Monday 9 October 2017

चेतावनी का अंग

चेतावनी का अंग
अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का " चेतावनी का अंग " प्रारंभ । राम राम!

सतगुरु ज्ञान विचार के, तजिये आल जंझाल ।
दरिया विलंब न कीजिए, बेगा राम संभाल  (1) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सभी झूठे जंझालों का त्याग करके सतगुरू के ज्ञान पर विचार करना चाहिए । जब तक स्वय॔ के विचारों का त्याग नहीं करेंगे तथा सतगुरू के विचारों का आदर नहीं करेंगे, तब तक कल्याण संभव नहीं है । इसीलिये आचार्यश्री कहते हैं कि सतगुरू के ज्ञान को सर्वोपरि मानकर तुरंत ही राम नाम  (परम तत्व ) को स्वीकार कर लो । राम राम  !

दरिया श्वास शरीर में, जब लग हरि गुण गाय ।
जीव बटाऊ पाहूणो, क्या जाणू कद जाय (2) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि यह शरीर क्षण विध्वंसी है अतः अतिशीघ्र चेत कर ईश्वर भजन में मन लगाने से ही जीव चैतन्य तत्व को प्राप्त कर सकता है, क्योंकि यह जीव एक मेहमान के समान है । न जाने यह इस तन धन को त्याग कर कब परलोक सिधार जाय । राम राम  !

झूठी कुल की सम्पदा,झूठा तन धन धाम ।
दरिया साचा देखिया, साहिबजी का नाम  (3) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जितने भी सांसारिक संबंध है वे सब मिथ्या हैं, क्षणस्थाई हैं, इनसे सावधान होना ही जागना है । संसार तो झूठा और स्वार्थी है । इस प्रतिभासिक संसार में केवल भगवान का नाम ही सत्य है एवं जीव के सच्चे हितैषी तो परमात्मा  ही हैं । राम राम  !

दरिया ओ जग झूठ है, जैसे नीर कुरंग ।
राम सुमिर जग जीत ले, कर सतगुरु को संग (4)

 आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि यह संसार तो मृगमरीचिका के समान मिथ्या है । महापुरुषों का संग करके आत्मज्ञान  ( राम-भजन ) से ही यह जीव चैतन्य हो सकता है । अतः सत्पुरूषों का सत्संग करने वाला तथा राम सुमिरण करने वाला ही वास्तव में इस जगत को जीत सकता है । राम राम  !

लोक लाज कुटुम्ब सूँ, दरिया मोहब्बत तोड़ ।
साचा सतगुरु रामजी, जा सूँ हितकर जोड़ (5) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि यदि परमात्मा की प्राप्ति करनी है तो सर्वप्रथम लोक लाज तथा कौटुम्बिक प्रेम का त्याग करना होगा । सतगुरू ही मनुष्य को धन व परिवार की क्षणभंगुरता का  ज्ञान कराकर उसके जीवन में वैराग्य की भावना  भर सकते हैं । इसीलिए इस जगते में प्रेम करने योग्य केवल सतगुरू तथा परमात्मा ही है । राम राम ।

घर धन्धे में पच मुवा, आठ पोहर बेकाम ।
दरिया मूरख ना कहे, मुख सुँ कदे न राम (6) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि अज्ञानी मनुष्य ममतावश अपने कुटुम्ब के भरण-पोषण में ही सारी सुध-बुध खो बेठा है ।उन्हें अंत में यह सब छोड़ देने पड़ते हैं तथा न चाहने पर भी विवश होकर घोर नर्क में जाना पड़ता है । ऐसे मनुष्य पशुओं से भी गये बीते हैं तथा मनुष्य शरीर धारण करके केवल धरती पर बोझ ही  बढाया है । राम राम  !

कर्म किया हुसियार होय, राम न कह्यो लगार ।
छोड़ गये धन धाम को, बांध चल्यो सिर भार (7) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मानव की यह दुर्बलता है कि वह सांसारिक कर्म करने में तो रूचि लेता है परन्तु ईश्वर भजन को महत्व नहीं देता है । मरणोपरांत स्वतः ही ऐहिक लौकिक सर्वसंपति का त्याग हो जाता है । केवल बुरे कर्मों का पाप साथ चलता है । राम राम  !

दरिया गर्व न कीजिए,झूठा तन के काज ।
काल खड़ो शिर ऊपरे, निसदिन करे अकाज (8) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि यह  शरीर असत्य है किन्तु आज मनुष्य अपने इस पंचभूत निर्मित शरीर से अति प्रसन्न दिखाई दे रहा है तथा परिवार व धन-संपत्ति में निरंतर आसक्त होता जा रहा है । परंतु मौत उसके सिर पर मंडरा रही है। अतः ईश्वर स्मरण करने वाला साधक ही इस मृत्यु के जाल से बच सकता है । राम राम  !

तीन लोक चौदह भुवन, राव रंक सुल्तान ।
दरिया बचे कोई नही, सब जवरे को खान (9) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि तीन लोक चौदह भुवन में सभी जीव, चाहे वह राजा हो रंक हो अथवा सुल्तान हो सबको जाना पड़ेगा । काल सबको खा रहा है । अतः मरने से पहले-पहले अमर हो जाएं, ऐसा काम लेना चाहिए । राम राम  !

जो दीखे बिनसे सही, माया तणा मण्डाण ।
जन दरिया थिर है सदा, राम शब्द निर्वाण (10) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो कुछ भी दृश्यमान पदार्थ दिखाई दे रहा है, वह एक-न-एक दिन विनाश को प्राप्त हो जाएगा परंतु राम नाम सदा ही शाश्वत है । इस प्रकार से तीन लोक चौदह भुवन व यह दृश्यमान जगत सब परिवर्तनशील  है । अतः इनकी ममता त्याग कर राम नाम जाप करना ही जीवन की सार्थकता है । राम राम  !

राम शब्द निर्वाण है, सकल काल को काल ।
जन दरिया भज लीजिये, पूरण ब्रह्म नेह काल  (11)

 आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि राम शब्द ही जीवन में आने वाले सभी कालों और विघ्नों को नष्ट करने वाला है । इसीलिए सच्चे मन से पूर्ण ब्रह्म का निरन्तर स्मरण करते रहना चाहिए । राम राम  !

जन्म मरण सूँ रहित है, खण्डे नहीं अखण्ड ।
जन दरिया भज रामजी, जिन्हा रची ब्रह्मण्ड (12) 
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि परमात्मा जन्म मरण से रहित है तथा उनका कभी खण्ड टुकड़ा नहीं हो सकता  अर्थात वे अखण्ड हैं तथा उन्होंने ही इस संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना की है, अतः वे ही स्मरण करने योग्य हैं । ईश्वर का स्मरण करना ही पूर्णता को प्राप्त करना है । राम राम  !

सकल आदि सबके परे, है अविनाशी धाम ।
दरिया उपजे ना खपे, ब्रह्म स्वरूपी राम (13) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सर्वप्रथम तथा सर्वपश्चात एक राम का नाम ही अविनाशी है । अतः परमात्मा का नाम न तो कभी उत्पन्न होता है तथा न ही नष्ट होता है । जो इस परम पवित्र तथा सर्वशक्तिमान नाम का सहारा लेकर परमात्मा के ध्यान में निमग्न हो जाता है वही इस संसार में विजयी हो सकता है । शरीर के द्वारा राम भजन व सत्संग करना ही शरीर की उपयोगिता है । राम राम  !

इति श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का " चेतावनी का अंग " संपूर्णम । राम 

आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com .

डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241

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