Saturday 20 January 2018

57. साम्प्रदायिकता का उन्माद बढ़ रहा है


*57. साम्प्रदायिकता का उन्माद बढ़ रहा है:

जातीय विद्वेष साम्प्रदायिक उन्माद, स्वार्थ एवं पारस्परिक टकराव के कारण हम राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक विरासत को खाते जा रहे है और मानव की मानव से दूरी बढ़ती जा रही है । आज धर्म के नाम पर पाखंड , अन्धविश्वाश एवं चमत्कारिक प्रसंगों का शिकंजा कसता जा रहा है हमें इस समय उन धर्मगुरुओं एवं राष्ट्रीय नेताओ की आवश्यकता है जो भाषा सम्प्रदाय, क्षत्रियता से पृथक रहकर मानव मात्र को प्रेम एवं राष्ट्रीयता एकता का पाठ पढ़ा सकें ।

*संगच्छवध संवधवम सं वो मनांसि जानताम । देवा भागम यथा पूर्वे संजानाना उपासते।।*

रेण पीठाधीश्वर श्री हरिनारायण जी शास्त्री,, कर्त,,सागर के बिखरे मोती

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56. हिन्दू संस्कृति का विश्व की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान:

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*56. हिन्दू संस्कृति का विश्व की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान:*

✍भगवान कृष्ण का प्राकट्य दिवस जन्माष्टमी भारत का एक विशेष पर्व है । आर्य सनातन हिन्दू संस्कृति सभ्यता का विश्व की सुरक्षा समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान रहा है । भारत के प्रतियेक ग्राम नगर आदि में भागवत कथा प्रवचन भगवान कृष्ण के जीवन चरित्र से संबंधित झांकिया एवं नाटकों आदि के द्वारा विश्व देश धर्म जाति का अतीत की तरह वर्तमान में भी बहुत लाभ हो रहा है । महापुरूषो की जयंतिया भगवान की लौकिक अलौकिक सत्ता के प्रति विशेष आस्था एवं विश्वास का भाव प्रतिपादित करके आत्म रक्षा को उन्नत करती है यह वह प्रकाश पुंज है जिसके आचरण से उस समय के देश व धर्म रक्षक शासकों ने देश एवं समाज की भयंकर परिस्थितियों से रक्षा की थी । आज भी हम उन्ही महापुरूषो के गौरवशाली जीवन से सुरक्षित है ।
         जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण ने अवतार धारण कर के देश जाति व धर्म को नष्ट करने वाले राक्षसों का संहार किया था । इसी कारण भारत की संस्कृति सभ्यता की रक्षा हुई  । भगवान कृष्ण के दिये हुए गीता के उपदेश से ऊंच नीच का भेद भाव समाप्त होता है । गीता ज्ञान से प्रतियेक जीव इस लोक में और परलोक में बह सुखी हो सकता है ।

*रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री",,,,,,कर्त,,,,✍"सागर के बिखरे मोती"📖*