आचार्यश्री कहते है कि आज हमारे जीवन में दुखों का सिलसिला
जारी है परन्तु इन दुःखो का अनुभव तब तक ही है जब तक कि हमारे
अंत:करण में राग द्वेष है तथा हम अपने और पराये की सीमा में बंधे
हुए है । अत: जब तक यह पक्ष और अपक्ष है, तब तक दुखी होना पडेगा
श्री मद भगवद्गीता में भगवान कहते है कि जय पराजय, लाम-हानि
तथा हर्ष शोंक में वही सम रह सकता है, जिसने महापुरुषों का संग किया
है तथा जिसने राम नाम को ही सर्वोपरि माना है । जिस व्यक्ति ने अपने
जीवन में भगवद् नाम को ही प्राथमिकता दी है, वह किसी भी परिस्थिति
में दुखी नहीं हो सकता । इस प्रकार से जब एक ही राम का राज होगा,
है तभी हम सुखी हो सकते है क्योंकि यह राम ऐसा है…
जारी है परन्तु इन दुःखो का अनुभव तब तक ही है जब तक कि हमारे
अंत:करण में राग द्वेष है तथा हम अपने और पराये की सीमा में बंधे
हुए है । अत: जब तक यह पक्ष और अपक्ष है, तब तक दुखी होना पडेगा
श्री मद भगवद्गीता में भगवान कहते है कि जय पराजय, लाम-हानि
तथा हर्ष शोंक में वही सम रह सकता है, जिसने महापुरुषों का संग किया
है तथा जिसने राम नाम को ही सर्वोपरि माना है । जिस व्यक्ति ने अपने
जीवन में भगवद् नाम को ही प्राथमिकता दी है, वह किसी भी परिस्थिति
में दुखी नहीं हो सकता । इस प्रकार से जब एक ही राम का राज होगा,
है तभी हम सुखी हो सकते है क्योंकि यह राम ऐसा है…
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