Monday 17 August 2015

भजन -अमृत नीका कहै सब कोई, पीये बिना अमर नहीं होई

अमृत नीका कहै सब कोई,
पीये बिना अमर नहीं होई ।।१।।
कोई कहै अमृत बसै पताला,
नाग लोग क्यों ग्रासै काला ।। २ ।।
कोई कहै अमृत समुद्र मांहि
बड़वा अगिन क्यों सोखत तांहि ।। ३ ।।
कोई कहँ अमृत शशि में बासा,
घटे बढे क्यों होई है नाशा । । ४ ।।
कोई कहै अमृत सुरगां मांहि
देव पियें क्यों खिर खिर जांहि। । ५ ।।
सब अमृत बातों की बाता,
अमृत है संतन के साथा ।। ६ ।।
'दरिया' अमृत नाम अनंता,
जा को पी-पी अमर भये संता ।। ७।।

Monday 10 August 2015

चिंतामणि का अंग श्री दरियाव दिव्य वाणी जी

दरिया चिंतामणि  रतन ,धरयो स्वान पे जाय।
स्वान सूंघ काने भया, टूकां ही की जाय ।।

आचार्य श्री कहते हैं जब यह चिन्तामणि कुत्ते के सामने रखी गयी
तो कुता बेचारा चिन्तामणि के पास आया, उसे सुंघा तथा सूंघकर दूर
हो गया । क्योंकि उसके मन में तो पेट भरने हेतु रोटी प्राप्त करनें की
इच्छा थी है । अत: यदि रोटी का टुकडा मिलता तो उसे कुछ लाभ
ही होता । इस प्रकार से अज्ञानी कुत्ता चिंतामणि के महत्व और कीमत
को नहीं समझ पाया । इसी प्रकार आज महापुरुष चिन्तामणि रूपी
भगवन्नाम के महत्व के विषय में समझाते रहते है तथा जगह जगह
वह चिन्तामणि रत्न बिखेरते रहते है परन्तु कोई जिघासु होता है वही इसे
प्राप्त कर सकता है अन्यथा आज सारा संसार इस चिन्तामणि का
अतिक्रमण कर रहा है । चिंतामणि प्राप्त होने पर भी इसका महत्व नहीं
समझने के कारण से लोग इसका त्याग करते जा रहे है । जब तक
परमात्मा की किमित के विषय में हमें ज्ञान नहीं है तब तक हम परमात्मा
के नाम को स्वीकार नहीं कर रहे है । परन्तु जब कभी सतगुरु की कृपा
से हमे भगवन नाम की जानकारी हो जायेगी । तब हम एक  क्षण
के लिये भी नाम को अपने हदय से निकाल नही पाएंगे ।