Wednesday 29 April 2015

सुमिरण का अंग ।।दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी।।

दरिया सुमिरै राम को,कर्म भरम सब खोय।
पूरा गुरु सिर पर तपै,विघन न व्यापे कोय।।
रामझड़ी लागी रहै,रात दिवस एक धार।
कर्म ढूंढ वा खेतसी,पड़तां कितीयक बार।।
बिगड़ी जन्म अनेक की, सुधरै अब ही आज।
होय राम को नामजप,तुलसी तज कुसमाज।।
राम बिना फीका लगै,सब किरिया सास्तर ग्यान।
दरिया दीपक कहा करे,उदय मया निज भान।।
दरिया सूरज उगिया,नैन खुला भरपूर।
जिन अंधे देखा नही,उनसे साहिब दूर।।
दरिया सूरज ऊगिया,चँहु दिस भया उजास।
नाम प्रकासे देह में,तौ सकल भरम का नास।।
आन धर्म दीपक जिसा,भरम न होय विनास।
दरिया दीपक क्या करै,आगे रवि परकास।।
दरिया सुमिरै राम को,दूजी आस निवार।
एक आस लागा रहै,तो कदे न आवै हार।
राम कृपा को आसरो,राम कृपा को जोर।
राम बिना दिखे नही,तीन लोक में ओर।।
जे तूं चावे मुक्ति को,छोड़ जगत की आस।
उलझ रहयो उलझाड़ में, बीना भक्ति विस्वास।।
दरिया नरतन पाय कर,किया चाहे काज।
राव रंक दोनों तरै,बैठे नाम जहाज।।
नाम जहाज बैठे नही,आन करै सिर भार।
दरिया निश्यच बहेंगे,चौरासी की धार।।
जन्म अकारथ नाम बिन,भावै जान अजान।
जन्म मरन जम काल की,मिटै न खेंचातान।।
मुसलमान हिन्दू कहा,षट् दरसन रंक राव।
जन दरिया निज नाम बिन,सब पर जम का डाव।।
सुर्ग मिर्त पाताल कहा,कहा तीन लोक विस्तार।
जन दरिया निज नाम बिन,सभी काल को चार।।
जो कोई साधू गृही में,माहि राम भरपूर।
दरिया कह उस दास की,मैं चरनन की धुर।।
बाहर बाना भेष का,माहि राम का राज।
कह दरिया वे साधवा,है मेरे सिर का ताज।।
राम सुमिर रामहि मिला,सो मेरे सिर का मौर।
दरिया भेष बिचारिये,खेर मैर की ठौर।।
दरिया सुमिरै राम को,कोट कर्म की हान।
जम और काल का भय मिटै,ना काहू की कान।।
दरिया सुमिरै राम को,आतम को आधार।
काया काची काँच सी,कंचन होत न बार ।।20।।
दरिया राम संभालते,काया कंचन सार।
आन धर्म और भर्म सब,डाला सिर से भार।।
दरिया सुमिरै राम को,सहज तिमिर का नास।
घट भीतर होय चाँदना,परम् जोति परकास।।
सतगुरु संग न संचरिया,राम नाम उर नांहि।
ते घट मरघट सारिखा,भुत बसै ता माहिं।।
राम नाम ध्याया नही,हुआ बहुत अकाज।
दरिया काया नगर में,पंच भुत का राज।।
पंच भुत के राज में,सब जग लागा धुंध।
जन दरिया सतगुरु बिना,मिल रहा अंधो अंध।।
दरिया सब जग आँधरा,सूझे सो बेकाम।
सुझा तब ही जानिये,जा को दरसे आतम राम।।
मन बच काया समेट कर,सुमिरै आतम राम।
दरिया नेड़ा निपजै,जाय बसै निज धाम।।
ध्रु लोक ध्रु राम कह,कहै पताला सेष।
दरिया परगट नाम बिन,कहु कौन आयो देख।।30।।
लोह पलट कंचन भया,कर पारस को संग।
दरिया परसै नाम को,सहजहि पलटे अंग।।
अपने अपने इष्ट में,राच रहा सब कोय।
दरिया रता राम सूं,साध सिरोमनी सोच।।
दरिया धन वे साधवा,रहै राम लौ लाय।
राम नाम बिन जीव को,काल निरन्तर खाय।।
दरिया काया कारवि,मौसर है दिन चार।
जब लग साँस सरीर में,तब लग राम संभार।।
राम नाम रसना रटै,भीतर सुमिरै मन।
दरिया ये गत साध की,पाया नाम रतन।।
दरिया दूजे धर्म से,सन्सय मिटै न सुल।
राम नाम रटता रहै,सब धर्मो का मूल।।
लख चौरासी भुगत कर,मानुष देह पाई।
राम नाम ध्याया नही,तो चौरासी आई।।
दरिया नाके नाम के,बिरला आवै कोय।
जो आवै तो परमपद,आवागवन न होय।।
दरिया राम अगाध है,आतम का आधार।
सुमिरत ही सुख ऊपजे,सहजहि मिटै विकार।।
राम दड़ी चोड़े पड़ी,सब कोई खेले आय।
दावा नही है सन्तदास,जिते सो ले जाय।।
दरिया राम संभालता,देख किता गुन होय।
आवागवन का दुख मिटै,ब्रम्हा परायन सोय।।40।।
मरना है रहना नही,जा में फेर न सार।
जन दरिया भय मानकर,अपना राम संभार।।
सन्तदास संसार में,देत मड़ा को दाह।
खुद मरने का भय नही,हो रहा बेपरवाह।।
कहा कोई बन बन फिरै,कहा लियाँ कोई फौज।
जन दरिया निज नाम बिन,दिन दस मन की मौज।।
दरिया आतम मल भरा,कैसे निर्मल होय।
साबुन लावे प्रेम का,राम नाम जल धोय।।
दरिया इस संसार में,सुखी एक सन्त।
पिये सुधारस प्रेम से,राम नाम निज तन्त।।
राम नाम निस दिन रटै,दूजा नही दाय।
दरिया ऐसे साध की,मैं बलिहारी जाय।
दरिया सुमिरन राम का,देखत भूली खेल।
धन धन वे साधवा,जीना लिया मन मेल।।
दरिया सुमिरन राम का,कीमत लखै न कोय।
टूक इक घट में संचरे,पाव वस्तु मण होय।।
दरिया सुमिरे राम को साकट नाही सुहात।
बीज चमके गगन में,गधिया बावै लात।।
फिरी दुहाई सहर में,गए सब भाज।
सत्रु फिर मित्र भया,हुआ राम का राज।।
जो कुछ थी सोहि बनी,मिट गई खेंचा तान।
चोर पलट कर साह भै,फिरी राम की आन।50।।

Tuesday 21 April 2015

गुसा जलता हुआ अंगार है

गुस्सा रहना ऐसा हैं, जैसे आपने हाथ में जलता
हुआ कोयला पकड़ रखा हैं. इस उद्देश्य से की
किसी और पर फेकेंगे. पर जलते आप खुद ही हैं.