Sunday 2 June 2019

रामनाम_जप_में_मन_क्यों_नहीं_लगता?

रामनाम_जप_में_मन_क्यों_नहीं_लगता?

बहुत से लोग कह देते हैं—‘तुम नाम-जपते हो तो मन लगता है कि नहीं लगता है ? अगर मन नहीं लगता है तो कुछ नहीं, तुम्हारे कुछ फायदा नहीं—ऐसा कहने वाले वे भाई भोले हैं, वे भूल में हैं, इस बात को जानते ही नहीं; क्योंकि उन्होंने कभी नाम-जप करके देखा ही नहीं। *पहले मन लगेगा, पीछे जप करेंगे—ऐसा कभी हुआ है?* और होगा कभी ? ऐसी सम्भावना है क्या ? पहले मन लग जाय और पीछे ‘राम-राम’ करेंगे—ऐसा नहीं होता । *नाम जपते-जपते ही नाम-महाराज की कृपा से मन लग जाता है*
‘हरि से लागा रहो भाई । तेरी बिगड़ी बात बन जाई, रामजी से लागा रहो भाई ॥’
इसलिये नाम-महाराज की शरण लेनी चाहिये। जीभ से ही ‘राम-राम’ शुरू कर दो, मन की परवाह मत करो। ‘परवाह मत करो’—इसका अर्थ यह नहीं है कि मन मत लगाओ। इसका अर्थ यह है कि हमारा मन नहीं लगा, इससे घबराओ मत कि हमारा जप नहीं हुआ। यह बात नहीं है। जप तो हो ही गया, अपने तो जपते जाओ। हमने सुना है—

माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माहिं ।
मनवाँ तो चहुँ दिसि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं ॥

*‘भजन होगा नहीं’—यह कहाँ लिखा है?* यहाँ तो ‘सुमिरन नाहिं’—ऐसा लिखा है। सुमिरन नहीं होगा, यह बात तो ठीक है; क्योंकि ‘मनवा तो चहुँ दिसि फिरे’ मन संसार में घूमता है तो सुमिरन कैसे होगा? सुमिरन मन से होता है; परन्तु ‘यह तो जप नाहिं’—ऐसा कहाँ लिखा है? जप तो हो ही गया। जीभ मात्र से भी अगर हो गया तो नाम-जप तो हो ही गया।

हमें एक सन्त मिले थे। वे कहते थे कि परमात्मा के साथ आप किसी तरह से ही अपना सम्बन्ध जोड़ लो। ज्ञान पूर्वक जोड़ लो, और मन-बुद्धिपूर्वक जोड़ लो तब तो कहना ही क्या है? और नहीं तो जीभ से ही जोड़ लो। केवल ‘राम’ नाम का उच्चारण करके भी सम्बन्ध जोड़ लो। फिर सब काम ठीक हो जायगा।

राम!राम!! राम!!!

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