Monday 9 July 2018

सतगुरु की आवश्यकता

सतगुरु की आवश्यकता

दरिया साहब ने भी कबीर, दादू आदि निर्गुण मार्गी संतों की तरह आत्मसाक्षात्कार या परम- पद की प्राप्ति के लिए सदगुरु की ही मुक्ति का दाता बतलाया है।

उनकी मान्यता है कि सतगुरु ही हरि की भक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं तथा शिष्य में पड़े संस्कार- रुप बीज को अंकुरित कर उसे पल्लवित एवं पुष्पित करते हैं --

""सतगुरु दाता मुक्ति का दरिया प्रेम दयाल।''

-- सतगुरु का अंग

दरिया का मान्यता है कि गुरु प्रदत्त राम- शब्द तथा ज्ञान द्वारा ही परमात्मा की प्राप्ति संभव है। शास्रों के पठन तथा श्रवण से प्राप्त ज्ञान द्वारा आत्म- साक्षात्कार संभव नहीं, क्योंकि शास्र द्वारा प्राप्त ज्ञान वैसा ही निस्सार एवं प्रयोजतनहीन है, जैसा हाथी के मुँह से अलग हुआ दाँत। हाथी का दाँत जब तक हाथी के मुंह से स्वाभाविक रुप में स्थित है, तभी तक वह शक्ति व बलसंयुत है और किसी गढ़ अथवा पौल ( दरवाजा ) को तोड़ने में सक्षम है, टूटकर मुँह से अलग होने पर निस्सार है।

दाँत रहे हस्ती बिना, तो पौल न टूटे कोय।
कै कर धारे कामिनी कै खैलारां होय।।

-- साध का अंग

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