासी की धार में बहना पड़ेगा । राम!
जन्म अकारथ नाम बिन, भावै जान अजान ।
जन्म मरन जम काल की,  मिटै न खैंचा तान  (12) 

महाराजश्री कहते हैं कि कलियुग में मनुष्य यदि नामजाप नहीं करते हैं तो उनका मनुष्य जन्म बेकार है । यदि इस अवसर का तिरस्कार कर दिया तो महान अनर्थ हो सकता है तथा नरक और चौरासी का बंधन लग जायेगा । आचार्यश्री आगे कहते हैं कि आप काम करते हुए रसना के द्वारा नामजाप करते रहो तो आपका कल्याण निश्चित है । राम!
मुसलमान हिंदू कहा, षट् दरसन रंक राव ।
जन दरिया निज नाम बिन, सब पर जम का डाव (13)

 आचार्यश्री कहते हैं कि यदि भगवान की भक्ति नहीं करता है तो चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, राजा हो या रंक , सभी को काल की परिधि में आना पड़ेगा । यह काल सब को खा रहा है ।
  स्वर्ग मृत्यु पाताल कहा, कहा तीन लोक विस्तार ।
  जन दरिया निज नाम बिन, सभी काल को चार  (14)
 
महाराजश्री कहते हैं कि स्वर्गलोक, पाताललोक अथवा मृत्युलोक, तीन लोकों में किसी भी स्थान पर यदि व्यक्ति का निवास स्थान है तो भी वह काल से नहीं बच सकता । प्रत्येक व्यक्ति राम के नाम के बिना काल का ही चारा है । इसलिए अपना काम शीघ्रातिशीघ्र कर लेना चाहिए ।
दरिया नर तन पाय कर , किया न राम उचार ।
बोझ उतारन आइया , सो ले चले सिर भार  (15)
  
आचार्यश्री कहते हैं कि यह मनुष्य शरीर हमें पापों का नाश करने के लिए ही मिला है । पापों से निवृत्त होकर जीवन को पुण्यमय बनाकर परमात्व स्वरूप को प्राप्त करने के लिए ही हम इस मृत्युलोक में  आये हैं । परन्तु यदि "राम "शब्द से प्रेम नहीं किया तो पापों का बोझ और भी ज्यादा हो जाएगा । राम!
जो कोई साधु गृहस्थी में, माहिं राम भरपूर ।
दरिया कह उस दास की , मैं चरनन की धूर (16)
   
महाराजश्री कहते हैं कि आप गृहस्थ में भी साधु बन सकते हैं । जो साधना करता है , भगवान का भजन करता है तथा जिसका चित्त भक्ति में सदैव स्थिर रहता है वही वास्तव में साधु है । जो कोई गृहस्थी में भी साधु है तथा जिसके हृदय में परमात्मा भरपूर हैं, मैं उनके चरणों की धूलि हूँ । राम!
बाहर बाना भेष का , माहि राम का राज ।
कह दरिया वे साधवा , है मेरे सिर का ताज (17)
     
श्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि जिस व्यक्ति के बाहर साधु का भेष है तथा हृदय में राम का राज है , वह साधुजन मेरे  सिर का ताज है । इसीलिए महाराजश्री कहते हैं कि नाम जाप करने वाला भेषधारी साधु भी अच्छा है तथा  गृहस्थी भी अच्छा है । राम!
राम सुमिर रामहिं मिला, सो मेरे सिर का मौर ।
दरिया भेष बिचारिये, खैर मैर की ठौर  (18) 

आचार्यश्री कहते हैं कि नाम स्मरण करके जो राम के अंदर मिल गया है वह मेरे सिर का मौर है । जो भेषधारी साधु नामजाप नहीं करता है वह खैर मैर की ठौर है । भगवान के हृदय में उनके लिए कोई स्थान नहीं है । राम!
दरिया सुमिरै राम को, कोट कर्म की हान ।
जम और काल का भय मिटै , ना काहू की कान (19)

आचार्यश्री कहते हैं कि परमात्मा का नाम जाप करने से करोड़ों कर्म क्षय हो जाते हैं  जिससे आप कर्मों से स्वतंत्र हो  जाओगे  तथा आपका जीवन पूर्णतः कर्मातीत हो जाएगा , फिर किसी का भय नहीं रहेगा । राम!
  दरिया सुमिरै राम को, आतम को आधार ।
  काया काची काँच सी , कंचन होत न बार  (20)

आचार्यश्री कहते हैं कि भगवान का सुमिरन ही आत्मा का आधार है तथा नामजाप करने से यह शरीर पवित्र हो जाता है । हमारी यह काया काँच के समान है परन्तु भगवत नाम जाप से इसे कंचन बनने में समय नहीं लगता है । महाराजश्री कहते हैं कि राम-राम करने से काया कंचन होती है । राम!
  दरिया राम संभालते, काया कंचन सार ।
  आन धर्म और भ्रम सब, डाला सिर से भार (21)
 
आचार्यश्री कहते हैं कि राम का सुमिरन करने से आन धर्म और भ्रम रूपी भार मेरे सिर से उतर गया । परमात्मा को छोड़कर दूसरे सभी धर्म आन धर्म कहलाते हैं । इसलिए सर्वोपरि परमात्मा का ही हाथ पकड़ना चाहिए । राम!
  दरिया सुमिरै राम को, सहज तिमिर का नाश ।
  घट भीतर होय चाँदना , परम ज्योति प्रकाश  (22)
  
आचार्यश्री कह रहे हैं कि राम नाम सुमिरन करने से हृदय में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार का  नाश हो जाता है तथा परमात्मा रूपी प्रकाश का प्राकट्य होता है । इस प्रकार से परमात्मा तो हमारे हृदय में ही विराजमान है , केवल  उनकी खोज करनी है । जो केवल नाम जाप से ही संभव है । राम!
  सतगुरु संग न संचरिया, राम नाम उर नांहि ।
  ते घट मरघट सारिखा , भूत बसै ता मांहि  (23)
 महाराजश्री कह रहे हैं कि जिसने सतगुरु के संग संचरण नहीं किया है , वह किसी काम का नहीं है । जिसने सतगुरु के सिद्धांत के साथ संचरण नहीं किया है तथा जिसके हृदय में राम का नाम नहीं है , वह श्मशान के समान है , उसके हृदय में केवल भूत ही निवास करते हैं । अतः सतगुरु के साथ रहते हुए उनके स्वरूप को प्राप्त करना चाहिए । राम!
  राम नाम ध्याया नहीं , हुआ बहुत अकाज ।
  दरिया काया नगर मेें, पंच भूत का राज  (24)
 
महाराजश्री कहते हैं कि राम नाम जाप नहीं किया तो बहुत अकाज हो गया अर्थात कोई काम सिद्ध नहीं हुआ । यदि इस शरीर में राम का राज नहीं है तो इस पर पांच  भूत अपना राज कर लेंगे । अतः मनुष्य को शीघ्र राम नाम जाप में लग जाना चाहिए ताकि  अपना उद्धार हो जाय । राम !
पंच भूत के राज में, सब जग लागा धुंध ।
जन दरिया सतगुरु बिना, मिल रहा अंधो अंध (25)

आचार्यश्री कहते हैं कि आज सारी दुनिया पांच भूतों के वश में है तथा पंच भूतों के राज में पूरी दुनिया धुंध के समान लग रही है ।अतः श्रीदरियावजी महाराज कहते हैं कि मनुष्य सतगुरु के बिना पांच भूतों के वशीभूत होकर केवल अंधे से अंधे मिल रहे हैं अर्थात कोई सही मार्ग  नहीं मिल रहा है । राम!
सब जग अंधा राम बिन , सूझे न काज अकाज ।
राव रंक अंधा सबै , अंधों ही  का राज  (26)

महाराजश्री कहते हैं कि जिनके अंतःकरण मेंं राम नाम  नहीं , वे अंधे ही है ।क्योंकि भगवत भक्ति के  अभाव में कुछ भी नहीं दिखता है । कार्य -अकार्य , सुख-दुख, हानि-लाभ क्या है । इसीलिए आचार्यश्री कहते हैं कि राजा अंधा है तो प्रजा भी अंधी होगी । अंधे का तात्पर्य विवेक , विचार  एवं ज्ञान से अंधा होना है ।राम!
दरिया सब जग आंधरा , सूझे सो बेकाम ।
सूझा तब ही जानिए, जा को दरसे आतम राम  (27)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि सारा जग अंधा है तथा जिसे दिखता है वह भी किसी काम का नहीं है । क्योंकि जो नहीं दीख रहा है , उसे वह देखता है तथा जो दीख रहा है , उसे वह  देख नहीं पाता । अपनी आत्मा में जो राम को देखता है , उसे ही वास्तव में सूझता है ।राम!
मन बच काया समेट कर, सुमिरै  आतम राम ।
दरिया नेड़ा नीपजै , जाय बसै निज धाम (28) 

आचार्यश्री कहते हैं कि साधक  अपनी सारी इन्द्रियों और मन को समेट कर पूरी  शक्ति परमात्मा के सुमिरन में लगा देता है क्योंकि जो तत्व  इस जगत के  अंदर सर्वत्र  प्रकाशवान है वह परमात्मा है जो राम के नाम से पुकारा जाता है । अतः रात-दिन नाम जाप करना चाहिए ।राम!
सकल ग्रंथ का अर्थ है, सकल बात की बात ।
दरिया सुमिरन राम का, कर लीजे दिन रात  (29)

महाराजश्री कहते हैं कि चारों वेद ढूँढने के पश्चात  अंत में तो राम राम ही करना पड़ेगा तो इससे अच्छा है कि पहले से ही राम नाम से प्रीति कर लें । अतः श्री दरियावजी महाराज भी बार बार रात दिन नाम स्मरण करने के लिए प्रेरणा दे रहें है । राम!
ध्रुव लोक ध्रुव राम कहे, कहे पताला शेष,
दरिया परगट नाम बिन, कहु कौन आयो देख (30)

महाराजश्री कहते हैं कि ध्रुव लोक में ध्रुवजी नाम स्मरण करते हैं तथा पाताल में शेष भगवान राम राम करते हैं । दरियावजी कहते हैं कि महापुरूषों की  कीर्ति संसार में छाई हुई है परन्तु  भगवन्नाम के बिना उनका अनुभव कोई भी प्राप्त नहीं कर सकता ।  ध्यान करने से मनुष्य में महान परिवर्तन  आता है कि साधक का जीवन ही परिवर्तित हो जाता है । राम!
लोह पलट कंचन भया, कर पारस को संग ।
दरिया परसै नाम को , सहजहिं पलटै अंग  (31) 

आचार्य श्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि जिस प्रकार लोहे का पारस से स्पर्श करने पर वह कंचन बन जाता है उसी प्रकार नामजाप करने से व्यक्ति में परिवर्तन आता है । इसलिए हमें अपने आपको नामजाप में खो देना चाहिए । राम!
अपने  अपने  इष्ट में, राच रहा सब कोय ।
दरिया रत्ताराम सूं , साध सिरोमनी सोय (32) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि आज सभी लोग अपने अपने इष्ट में लगे हुए हैं । परन्तु दूसरे सभी साधनों की अपेक्षा नामजाप  का परिणाम कई गुना अधिक मिलता है क्योंकि कलियुग में भगवान की अपेक्षा नाम की महिमा अधिक है। महाराजश्री कहते हैं कि इस मनुष्य शरीर की सार्थकता तभी है जब व्यक्ति राम राम  करता है । राम!
दरिया धन वे साधवा, रहै राम लौ लाय ।
राम नाम बिन जीव को, काल निरन्तर खाय (33)

आचार्यश्री ने ऐसे साधकों को बहुत ही धन्यवाद का आशीर्वाद दिया है , जिनकी रात दिन राम के साथ लिव लगी रहती है अन्यथा राम नाम के बिना जीव को लगातार खा रहा है ।राम!
दरिया काया कारवी , मौसर है दिन चार ।
जब  लग साँस शरीर में, तब लग राम संभार (34)

 आचार्यश्री कहते हैं कि यह शरीर कारवी है अर्थात इस शरीर के द्वारा परमात्मा की प्राप्ति संभव है । अतः जब तक शरीर में श्वास है तब तक राम राम रटते रहो । राम राम करने वाले व्यक्ति के स्वंय राम भी आधीन हो जाते हैं ।राम!
  राम नाम रसना रटै , भीतर सुमिरै मन ।
  दरिया ये गत साध की, पाया नाम रतन (35)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि रसना के द्वारा राम-राम करता रहे तथा भीतर में मन-ही-मन में भी राम-राम होता रहे  यह गति वास्तव में संत की गति है । नाम  उसी का होता है जो नाम का प्रेमी होता है तथा नाम के प्रति समर्पित होता है । राम!
दरिया दूजे धर्म से , संसय मिटै न सूल ।
राम नाम रटता रहै , सब धर्मों का मूल (36) 

महाराजश्री कहते हैं कि राम नाम ही सभी धर्मों का मूल है । अन्य किसी भी धर्म से जीव के अन्दर व्याप्त संशय नहीं मिट सकता परन्तु राम नाम जाप के द्वारा जीव के सभी कर्म, भ्रम और संशय समाप्त हो जाते हैं । राम!
लख चौरासी भुगत कर , मानुष देह पाई ।
राम नाम ध्याया नहीं, तो चौरासी आई (37) 

महाराजश्री कहते हैं कि अब तो तुम चेत कर राम की महिमा को प्रकट कर लो क्योंकि परमात्मा की प्राप्ति के लिए यह शरीर रूपी साधन बार बार नहीं मिलेगा । अर्थात बहुत मुश्किल से यह मनुष्य शरीर मिला है । राम!
दरिया नाके नाम के, बिरला आवै कोय ।
जो आवै तो परमपद, आवागमन न होय (38) 

आचार्यश्री कहते हैं कि राम नाम के दरवाजे पर कोई बिरले ही आते हैं क्योंकि यह परमात्मा का नाका है । जो परमात्मा के नाम के सम्मुख आते हैं वे फिर आवागमन के चक्कर में नहीं आते । राम!
दरिया राम अगाध है, आतम को आधार ।
सुमिरत ही सुख ऊपजे , सहज ही मिटै विकार  (39)

दरियावजी महाराजश्री कहते हैं कि भगवान का नाम अगाध है तथा आत्मा का आधार है अर्थात राम नाम जाप ही आत्मा की खुराक है । अतः आचार्यश्री कहते हैं कि नाम जाप करने से सहज में ही विकार नष्ट हो कर सुख की प्राप्ति हो जाती है । राम!
दरिया राम संभालता, देख किता गुन होय ।
आवागमन का दुख मिटै, ब्रह्म परायन सोय (40)

महाराजश्री राम नाम की महिमा  बताते हुए  साधक से कह रहे हैं कि हे साधक, तू जरा अपने मन में विचार करके देख ले । नाम जाप करने से ब्रह्म से मिलन हो जाता है तथा आवागमन के भयंकर दुख से छुटकारा मिल जाता है । राम!
मरना है रहना नहीं, जा में फेर न सार ।
जन दरिया भय मान कर , अपना राम संभार  (41)

आचार्यश्री मनुष्य को सावधान करते हुए कहते हैं कि तुम्हे मरना पड़ेगा , इसमें रत्तीमात्र भी संशय नहीं है । संदेह तो जीने में है पता नहीं कब  व्यक्ति मर सकता है । जन्म लेते ही  मृत्यु उसके पीछे लग जाती है ।अतः मरने से पूर्व हो शुभ कर्म कर लो तथा भजन ध्यान करके ईश्वर की प्राप्ति कर लो । राम!
कहां कोई बन बन फिरै, कहां लियाँ कोई फौज ।
जन दरिया निज नाम बिन, दिन दस मन की मौज (42)

आचार्यश्री कहते हैं कि चाहे जंगल में फिरो , चाहे घर में रहो , भगवत नाम के बिना यह सब केवल दस दिन की मौज है । राम नाम के बिना कहीं भी भटकना केवल मन को बहलाना ही है । राम!
दरिया आतम मल भरा , कैसे निर्मल होय ।
साबुन लावै प्रेम का, राम नाम जल धोय (43) 

आचार्यश्री कहते हैं कि हमारी आत्मा में जो मल विक्षेप भरा हुआ है उसको निर्मल करने के लिए प्रेम रूपी साबुन तथा राम नाम रूपी पानी का उपयोग किया जाए तो यह  अंतःकरण रूपी कपड़ा सुंदर और स्वच्छ हो सकता है। राम!
दरिया इस संसार में, सुखी एक है संत ।
पिये सुधारस प्रेम से , राम नाम  निज तंत (44) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि इस संसार में वही सुखी है जो सदैव ही राम नाम जाप रूपी अमृत का पान करते रहते हैं ।
राम नाम निस दिन रटै , दूजा नहीं दाय ।
दरिया ऐसे साध की, मैं बलिहारी जाय  (45)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि जो केवल राम नाम जाप करता है तथा जिसे दूसरा कोई अच्छा ही नहीं लगता  है , ऐसे संत की मैं बलिहारी जाता हूँ । राम!
दरिया सुमिरन राम का, देखत भूली खेल ।
धन धन वे साधवाँ , जिना लिया मन मेल  (46)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज ने उस साधक को दो बार धन्य धन्य कहा है , जिसने अपने मन को मेल लिया । मन की अत्यंत मजबूत जड़ें हैं परन्तु जिस साधक ने इन जड़ों को काटकर मन  को परमात्मा के चरणों मेंं समर्पित कर दिया ,  वह परमात्मा का  अत्यन्त लाडला है ।राम!
दरिया सुमिरन राम का, कीमत लखै न कोय ।
टूक इक घट में संचरै , पाव वस्तु मण होय (47) 

आचार्यश्री कहते हैं कि राम नाम की कितनी कीमत है , इसकी जानकरी हासिल करके भी कोई उसका वर्णन नहीं कर सकता । क्योंकि राम नाम लिए बिना उसका अनुभव प्राप्त  करना असंभव है । जब सांसोसांस राम राम किया जाता है तब पूरे शरीर के रोम रोम में राम राम की ध्वनि होने लगती है । ऐसा राम नाम का प्रभाव है । राम!
दरिया सुमिरै राम को, साकट नाहिं सुहात ।
बीज चमकै गगन में, गधिया बावै लात (48) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति राम का नाम जाप करता है तो साकट व्यक्ति उसके मार्ग में विघ्न उपस्थित करने का प्रयत्न करते हैं । साकट व्यक्ति को राम नाम  अच्छा नहीं लगता । जब आकाश में बिजली चमकती है तब गधा धरती पर लात मारता है । जबकि गधे की लात आकाश तक पहुंचती नहीं है ।राम!
फिरी दुहाई शहर में, चोर गये सब भाज ।
शत्रु फिर मित्रज भया, हुआ राम का राज  (49) 

महाराजश्री कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर पांच चोर काम,क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार बैठे हैं जो हमे रात दिन लूट रहे हैं । आचार्यश्री कहते हैं कि पहले यही हमारे परम शत्रु थे, जब मनुष्य  इनके वशीभूत नहीं होते हैं तब यही इनके परम मित्र बन गए हैं ।राम!
जो कुछ थी सोही बनी, मिट गई खैंचा तान ।
चोर पलट कर साह भयै , फिरी राम की आन (50)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि परमात्मा जिस स्वरूप में स्थित है , उसी स्वरूप में हम भी आ गए हैं । अर्थात अब हम अपनी वास्तविक ब्रह्म स्थिती में आ गए हैं क्योंकि प्रभु ने कृपा करके हमें स्वीकार कर लिया है । महाराजश्री कहते हैं कि भगवत नामजाप करने से हम सांसारिक,व्यावहारिक  तथा सामाजिक खींचातानी से भी निवृत्त हो गये हैं तथा अंतःकरण मेंं राम की महिमा समा गई है जो सच्चा सुख है ।राम!

अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का सुमिरन का अंग संपूर्ण हुआ ।राम राम ।

     आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com . डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
गोवत्स राधेश्याम रावोरिया
9042322241