Sunday 22 October 2017

साच का अंग

साच का अंग
अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का " साच का अंग " प्रारंभ । राम राम ।

उत्तम काम घर में करे, त्यागी सबको त्याग ।
दरिया सुमिरे राम को, दोनों ही बड़भाग (1)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि उत्तम काम करने वाला गृहस्थी भी साधु है तथा सबसे उत्तम कार्य तो ईश्वर भजन ही है । त्यागी को आध्यात्मिक जीवन में बाधा पहुँचाने वाले सभी विरोधी तत्वों का त्याग करके भगवद नामजाप करना चाहिए । इस प्रकार से गृहस्थी और त्यागी दोनों के ऐसे पावन आचरण हैं तो वे दोनों ही बड़भागी हैं । राम राम  !

मिधम काम घर में करे, त्यागी गृह  बसाय ।
जन दरिया बिन बंदगी, दोऊँ नरकां जाय (2)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो गृहस्थी , गृहस्थ में रहते हुए मिधम (अनिष्ट ) काम अर्थात पाप, अत्याचार-अनाचार करता है  वह नरक में जाएगा । इसी प्रकार जो त्याग धारण करके पुनः गृहस्थी जैसा ही हो जाता है, वह  त्यागी भी नरक में जाएगा । अतः ईश्वर की वन्दना किये बिना चाहे वह त्यागी हो अथवा गृहस्थी हो सभी नरक में जाएंगे । राम राम  !

दरिया गृहस्थी साध को, माया बिना न आब ।
त्यागी होय संग्रह करे, ते नर घणा खराब  (3)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि गृहस्थी साधु अर्थात भक्त की धन के बिना कोई प्रतिष्ठा नहीं, इसलिए गृहस्थी भक्त यदि धन-संग्रह करता है तो उसमें कोई बुराई नहीं परन्तु त्यागी बन कर यदि कोई धन-संग्रह करता है तो वह बड़ा ही दुष्ट - पापी है । राम राम  !

गृही साध माया संचे, लागत नांहि दोख ।
त्यागी होय संग्रह करे, बिगड़े सब ही थोख (4)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि गृहस्थी साधु यदि धन संग्रह करता है तो उसे कोई दोष नहीं लगता है । परन्तु त्यागी होकर धन संग्रह करने वाले त्यागी के सब काम बिगड़ जाते हैं । राम राम  !

हाथ काम मुख राम है, हिरदे साची प्रीत ।
जन दरिया गृही साध की, याहि उत्तम रीत (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि गृहस्थियों को भगवा वेश धारण करके, घर बार छोड़कर वन में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि घर में रहते हुए भी कल्याण संभव है । तुम हाथों से कर्म करते रहो तथा मुख से राम-राम करते रहो तो सहज ही मुक्ति हो जायेगी । राम राम  !

हस्त सूँ दो जग करे, मुख सूँ सुमिरे राम ।
ऐसा सौदा ना बणे, लाखों खर्चे दाम (6)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि हाथों से दान-पुण्य करता रहे तथा रसना से भगवान का नाम स्मरण करता रहे तो लाखों रूपये खर्च करने पर भी ऐसा सुंदर मौका नहीं हो सकता । राम राम  !

इति श्री  दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का " साच का अंग " संपूर्ण । राम राम 

आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com .

डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241