Saturday, 20 January 2018

57. साम्प्रदायिकता का उन्माद बढ़ रहा है


*57. साम्प्रदायिकता का उन्माद बढ़ रहा है:

जातीय विद्वेष साम्प्रदायिक उन्माद, स्वार्थ एवं पारस्परिक टकराव के कारण हम राष्ट्रीय एकता एवं सांस्कृतिक विरासत को खाते जा रहे है और मानव की मानव से दूरी बढ़ती जा रही है । आज धर्म के नाम पर पाखंड , अन्धविश्वाश एवं चमत्कारिक प्रसंगों का शिकंजा कसता जा रहा है हमें इस समय उन धर्मगुरुओं एवं राष्ट्रीय नेताओ की आवश्यकता है जो भाषा सम्प्रदाय, क्षत्रियता से पृथक रहकर मानव मात्र को प्रेम एवं राष्ट्रीयता एकता का पाठ पढ़ा सकें ।

*संगच्छवध संवधवम सं वो मनांसि जानताम । देवा भागम यथा पूर्वे संजानाना उपासते।।*

रेण पीठाधीश्वर श्री हरिनारायण जी शास्त्री,, कर्त,,सागर के बिखरे मोती

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