अथ श्री किशनदासजी महाराज की गुरु महिमा प्रारंभ ।राम राम ।
नमो राम निर्वाण ब्रह्म , सतगुरु सब ही सन्त ।
किशनदास कर जोड़ के, वंदन बहुत करंत (1)
सतगुरू जन दरियाव सही , मन मान्या मेरे ।
शूरवीर सत वैण कहो , कुण पूठा फेरे (2)
मेट्या भ्रम अंधेर , किया गुरू ज्ञान उजाला ।
अखंड अमल भरपूर, सदा संग शिख मतवाल (3)
राम नाम नित प्रीति , शिष्यगण सुमिरै सारा ।
नैन बैण हरि हेत , सदा साहब का प्यारा (4)
खबरदार होशियार, पार पुरूषोत्तम पागी ।
'दरिया ' मेरू उलंघ , सुरती ब्रह्म चरणा लागी (5) दोहा
निराकार आकार बिच , जहं दरिया का बास ।
अगम अगोचर गम किया, देख्या किसनेदास {१}
छन्द
शिष मन को नारेल, मेल्हि गुरु चरणों आगे ।
प्रेम प्रीति जिज्ञास , चाह गुरु चरणों लागे (1)
दयावन्त गुरुदेव, अनंत फल शरणे आया ।
भरम कर्म अघ पाप मिटै , गुरु दर्शन पाया (2)
जप तीर्थ व्रत दान, पुण्य फल सुकृत किया ।
सकल धर्म की याद, परम पद गुरु ने दीया (3)
होम यज्ञ आचार शील, समता गुरू सेवा ।
वाणी कथा विचार, दीन बंधु गुरु देवा (4)
सांख्य योग गुरुदेव अर्थ, अनुभव सुखरासी ।
भक्ति मुक्ति महामोक्ष , अमर अक्षय अविनाशी (5)
सकल मण्ड का जीव तिरै , गुरु दर्शन परस्यां ।
तारण तरण उदार, पार गुरु दरस्यां (6)
सतगुरू शरणै आय , आन दिश जाय अभागी ।
कौन बुझावे दाह , लाय कर्मों की लागी (7)
सतगुरू आज्ञा मांग, शिष्य मुख अमृत पीवे ।
जन्म मरण मिट जाय , ज्योति मिल अक्षय जीवे (8)
दोहा
भाग भला शिष्य गुरु मिला , दिल में रखे न दूज ।
'किशनदास' तन मन अरप , गुरु समर्थ पद पूज {२}
चौपाई
बार बार सतगुरू समझावै , ऐसो जन्म बहुरि नहीं आवै ।
राम राम भजले शिष भाई , मुगति होण की जुगति बताई (1)
जामण मरण मिटैगा तैरा , यूं सत शब्द मान शिष मेरा ।
सत का शब्द मान शिष लीजै , सतगुरू शब्द कहै सो कीजै (2)
गुरू बिन नाम हाथ नहीं आवै , गुरू बिन पार कौन पहुंचावै ।
गुरू बिन कथै-बकै सब झूठा , गुरू बिन साहब रहे अपूठा (3)
गुरु बिन सब तीर्थ फिर आवै , गुरू बिन मुक्ति मूल नहीं पावै ।
गुरु बिन पांच नाम नित पेखे , गुरु बिन सेवा लगे न लेखे (4)
गुरू बिन मन मूक ज्ञान विचारे , गुरू बिन भरम बहुत पचहारे ।
गुरू बिन कुण घर भेद बतावै , गुरू बिन ठौर ठीक नहीं पावै (5)
गुरू बिन अगम निगम कुण बोले , गुरू बिन दसूँ द्वार कुण खोले ।
गुरू बिन भूला जन्म गमावै , गुरू बिन निज तत् हाथ न आवै (6)
गुरु बिन हद में कौन हलावै , गुरु बिन बेहद कौन बतावै ।
गुरु बिन योग युक्त नहीं पावै , गुरु बिन मोक्ष मुक्ति नहीं आवै (7)
गुरू बिन अन्धा बहुत अलूजै , गुरू बिन सत साहब नहीं सूजै ।
गुरू बिन भेख पहर फिर फूल्या , गुरू बिन आपो आपण भूल्या (8)
गुरू बिन योग नहीं बैरागी , गुरू बिन त्यागी भी अणत्यागी ।
गुरू बिन अजरी बजरी करि हैं, गुरू बिन भवसागर में फिरि हैं (9)
गुरु बिन कौन अष्टांग कमावे, गुरु बिन कौन प्रसिद्ध कहावे ।
गुरु बिन सिध अगाध न होई , गुरू बिन अलख लखै न कोई (10)
गुरू बिन राम नाम कुण लागै , गुरू बिन भव सूता कुण जागै ।
गुरू बिन बहुत चले गए वीरा , जम की मार पड़े रहे धीरा (11)
भव सागर से पार उतारे , महा प्रलय सूं अवश्य उबारे ।
तारण तिरण उद्धारण आया , भाग बड़ा पूरा गुरू पाया (12)
शिष कर जोड़ लग्या गुरु चरणा , कृपया दया मया कर घरणा ।
दया करी गुरु दर्शन दीया, तुमरे चरण शरण हम जीया (13)
मैं मति हीन मार्ग नहीं जाण्या , पार ब्रह्म गुरू नहीं पहचाण्या ।
मैं भूला तुम भेद बताया , तुम साहब मैं शरणे आया (14)
मैं कर्मी दुष्टि अहंकारी , पतित उधारण पर उपकारी ।
तुम गुरुदेव अलख अविनाशी , तुम बिन कुण काटे यम फाँसी (15)
तुम गुरुदेव निरंजन निर्भय, शिष का शत्रु किया गुरू सब व्यय ।
तुम गुरुदेव नाथ निरंकारी , शिष भव डूबत लिया उबारी (16)
तुम गुरूदेव महा सुख दीना , काग पलट हंसा कर लीना ।
राम नाम मोती चुगाया , काग पलट शिष हँस कहाया (17)
गुरू बिन चेला कौन उबारै , गुरु बिन भवसागर कुण तारै ।
गुरु बिन जीव कहो क्यों जावै , गुरु बिन सत अमृत कुण पीवै (18)
दोहा
वार पार गुरू गम अगम , अवगत अकल अनन्त ।
किशनदास गुरू गम अगम , गुरू जैसा भगवन्त (3)
अलख लेख में गुरु नहीं, गुरु है अगम अपार ।
किशनदास वन्दन करै , नमो सिरजन हार (4)
गुरू बिन अन्धा वे सकल , गुरू बिन मूढ़ अजान ।
किशनदास गुरू गम बिना , सब नर पशु समान (5)
गुरु बिन भटकत बहु दिन बीता , गुरु बिन स्वाँग रहा सब रीता ।
गुरु बिन सुध-बुध हाथ न आवै , गुरु बिन भुगत-भुगत मर जावै (19)
गुरू बिन माया बहुत नचाया , गुरं बिन जोगी जगत हंसाया ।
गुरू बिन खट् दर्शन ठग बाजी , गुरू बिन मक्कर पंडित काजी (20)
गुरु बिन जोर कहावै जोसी , गुरु बिन अन्तकाल फिर रोसी ।
गुरु बिन करै कीर्तन रासा , गुरु बिन घर घर फिरे उदासा (21)
गुरू बिन झालर ताल बजावै , गुरु बिन माया बहुत मनावै ।
गुरू बिन कुल मार्ग में बूड़ा , गुरू बिन राम न जाने रूड़ा (22)
गुरू बिन आन-देव सब लूटै , गुरु बिन जीव कहो क्यों छूटै ।
गुरु बिन परम पंथ नहीं पावै , गुरु बिन जगत अगत सब जावै (23)
गुरू बिन कौन सरोदा साजै , गुरु बिन गगन नाद किम गाजै ।
गुरू बिन चंद सूर घर हेरे , गुरू बिन पंच पवन कुण फेरै (24)
गुरु बिन निज निर्वाण न पावै , गुरु बिन अवधि एली गमावै ।
गुरु बिन कुण भव पार लंघावै , कर किरपा करतार बतावै (25)
शब्द हीन सतगुरू नहीं कीजै , पारस छोड़ पत्थर क्यों लीजै ।
सतगुरू ऐसा कीजै साधू , पाँचू पेल परम तत्त लाधू (26)
सतगुरू ऐसा कीजै भाई, परम ज्योति में ज्योति मिलाई ।
जैसा गुरू तैसा शिष होई , खर से खर बन्ध्या सब कोई (27)
ज्यों दीपक बिन मंदिर अंधारा , यूं सतगुरू बिन साहब न्यारा ।
'किशनदास ' गुरु अधम उद्धारे , आप तिरै औरो को तारे (28)
ऐसा है गुरुदेव हमारा , ' किशनदास ' सतगुरू का चेरा ।
निराकार निर्भय नारायण, 'किशनदास ' पहुँचा पारायण (29)
जामण मरण महा डर मेट्या , 'किशनदास ' पूरा गुरु भेट्या ।
ब्रह्म उजागर सतगुरू पाया, 'किशनदास ' गुरु शरणै आया (30)
दोहा
'किशनदास ' ऐसो जनम , बार बार नहीं होय ।
सावधान साहब भजो , खबरदार! सब कोय (6)
राम-राम रसना रटौ , जब लग पिंजर श्वास ।
'किशनदास 'कीजै भजन होय दासन को दास (7)
इति श्री किशनदासजी महाराज की 'अनुभव गिरा ' संपूर्ण । राम राम