39.सबको सुख पहुचाने वाले व्यक्ति को ही भगवान अपनाते है
सम्पूर्ण संसार के प्राणी मात्र को ईश्वर का ही स्वरूप समझकर सात्विक बुद्धि द्वारा तन, धन ,मन, वचन से सबके साथ प्रेम व्यवहार करते हुए उनकी सेवा करना ही ईश्वर की सच्ची पूजा है । अंतरयामी रूप में प्राणी मात्र में परमात्मा का निवास होने से किसी के भी प्रति घृणा का भाव रखना परमात्मा का ही तिरस्कार करना है। यदि ईश्वर को प्राप्त करना है तो सबको सुख पहुचाने का स्वभाव बनाओ । सबको सुख पहुचाने वाले व्यक्ति को ही भगवान अपनाते है , उसकी भगति भावना को स्वीकार करते हैं अतः सबको सुख पहुचाने की क्रिया का नाम ही ईश्वर भजन है
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*है कोई अवगुण दास में ,नही राम को दोस।*
*साधु चले पैड दस, हरि आवे सो कोस।।*
*साधु चले पैड दस, हरि आवे सो कोस।।*
सागर के बिखरे मोती
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"
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