Wednesday 4 January 2023

गुरुकृपा सन्देश ।। सत्संग के सूत्र ।। आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज के सत्संग से

जीव और परमात्मा के बीच जो दूरी है वह कई जन्मो से है, कई कल्पो से है , सतगुरू हमे मंत्र बताकर उपासना बताकर वह दूरी मिटाते है।

ईश्वर का महाप्रसाद है मानव जीवन।

बिना गुरू के कर्म नही कट सकते हैं।

मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है।

राम नाम से ही आत्मा का पोषण होता है। 

प्राणिमात्र में परमात्मा को देखना चाहिए।

हमारी चिन्तनधारा आध्यात्मिकता की ओर होनी चाहिए।

भगवान का परिचय सतगुरू देते हैं।

राम नाम स्मरण से करोड़ों पाप कर्म जलकर नष्ट हो जाते हैं।

संतो के संग से मानव का कल्याण होता है। 

कलियुग में राम नाम जाप को मुक्तिदाता माना गया है।

राम नाम रुपी औषधि से ही मन के विकारों पर विजय पाई जा सकती है।

राम नाम जाप भगवत् प्राप्ति का सरलतम उपाय है।

नम्रता और परमार्थ के साथ जीवन जीना चाहिए।

निष्काम भाव से की जाने वाली सद्गुरू की सेवा और साधना से भगवान भक्त के वश में हो जाते हैं। भगवान स्वयं साधक के आगे झुककर सेवक बन जाते हैं।

ह्रदय मे बैठे शत्रु को मारे , वो ही शूरवीर है।

राम नाम का निरंतर स्मरण करते रहने से जीवन में आध्यात्मिकता आती है।

गुरू जैसा दूसरा कोई उपकारी नहीं हो सकता।

राम नाम के संकिर्तन में सब समस्याओं का समाधान भरा है।

जिस शरीर से भजन नही हो रहा वो कुडा घर की तरह है।

राम शब्द में कोटि कोटि ब्रम्हान्ड समाया हुआ है।

 जो व्यक्ति हमेशा राम का चिंतन करता है भगवान उसको संभालते है।

डीमांड(मांग) भगवान की करनी चाहिए संसार की नही।

जीभ पे लगा हुआ घाव जल्दी भर जाता है परंतु जीभ से दिया घाव जीन्दगी भर नही भरता , इसलिए जीभ का संभलकर उपयोग करना चाहिए।

दुखो के सागर में सद्गुरू ही व्यक्ति के साथ खडे़ रहकर शिष्य को भवसागर पार उतारते हैं।

सद्गुरू की शरण में जाने से व्यक्ति के जीवन में अलौकिक क्रान्ति आती है।

ये मानव तन हमे मिला है जिससे मनुष्य नर से नारायण बन जाता है। हमे इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

सारे शास्त्रो का सार भगवत नाम स्मरण है।

आशा परम दुःख का कारण है निराशा परम सुख का कारण है ईश्वर को छोडकर और किसी से आशा नही करनी चाहिए।

राम नाम स्मरण से करोडो़ं पाप कर्म जलकर नष्ट हो जाते हैं।

जो व्यक्ति भगवान के नाम में विश्वास करता है, वह अवश्य ही जीवन में सफलता अर्जित करता है।

हमे भजन करके अंतकरण को पवित्र करना चाहिए। अंतकरण पवित्र होंगा तभी परमात्मा हमारे अंदर निवास करेंगे।

राम कृपा को आसरो, राम कृपा को जोर ।
राम बिना दिखे नहीं, तीन लोक में ओर।।

शरीर को मै मानना सबसे बडा अपराध हैं।

ज्ञान सर्वत्र है उसे लेने के लिए पात्रता होनी चाहिए।

ह्रदय में बैठे शत्रु को परास्त करना मुश्किल है। लेकिन गुरू की कृपा से ही ये संभव है

जीवन मे सतगुरु ही आधार हैं।

अनंत कोटि ब्रम्हान्डनायक परमात्मा की प्राप्ति कराने में सच्चे सहायक केवल सतगुरू ही है।

गुरू के अंतःकरण से निकला हुआ शब्द ही 'गुरू' का स्वरूप है।

आध्यात्मिकता से जुड़े बिना सारा जीवन व्यर्थ होगा।

धनवान तो वही है जो रामनाम का धन संग्रह करता है।

राम राम रटते रहो तो परिणाम अपने आप प्राप्त हो जाएगा।

सच्चे विश्वास के साथ जो सतगुरू के चरणों का आश्रय ले लेता है उसका कल्याण निश्चित है।

गुरू वही है जो स्वयं तिरता है और दूसरो को भी तारता है।

सतगुरू की महिमा इसीलिए है की हम उनसे उपकृत हैं तथा उनका ऋण हम उतार नही सकते।

अन्तर्यामी भगवान सत्य संकल्प को अवश्य पूरा करते हैं।

सत्संग एंव सतगुरु ही जीवन के सही मार्गदर्शक हैं।

जो शिष्य गुरू कि गर्जना को सहन करता है वो परम पद प्राप्त करता है।

सतगुरू शिष्य को ऐसा अक्षय दान देते है, जिसका कभी विनाश नहीं होता है तथा जिसके द्वारा शिष्य सदा ही आनंद मे गोता लगाता रहता है।

जीवन ऐसा बनाना चाहिए जिसे देखकर प्रत्येक व्यक्ति आकर्षित हो।

सतगुरू के शब्द रूपी जल को ह्रदय में बनाए रखने से शिष्य की जन्म जन्मांतरों की प्यास बुझ जाती है।

सतगुरू का स्वरूप छोटा सा दिखता है परन्तु उनके अन्दर महान आध्यात्मिक धन भरा रहता हैं।

भगवदनाम (रामनाम) रूपी चिंतामणि के द्वारा आत्मा को जानना ही मानव जीवन की उपयोगिता है।

हम सब परमात्मा की संतान है।

संसार परिवर्तनशील है।

अहंता ओर ममता ही सब दुखो की मूल है।

 ईश्वर से अपना संबंध पहचानो और लोगों से ईश्वर के नाते व्यवहार करो तो इसी जन्म में कल्याण हो जायेगा ।

जो अपने मन के दोष निकालने के लिए तत्पर रहता है वह इसी जन्म में निर्दोष नारायण का प्रसाद (आत्मसाक्षात्कार) पाने का अधिकारी हो जाता है ।

गुरु की वाणी को निर्णायक होकर नही,निष्ठावान होकर सुनना चाहिए।

सत्संग मानवता का निर्माण करती है।

वर्तमान का सदुपयोग ही भूत और भविष्य की चिंता मिटा देता है।

ईश्वर स्मरण करने वाला साधक ही इस मृत्यु के जाल से बच सकता है।

नाशवान शरीर की सुंदरता का अभिमान ने करके शरीर के द्वारा राम भजन व सत्संग करना ही शरीर की उपयोगिता है।