Sunday 8 October 2017

42.गृहस्थ आश्रम बन्धन नही:

42.गृहस्थ आश्रम बन्धन नही:
जो बुद्धिमान पुरूष इंद्रियों को जीतकर अपनी आत्मा में ही रमण करता है उसका गृहस्थ आश्रम बन्धन का कारण नही होता है । जिसे इन छः ( *काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर* ) शत्रुओं को जीतने की इच्छा हो वह पहले घर (गृहस्थ) में ही रह कर उनका अत्यन्त निरोध करते हुए उन्हें वश में करने का प्रयत्न करें। जो मानव इन्द्रियो के वशीभूत है वह वन में विचरण करता रहे तो भी उसे जन्म मरण का भय बना ही रहता है क्योंकि इन्द्रियों को जीते बिना मन और उसके छः शत्रु उनका कभी भी पीछा नही छोड़ते है । अतः ग्रहस्थ जीवन मे कर्तव्य पालन व समुचित उतरदायित्व निर्वाह करने  से ईश्वर की प्राप्ति का अवसर प्रशस्त हो जाता है । 
*हाथ काम मुख राम है हिरदे सच्ची प्रित। जन दरिया गृही साध की याहि उत्तम रीत।।*
 *"सागर के बिखरे मोती"* 
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री "

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