Wednesday 24 October 2018

राम नाम की मस्ती .....

राम नाम की मस्ती.......

एक बार एक भक्त गुरुदेव के चरणो मे पहूंचा ओर गुरुदेव के चरणो मे प्रणाम करके उस भक्त ने कहा की-- मेरे गुरुदेव,,,जबसे मेरे जीवन मे राम नाम की मस्ती आयी है

तबसे दूनियावाले मेरा मजाक उडाने लगे है ओर वो सब मुझे देखकर मेरा नाम लेकर नही बुलाते बल्कि मुझे देखकर मेरा मजाक उडाते हुए मुझे राम राम कहते रहते है,,

वो कहते रहते है की अरे राम राम कहां जा रहा है ??

अरे राम राम खाना खाया या नही ??
अरे राम राम अब सो जा,---

गुरुदेव ईस प्रकार की बाते दूनियावाले मुझे बोलते है ओर मेरा मजाक उडाते है तो मुझे बहूत बुरा लगता है---

उस भक्त की ये सब बातें सुनकर गुरुदेव के ह्रदय मे आनंद भर आया ओर गुरुदेव ने कहा की-- बेटा फिर तु रोता क्यो है ??

ये तो राम जी की बहूत बडी कृपा है तुमपर की तुम्हारे जीवन मे राम नाम की मस्ती आई है
ओर तुझे दुनिया की मजाक वाली बाते सुनकर दुखी नही होना चाहिये बल्कि तुम्हे तो खुश होना चाहिये की तुम्हारी वजह से दूनियावालो के मुख से भी राम राम नाम निकलता है-

उनके मुख से राम नाम निकल रहा है यानि उनका भी कल्याण हो रहा है--

राम नाम की बहुत महिमा है--

कलियुग मे नाम की बहूत महिमा है इसलिए नाम चाहे कैसे भी लो,, नाम हर परिस्थिति मे कल्याण ही करता है---
हे मेरे गुरुदेव.....
मोह लिया आप ने मुझ को ऐसे
कुछ ना और दिखाई दे
राम के रस में मे ऐसे डूबे
हर तरफ राम जी राम राम राम दिखाई दे
🙏🏻राम जी राम राम राम राम🙏🏻

दरियावजी महाराज की वाणीजी



















Thursday 18 October 2018

श्री किशनदासजी महाराज की 'अनुभव गिरा' वाणीजी

अथ श्री किशनदासजी महाराज की गुरु महिमा प्रारंभ ।राम राम ।
   
नमो राम निर्वाण ब्रह्म , सतगुरु सब ही सन्त ।
किशनदास कर जोड़ के, वंदन बहुत करंत (1)       
सतगुरू जन दरियाव सही , मन मान्या मेरे ।
शूरवीर सत वैण कहो , कुण पूठा फेरे  (2)
मेट्या भ्रम अंधेर , किया गुरू ज्ञान उजाला ।
अखंड अमल भरपूर,  सदा संग शिख मतवाल (3)           
राम नाम नित प्रीति , शिष्यगण सुमिरै सारा ।
नैन बैण हरि हेत , सदा साहब का प्यारा  (4)              
खबरदार होशियार, पार पुरूषोत्तम पागी ।
'दरिया ' मेरू उलंघ , सुरती ब्रह्म चरणा लागी (5)                                                   दोहा                                           
निराकार आकार बिच , जहं दरिया का बास ।
अगम अगोचर गम किया, देख्या किसनेदास {१}
छन्द                            
शिष मन को नारेल, मेल्हि गुरु चरणों आगे ।
प्रेम प्रीति जिज्ञास , चाह गुरु चरणों  लागे (1)            
दयावन्त गुरुदेव, अनंत फल शरणे आया ।
भरम कर्म अघ पाप मिटै , गुरु दर्शन पाया (2)               
 जप तीर्थ व्रत दान,  पुण्य फल सुकृत किया ।
सकल धर्म की याद, परम पद गुरु ने दीया  (3)      
होम यज्ञ आचार शील, समता गुरू सेवा ।
वाणी कथा विचार,  दीन बंधु गुरु देवा (4)                
सांख्य योग गुरुदेव अर्थ, अनुभव सुखरासी ।
भक्ति मुक्ति महामोक्ष , अमर अक्षय अविनाशी  (5)                                                
सकल मण्ड का जीव तिरै , गुरु दर्शन परस्यां ।
तारण तरण उदार, पार गुरु दरस्यां (6)                       
सतगुरू शरणै आय , आन दिश जाय अभागी ।
कौन बुझावे दाह , लाय कर्मों की लागी (7)                
 सतगुरू आज्ञा मांग,  शिष्य मुख अमृत पीवे ।
जन्म मरण मिट जाय , ज्योति मिल अक्षय जीवे (8)                 
 दोहा                   
भाग भला शिष्य गुरु मिला , दिल में रखे न दूज ।
 'किशनदास' तन मन अरप , गुरु समर्थ पद पूज {२}
चौपाई                          
बार बार सतगुरू समझावै , ऐसो जन्म बहुरि नहीं आवै । 
राम राम भजले शिष भाई , मुगति होण की जुगति बताई (1)                            
जामण मरण मिटैगा तैरा , यूं सत शब्द मान शिष मेरा ।
सत का शब्द मान शिष लीजै , सतगुरू शब्द कहै सो कीजै (2)                            
गुरू बिन नाम हाथ नहीं आवै ,  गुरू बिन पार कौन पहुंचावै । 
गुरू बिन कथै-बकै सब झूठा , गुरू बिन साहब रहे अपूठा (3)              
गुरु बिन सब तीर्थ फिर आवै , गुरू बिन मुक्ति मूल नहीं पावै ।
 गुरु बिन पांच नाम नित पेखे , गुरु बिन सेवा लगे न लेखे (4)               
गुरू बिन मन मूक ज्ञान विचारे , गुरू बिन भरम बहुत पचहारे । 
गुरू बिन कुण घर भेद बतावै , गुरू बिन ठौर ठीक नहीं पावै (5) 
गुरू बिन अगम निगम कुण बोले ,  गुरू बिन दसूँ द्वार कुण खोले ।
 गुरू बिन भूला जन्म गमावै , गुरू बिन निज तत् हाथ न आवै (6)
गुरु बिन हद में कौन हलावै , गुरु बिन बेहद कौन बतावै । 
गुरु बिन योग युक्त नहीं पावै , गुरु बिन मोक्ष मुक्ति नहीं आवै (7)              
गुरू बिन अन्धा बहुत अलूजै , गुरू बिन सत साहब नहीं सूजै । 
गुरू बिन भेख पहर फिर फूल्या , गुरू बिन आपो आपण भूल्या (8)    
गुरू बिन योग  नहीं बैरागी , गुरू बिन त्यागी भी अणत्यागी । 
गुरू बिन अजरी बजरी करि हैं, गुरू बिन भवसागर में फिरि हैं (9)           
गुरु बिन कौन अष्टांग कमावे,  गुरु बिन कौन प्रसिद्ध कहावे । 
गुरु बिन सिध अगाध न होई , गुरू बिन अलख लखै न कोई  (10)       
गुरू बिन राम नाम कुण लागै , गुरू बिन भव सूता कुण जागै । 
गुरू बिन बहुत चले गए वीरा ,  जम की मार पड़े रहे धीरा (11)      
भव सागर से पार उतारे , महा प्रलय सूं अवश्य उबारे । 
तारण तिरण उद्धारण आया , भाग बड़ा पूरा गुरू पाया (12)
शिष कर जोड़ लग्या गुरु चरणा , कृपया दया मया कर घरणा । 
दया  करी गुरु दर्शन दीया,  तुमरे चरण शरण हम जीया  (13)                  
मैं मति हीन मार्ग नहीं जाण्या , पार ब्रह्म गुरू नहीं पहचाण्या ।
 मैं भूला तुम भेद बताया , तुम साहब मैं शरणे आया (14)      
मैं कर्मी दुष्टि अहंकारी , पतित उधारण पर उपकारी । 
तुम गुरुदेव  अलख अविनाशी , तुम बिन कुण काटे यम फाँसी (15)                    
तुम गुरुदेव निरंजन निर्भय, शिष का शत्रु किया गुरू सब व्यय ।
 तुम गुरुदेव नाथ निरंकारी , शिष भव डूबत लिया उबारी (16)           
तुम गुरूदेव महा सुख दीना , काग पलट हंसा कर लीना ।
 राम नाम मोती चुगाया ,  काग पलट शिष हँस कहाया (17)
गुरू बिन चेला कौन उबारै , गुरु बिन भवसागर कुण तारै । 
गुरु बिन जीव कहो क्यों जावै , गुरु बिन सत अमृत कुण पीवै (18)           
दोहा               
वार पार गुरू गम अगम ,  अवगत अकल अनन्त । 
किशनदास गुरू गम अगम , गुरू जैसा भगवन्त (3)                           
अलख लेख में गुरु नहीं, गुरु है अगम अपार ।
किशनदास वन्दन करै , नमो सिरजन हार (4)           
गुरू बिन अन्धा वे सकल , गुरू बिन मूढ़ अजान ।
 किशनदास गुरू गम बिना , सब नर पशु समान (5)
गुरु बिन भटकत बहु दिन बीता , गुरु बिन स्वाँग रहा सब रीता । 
गुरु बिन सुध-बुध हाथ न आवै , गुरु बिन भुगत-भुगत मर जावै (19)                                        
गुरू बिन माया बहुत नचाया , गुरं बिन जोगी जगत हंसाया । 
गुरू बिन खट् दर्शन ठग बाजी , गुरू बिन मक्कर पंडित काजी (20)      
गुरु बिन जोर कहावै जोसी , गुरु बिन अन्तकाल फिर रोसी । 
गुरु बिन करै कीर्तन रासा , गुरु बिन घर घर फिरे उदासा (21)             
गुरू बिन झालर ताल बजावै , गुरु  बिन माया बहुत मनावै ।
 गुरू बिन कुल मार्ग में बूड़ा , गुरू बिन राम न जाने रूड़ा (22)                       
गुरू बिन आन-देव सब लूटै , गुरु बिन जीव कहो क्यों छूटै । 
गुरु बिन परम पंथ नहीं पावै , गुरु बिन जगत अगत सब जावै (23)          
गुरू बिन कौन सरोदा साजै , गुरु बिन गगन नाद किम गाजै । 
गुरू बिन चंद सूर घर हेरे , गुरू बिन पंच पवन कुण फेरै (24)
गुरु बिन निज निर्वाण न पावै , गुरु बिन अवधि एली गमावै । 
गुरु बिन कुण भव पार लंघावै , कर किरपा करतार बतावै (25)               
शब्द हीन सतगुरू नहीं कीजै , पारस छोड़ पत्थर क्यों लीजै ।
 सतगुरू ऐसा कीजै साधू , पाँचू पेल परम तत्त लाधू (26)     
सतगुरू ऐसा कीजै भाई, परम ज्योति में ज्योति मिलाई ।
 जैसा गुरू तैसा शिष होई , खर से खर बन्ध्या सब कोई  (27)               
  ज्यों दीपक बिन मंदिर अंधारा , यूं सतगुरू बिन साहब न्यारा ।
 'किशनदास ' गुरु अधम उद्धारे , आप तिरै औरो को तारे (28)         
   ऐसा है गुरुदेव हमारा , ' किशनदास ' सतगुरू का चेरा ।
 निराकार निर्भय नारायण, 'किशनदास ' पहुँचा पारायण (29)                                          
   जामण मरण महा डर मेट्या , 'किशनदास ' पूरा गुरु भेट्या । 
ब्रह्म उजागर सतगुरू पाया, 'किशनदास ' गुरु शरणै आया  (30)             
   दोहा                   
   'किशनदास ' ऐसो जनम , बार बार नहीं होय ।
   सावधान साहब भजो , खबरदार! सब कोय (6)   
   राम-राम रसना रटौ , जब लग पिंजर श्वास ।
    'किशनदास 'कीजै भजन होय दासन को दास (7)        

 इति श्री किशनदासजी महाराज की 'अनुभव गिरा ' संपूर्ण । राम राम 

Monday 9 July 2018

सतगुरु की आवश्यकता

सतगुरु की आवश्यकता

दरिया साहब ने भी कबीर, दादू आदि निर्गुण मार्गी संतों की तरह आत्मसाक्षात्कार या परम- पद की प्राप्ति के लिए सदगुरु की ही मुक्ति का दाता बतलाया है।

उनकी मान्यता है कि सतगुरु ही हरि की भक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं तथा शिष्य में पड़े संस्कार- रुप बीज को अंकुरित कर उसे पल्लवित एवं पुष्पित करते हैं --

""सतगुरु दाता मुक्ति का दरिया प्रेम दयाल।''

-- सतगुरु का अंग

दरिया का मान्यता है कि गुरु प्रदत्त राम- शब्द तथा ज्ञान द्वारा ही परमात्मा की प्राप्ति संभव है। शास्रों के पठन तथा श्रवण से प्राप्त ज्ञान द्वारा आत्म- साक्षात्कार संभव नहीं, क्योंकि शास्र द्वारा प्राप्त ज्ञान वैसा ही निस्सार एवं प्रयोजतनहीन है, जैसा हाथी के मुँह से अलग हुआ दाँत। हाथी का दाँत जब तक हाथी के मुंह से स्वाभाविक रुप में स्थित है, तभी तक वह शक्ति व बलसंयुत है और किसी गढ़ अथवा पौल ( दरवाजा ) को तोड़ने में सक्षम है, टूटकर मुँह से अलग होने पर निस्सार है।

दाँत रहे हस्ती बिना, तो पौल न टूटे कोय।
कै कर धारे कामिनी कै खैलारां होय।।

-- साध का अंग

Sunday 8 July 2018

आचार्य प्रार्थना

आचार्य प्रार्थना                          

गही टेक एकं, उभे अंक सारं, अहो निश ध्यानं !
रकारं मकारं, छकै प्रेम छाकं, रीत्ता ठाम भरिया !
नमो देव दरिया, नमो देव दरिया (१).                             

उदे ब्रहम बाणी, गुणां जीत भारी, जपे जाप अजपा !
सदा धयान धारी, हुँते शुंन बासी, जठै बास करिया !
नमो देव दरिया नमो देव दरिया (२).                    

बड़े तत्व वादी, विग्यानं विदेहं, नहिं काल जालं !
निर्वाण नरेहं, ऐसा ब्रह्म रूपी, जुरा नाहीं मरिया !
नमो देव दरिया नमो देव दरिया (३).                            

अलेखं अभेखं, नरेखं न काया, अजंगं अभंगं !
अजुणी न आया, मिले आप आपं ब्रह्मानन्द परिया!
नमो देव दरिया नमो देव दरिया (४).                              

अलंगु अभंगु, अखंडं अछेपं, अनातं आवातं !
अभेतं अखेपं, रता ब्रह्म जापं, सुरत शब्द धरिया !
नमो देव दरिया नमो देव दरिया (५).                            

अजातं-अवातं, अघातं अपानं, अमानं अपापं !
नितापं निधानं, अडोलं अतोलं, एेसो तत्व गरिया !
नमो देव दरिया नमो देव दरिया (६)                             

तज्यो भ्रम भेखं, धरयो एक तारं, किये बस पांचं !
पचिशूं विकारं, जीते द्वंद बादं, तिहुँ ताप हरिया !
नमो देव दरिया नमो देव दरिया (७).                             

भई जीत मोक्षं, अनुभव ग्यांन स्वादी, हुँते संत आगे !
ईसा जो समाधी, सिंधों सिंध मेला, निर्भेय नाद घुरिया !
नमो देव दरिया नमो देव दरिया (८).                    

आये राज चरणां, तिरे हंस केता, किये आप जैसा !
बड़े तत्व वेता, मिटैे जन्म मरणां, सर्वे काज सरिया !
नमो देव दरिया नमो देव दरिया (९).                        

भूजंगी परियाप्तं, अहो निश गावे, लहै तत्व ग्यानं !
अभै पद पावे, मिले जीव शिवं, कटे कर्म करिया !
नमो देव दरिया नमो देव दरिया (१०).
                       
"इति श्री आचार्य प्रार्थना संपूर्ण "

      

Friday 6 July 2018

63 . स्वर्ग की प्राप्ति का उपाय:

63 . स्वर्ग की प्राप्ति का उपाय:

जीवन को सफल बनाने का एकमात्र उपाय ईश्वर आराधना ही है । ईश्वर आराधना से ही मानव स्वर्ग की प्राप्ति कर सकता है । मानव जीवन अत्यंत दुर्लभ है । इसकी सार्थकता के लिए हमे हर पल प्रभु का स्मरण रखना चाहिये तथा अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए । जाति प्रान्त भाषा व सम्प्रदाय की समस्त कुटिल भावनाओं और वासनाओं को मिटाकर पवित्र हृदय से ईश्वर स्मरण करना चाहिए । पारिवारिक एवं माया मोह के बंधन से मुक्त ईश्वर आराधना स्वर्ग का प्रसस्थ मार्ग है ।

*माला फेरे क्या भया , मन का टेकर भार। दरिया मन को फेरिये , जामे बसे विकार ।।*

✍रेणपिठाधीश्वर श्री 1008 आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज,,,,, कर्त,,,,," सागर के बिखरे मोती "

🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷🌿🌷

62. भेदभाव मिटाकर मानव मात्र को प्रेम दीजिये :

62. भेदभाव मिटाकर मानव मात्र को प्रेम दीजिये :

हमे जातीय, प्रांतीय भाषायी एवं साम्प्रदायिक भेद भाव को मिटा कर मानव मात्र के साथ प्रेम करना चाहिये । राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के लिए सभी वादों को निरस्त्र करके प्राणी मात्र को गले लगाना चाहिए । क्योंकि परम की पवित्र भावनासे ही हम हमारे राष्ट्र को एकता के सूत्र में बंध सकते है । भगवान राम ने न केवल मनुष्यों को बल्कि पशुओं को भी एकता के सूत्र में बांधकर समाज व देशद्रोही रावण का संहार करके लोगों के सामने एकता का उत्कृष्ठ आदर्श प्रस्तुत किया ।

*✍रेणपिठाधीश्वर श्री 1008 आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज " कर्त " "सागर के बिखरे मोती"*

61 . धर्म तो केवल मानव धर्म ही है :

61 . धर्म तो केवल मानव धर्म ही है :

संसार मे धर्म तो केवल मानव धर्म ही है अन्य जीतने भी धर्म है वे तो भिन्न रुचि व पूजा पद्धतियों में बंटे हुए समुदाय है । धर्मो के आपसी भेद भाव समाप्त किये बिना सदभावना स्थापित नही हो सकेगी। इसके लिए यदि धर्म गुरु नेता , शिक्षक व माता पिता मिलकर सही दिशा में सुधार का प्रयास करे तो आशा जनक एकता स्थापित हो सकती है ।  लोगो की कथनी व करनी में बहुत अंतर हो रहा है , सब्जी लोग हिंसातनक प्रवतियो तथा नैतिक पतन की और अग्रसर हो रहे है । विशेष कर संकुचित स्वार्थ भावना वाले संप्रदायों के लोग मानवता को भूलते जा रहे है । सबको निडरता से जीने के अवसर देने के स्थान पर घृणा व ईष्या से भयभीत करने की धृणित मानोव्रति बढ़ती जा रही है । अतः हमें यही सोचना है कि हम न तो हिन्दू है न मूसलमान न सिख न ईसाई है हम तो केवल भारतीय मानव है अतः हमारा धर्म तो केवल मानव धर्म है ।

किरकांटया किस काम का , पलट कर बहु रंग ।
जन दरिया हंस भला , जद तद एके रंग ।।

*रेणपिठाधीश्वर श्री 1008 आचार्य श्री हरिनारायण जी शास्त्री,, कर्त,,🌷सागर के बिखरे मोती🌷*

60. दुखी आत्मा को सुख पहुँचाना ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है

60. दुखी आत्मा को सुख पहुँचाना ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है

भारत मे धर्म सम्प्रदाय व जाति के नाम पर समाज मे जो जहर घोला जा रहा है उसके पीछे अप्रत्यक्ष रूप से कुछ विदेशी एजेंसियां कार्य कर रही है । ऐसी विषम व विकट परिस्थितियों में स्नेह व सदभाव की प्रबल अवश्यकता है । वर्तमान परिस्तिथियों में पत्रकार अपने पत्रों में स्नहे व सदभाव बढ़ाने वाले समाचारों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने में सक्रीय भूमिका का निर्वाह कर सकते है । आज पंजाब व अन्य प्रांतों की समस्या केवल इन प्रान्तों की ही समस्या नही है यह तो सम्पूर्ण भारत की समस्या है अंगुली में दर्द होता है तो पूरे शरीर को कष्ट पहुचता है कोई भी धर्म अपने अनुयायो को यह शिक्षा नही देता है कि वह किसी अन्य धर्म की निंदा करे। धर्म का अर्थ परोपकार करना होता है । इसी में मानव कल्याण की भावना निहित होती है । दुखी आत्मा को केवल मानव समझकर सुख पहुचना ही श्रेष्ठ धर्म है । धर्म व राष्ट्र एक ही गाड़ी है जिसमे सभी धर्म सम्प्रदायो के श्रद्धालु एवं अनुयायी सवार होकर सम्पूर्ण देश का कल्याण कर सकते है ।

रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री" कर्त "सागर के बिखरे मोती"

59. व्यवहार शुद्ध किये बिना धर्म मे शुद्धता नही:

59. व्यवहार शुद्ध किये बिना धर्म मे शुद्धता नही:

यदि व्यक्ति का समाज के प्रति व्यवहार शुद्ध नही है तो धर्म मे शुद्धता कैसे आएगी । इसलिए आवश्यक है कि धर्म पालन के लिए पहले शुद्ध सद व्यवहार की भावना जीवन मे अपनाये। आज अपने आप को धार्मिक कहलाने वाला व्यक्ति अधिक अधार्मिक बनता जा रहा है । जबकि नास्तिक व्यक्ति के जीवन मे धार्मिकता का सद्व्यवहार प्रगट हो रहा है । केवल उपासना व पुजा करना ही धर्म नही है । पूजा व उपासना चाहे कितनी ही करते हो किन्तु व्यवहार में आपने धर्म की महत्ता को स्वीकार नही किया तो उपासना व पूजा का महत्व नही रहेगा । व्यक्ति को वास्तव में धार्मिक बनना है तो उसको अपनी आदतों में बदलाव लाना होगा । और व्यवहारिक ज्ञान को प्राप्त करना होगा ।
*भरा नही जो भावों से , बहती जसमे स्नहे धार नही । वह हृदय नही पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नही।।*

रेण पीठाधीश्वर  "श्री हरिनारायण जी शास्त्री" कर्त "सागर के बिखरे मोती"

Saturday 20 January 2018

57. साम्प्रदायिकता का उन्माद बढ़ रहा है


*57. साम्प्रदायिकता का उन्माद बढ़ रहा है:

जातीय विद्वेष साम्प्रदायिक उन्माद, स्वार्थ एवं पारस्परिक टकराव के कारण हम राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक विरासत को खाते जा रहे है और मानव की मानव से दूरी बढ़ती जा रही है । आज धर्म के नाम पर पाखंड , अन्धविश्वाश एवं चमत्कारिक प्रसंगों का शिकंजा कसता जा रहा है हमें इस समय उन धर्मगुरुओं एवं राष्ट्रीय नेताओ की आवश्यकता है जो भाषा सम्प्रदाय, क्षत्रियता से पृथक रहकर मानव मात्र को प्रेम एवं राष्ट्रीयता एकता का पाठ पढ़ा सकें ।

*संगच्छवध संवधवम सं वो मनांसि जानताम । देवा भागम यथा पूर्वे संजानाना उपासते।।*

रेण पीठाधीश्वर श्री हरिनारायण जी शास्त्री,, कर्त,,सागर के बिखरे मोती

🌹🍃🌹🍃🌹

56. हिन्दू संस्कृति का विश्व की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान:

🌷🍃🌷🍃🌷🍃🌷

*56. हिन्दू संस्कृति का विश्व की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान:*

✍भगवान कृष्ण का प्राकट्य दिवस जन्माष्टमी भारत का एक विशेष पर्व है । आर्य सनातन हिन्दू संस्कृति सभ्यता का विश्व की सुरक्षा समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । भारत के प्रतियेक ग्राम नगर आदि में भागवत कथा प्रवचन भगवान कृष्ण के जीवन चरित्र से संबंधित झांकिया एवं नाटकों आदि के द्वारा विश्व देश धर्म जाति का अतीत की तरह वर्तमान में भी बहुत लाभ हो रहा है । महापुरूषो की जयंतिया भगवान की लौकिक अलौकिक सत्ता के प्रति विशेष आस्था एवं विश्वास का भाव प्रतिपादित करके आत्म रक्षा को उन्नत करती है यह वह प्रकाश पुंज है जिसके आचरण से उस समय के देश व धर्म रक्षक शासकों ने देश एवं समाज की भयंकर परिस्थितियों से रक्षा की थी । आज भी हम उन्ही महापुरूषो के गौरवशाली जीवन से सुरक्षित है ।
         जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण ने अवतार धारण कर के देश जाति व धर्म को नष्ट करने वाले राक्षसों का संहार किया था । इसी कारण भारत की संस्कृति सभ्यता की रक्षा हुई  । भगवान कृष्ण के दिये हुए गीता के उपदेश से ऊंच नीच का भेद भाव समाप्त होता है । गीता ज्ञान से प्रतियेक जीव इस लोक में और परलोक में बह सुखी हो सकता है ।

*रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री",,,,,,कर्त,,,,✍"सागर के बिखरे मोती"📖*