Friday 29 May 2015

Sri Dariyav ji maharaj ki divya Vani .mishrit sakhi

आचार्यश्री दरियावजी महाराज इस शरीर के हानि और लाभ, इन
दो पक्षों का वर्णन करते हुए कह रहे है कि हमारा यह शरीर अत्यंत
महिमामय भी है तथा यही शरीर नारकीय अवगुणों से भरा हुआ
पतन कारक भी है । इस देव दुर्लभ मानव शरीर की महिमा केवल इसके
सदुपयोग से ही है । शरीर का सदुपयोग करने से मानव जीवन का परम
लाभ ईश्वर प्राप्ति-मोक्ष है । वास्तव में हानि एंव लाभ ये दो ही मानव शरीर के
विशेष पक्ष है तथा ये दोनों ही पक्ष शरीर के सदुपयोग पर आश्रित है । मानव
के श्रेष्ठ आचरण उसके सदुपयोग पक्ष को द्योषित करते हैं जैसे-राम भजन,
ध्यान,सत्संग,महापुरषो के आदेश का पालन,सन्त सेवा,गोसेवा,
परोपकार इत्यादि।

Sunday 24 May 2015

।।मिश्रीत साखी।। श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी जी

आचार्यश्री कहते है कि आज हमारे जीवन में दुखों का सिलसिला
जारी है परन्तु इन दुःखो का अनुभव तब तक ही है जब तक कि हमारे
अंत:करण में राग द्वेष है तथा हम अपने और पराये की सीमा में बंधे
हुए है । अत: जब तक यह पक्ष और अपक्ष है, तब तक दुखी होना पडेगा
श्री मद भगवद्गीता में भगवान कहते है कि जय पराजय, लाम-हानि
तथा हर्ष शोंक में वही सम रह सकता है, जिसने महापुरुषों का संग किया
है तथा जिसने राम नाम को ही सर्वोपरि माना है । जिस व्यक्ति ने अपने
जीवन में भगवद् नाम को ही प्राथमिकता दी है, वह किसी भी परिस्थिति
में दुखी नहीं हो सकता । इस प्रकार से जब एक ही राम का राज होगा,
है तभी हम सुखी हो सकते है क्योंकि यह राम ऐसा है…

Wednesday 20 May 2015

मिश्रित साखी श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी

आचार्य श्री कहते है कि बातों ही बातों में ये दिनरात जा रहे हैं
तथा शरीर की अवधि पूरी होनेवाली है । अत: यदि भजन नहीं किया
तो बाते करने में ही सारा जीवन बरबाद हो जाएगा । बातूने व्यक्ति से
तो वह आलसी व्यक्ति अच्छा है जो मौन बैठा रहता है तथा कुछ भी
नहीं करता है । क्योंकि वह पाप तो नहीं करता है । निन्दक व्यक्ति तो
दूसरों की निन्दा करके उनके पापों को धोकर स्वयं पीता है । आज आप
भजन करने बैठते हो तो आपको एक घंटा भी चौबीस घंटे के बराबर
लगने लगता है । मन में ऐसी अटपटी भी होती है कि कब समय पुरा
होगा ? परंतु बाते करते हुए सारी रात बीत जाए तो आपको नीन्दे भी
नहीं आएगी क्यों कि बातों में बडा मजा आता है । इस प्रकार से इन
सांसारिक व्यर्थ की बातों में बडा मजा आता है । इस प्रकार से इन
सांसारिक व्यर्थ की बातो में हमारी जिदंगी बहुत बरबाद हो रही है।

Saturday 16 May 2015

दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी जी

हाथ काम मुख राम है, हिरदे साची प्रीत ।
जन दरिया गृही साध की, याहि उत्तम रीत ।।
आचार्य श्री गृहस्थीयो के लिए बहुत ही सुंदर बात कह रहे है की
आपको भगवा वेश धारण करके  घर बार छोड़कर वन में जाने की
आवश्यकता नहीं है क्योंकि घर में रहते हुए भी कल्याण संभव है । तुम
" हाथों से कर्म करते रहो तथा मुख से राम-राम काते रहो और
अनुकुलता-प्रतिकूलता दोनों के प्रति समभाव रखकर अपना कर्तव्ये कर्म
करते रहो तो सहज ही मुक्ति हो जाएगी ।