Friday 14 June 2019

रामनाम की खेती कभी खत्म नही होती है

रामनाम की खेती कभी खत्म नही होती है
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
मनुष्य को ऐसी खेती करनी चाहिये जिसमे फसल की उपज अवश्य मिले  । वर्षा के अभाव में खेत में बोई फसल नष्ट हो सकती है , लेकिन राम नाम रूप के बीज से की गई आध्यत्मिक खेती कभी नही नष्ट हो सकती । साधना की खेती का फल इस जन्म में नही तो अगले जन्म में अवश्य मिलेगा ।
                शरीर रूपी खेती पर काम, क्रोध, लोभ वासना एवं व्यसनों का अतिक्रमण कभी न होने दे । जिस प्रकार सैनिक स्वार्थ में फंस जाता है तो सीमा पर शत्रु कब्जा जमा लेता है , उसी प्रकार व्यक्ति का मन लोभ और दुर्व्यसनों में लग गया तो शरीर रूपी क्षेत्र(खेत) पर दुर्गुणों का अधिकार ही जायेगा। व्यक्ति अपने पुष्ठ योवनयुक्त सुन्दर शरीर को देखकर घमण्ड करता है । लेकिन उसे यह पता नही कि उसे बनाने वाला ईश्वर कितना सुन्दर है। *शरीर गंदा है, लेकिन वह भजन करने पर ईश्वर का बंदा है।*👌

*चिन्तन धारा*
(रेण पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज जी के प्रवचन)

Thursday 6 June 2019

श्री श्री 1008 श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज की कुंडलियां

श्री श्री 1008 श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज की कुंडलियां

                                          





















Tuesday 4 June 2019

संस्कारो से मिलती है महानता

*संस्कारो से मिलती है महानता*
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
सुसंस्कारों से व्यक्ति महानता को प्राप्त होता है । भारतीय संस्कृति में अनेक महापुरुष हुए है , जिन्होंने अपने लौकिक अलौकिक ज्ञान से भारतवर्ष को जगद्गुरु का दर्जा दिलाया है ।  *असंस्कारी प्राणी सतगुरु के संग के अभाव में विष से भरे घड़े के समान* *होता है* जो न स्वयं का भला कर सकता है और न राष्ट व समाज का । महापुरुषों की शरण लेने तथा उनके उपदेशो को श्रवण करने वाला व्यक्ति सद्गुण सदाचार रूपी अमृत से भर जाता है।
              मनुष्य काम क्रोध लोभ और मोह को ही अपना परिवार मान बैठता है , लेकिन ये सब सुख में साथ होते है और दुख में भाग खड़े होते है। *दुखों के सागर में सतगुरु ही व्यक्ति के साथ खड़े रहकर शिष्य को भवसागर पार उतारते है ।* अहंकार रहित जीवन मे मनुष्य को अपार आनंद की अनुभूति होती है, ईश्वर अखण्ड,अविनाशी एवं सर्वशक्तिमान है ।
*चिन्तन धारा*
(रेण पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज के प्रवचन)

Sunday 2 June 2019

"चिन्तनधारा" अघ्यात्म की और हो

*"चिन्तनधारा" अघ्यात्म की और हो*
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
व्यक्ति का चिन्तन साकार नही होता, तब वह चिन्ता करने लग जाता है, जिससे अवसाद नामक बीमारी हो जाती है और शरीर घटने लगता है । चिन्ता व्यक्ति को मृत्यु के कगार पर ले जाती है ।
              हमारी चिन्तनधारा आध्यात्मिकता की और होनी चाहिए । व्यक्ति सांसारिक चिन्तन में लगा रहा तो उसकी ऊर्जा परिवार में ही सीमित रह कर समाप्त हो जाएगी । व्यक्ति का चिन्तन ऐसा हो जिससे खुद का तथा औरों का भी भला हो। *जिसे रामनाम की चिन्तामणी मिल जाती है, वह सांसारिक लोंगो से सीमित संपर्क ही रखता है।* हमारे मास्तिक्ष में अज्ञानता की गांठ पड़ी हुई है। *सतगुरु के ज्ञानरूपी चिन्तन से ही उस गांठ को खोला जा सकता है।*
             सतगुरु ही जीने की विधि बताते है । जीवन में सुख,दुख,हानि,लाभ का क्रम चलता ही रहता है । मनुष्य इस संकट से उभरना चाहता है , लेकिन वह उभर नही पा रहा है ।

*चिन्तन धारा*
*(रेण पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज के प्रवचन)*

रामनाम_जप_में_मन_क्यों_नहीं_लगता?

रामनाम_जप_में_मन_क्यों_नहीं_लगता?

बहुत से लोग कह देते हैं—‘तुम नाम-जपते हो तो मन लगता है कि नहीं लगता है ? अगर मन नहीं लगता है तो कुछ नहीं, तुम्हारे कुछ फायदा नहीं—ऐसा कहने वाले वे भाई भोले हैं, वे भूल में हैं, इस बात को जानते ही नहीं; क्योंकि उन्होंने कभी नाम-जप करके देखा ही नहीं। *पहले मन लगेगा, पीछे जप करेंगे—ऐसा कभी हुआ है?* और होगा कभी ? ऐसी सम्भावना है क्या ? पहले मन लग जाय और पीछे ‘राम-राम’ करेंगे—ऐसा नहीं होता । *नाम जपते-जपते ही नाम-महाराज की कृपा से मन लग जाता है*
‘हरि से लागा रहो भाई । तेरी बिगड़ी बात बन जाई, रामजी से लागा रहो भाई ॥’
इसलिये नाम-महाराज की शरण लेनी चाहिये। जीभ से ही ‘राम-राम’ शुरू कर दो, मन की परवाह मत करो। ‘परवाह मत करो’—इसका अर्थ यह नहीं है कि मन मत लगाओ। इसका अर्थ यह है कि हमारा मन नहीं लगा, इससे घबराओ मत कि हमारा जप नहीं हुआ। यह बात नहीं है। जप तो हो ही गया, अपने तो जपते जाओ। हमने सुना है—

माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माहिं ।
मनवाँ तो चहुँ दिसि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं ॥

*‘भजन होगा नहीं’—यह कहाँ लिखा है?* यहाँ तो ‘सुमिरन नाहिं’—ऐसा लिखा है। सुमिरन नहीं होगा, यह बात तो ठीक है; क्योंकि ‘मनवा तो चहुँ दिसि फिरे’ मन संसार में घूमता है तो सुमिरन कैसे होगा? सुमिरन मन से होता है; परन्तु ‘यह तो जप नाहिं’—ऐसा कहाँ लिखा है? जप तो हो ही गया। जीभ मात्र से भी अगर हो गया तो नाम-जप तो हो ही गया।

हमें एक सन्त मिले थे। वे कहते थे कि परमात्मा के साथ आप किसी तरह से ही अपना सम्बन्ध जोड़ लो। ज्ञान पूर्वक जोड़ लो, और मन-बुद्धिपूर्वक जोड़ लो तब तो कहना ही क्या है? और नहीं तो जीभ से ही जोड़ लो। केवल ‘राम’ नाम का उच्चारण करके भी सम्बन्ध जोड़ लो। फिर सब काम ठीक हो जायगा।

राम!राम!! राम!!!

Saturday 1 June 2019

मानवकल्याण हमारा धर्म हो

*मानवकल्याण हमारा धर्म हो*
"""""""""''"""""""""""""""""""""""""""""
निष्काम भाव से की जाने वाली सतगुरु के सेवा और साधना से भगवान भगत के वश में  जाते है । भगवान स्वयं साधक के आगे झुककर सेवक बन जाते है । *राम नाम ही पूर्ण अवतार है और राम नाम ही धर्म है । राम नाम से ही अवतार प्रगट होता है , अवतार से राम प्रगट नही होता ।*
        हम सब परमात्मा की संतान है। ईश्वर प्राप्ति के साधन भिन्न भिन्न हो सकते है, लेकिन हम सब का धर्म मानव कल्याण होना चाहिए। दुखी आत्माओ को सुख पहुचाना सर्वश्रेष्ठ धर्म है । वेदों में वर्णित मानव जीवन से  सम्बन्द्ध प्रत्येक पहलु पर गहराई से चिंतन मनन कर जीवन को सफल बनाना चाहिए।  वेद पुराण हमारी अमूल्य निधि है । भावी पीढ़ी को सुसंस्कृत बनाने के लिए वादों की शिक्षा दिलवाना आवश्यक है । संस्कारित व्यक्ति ही समाज,राष्ट ओर संसार को दिशा दे सकता है । ऐसे व्यक्ति का जीवन अनुकरणीय होता है ।

*चिन्तन धारा* 
(रेण पीठाधीश्वर आचार्य श्री श्री 1008 श्री हरिनारायण जी महाराज के प्रवचन)