Wednesday 24 October 2018

राम नाम की मस्ती .....

राम नाम की मस्ती.......

एक बार एक भक्त गुरुदेव के चरणो मे पहूंचा ओर गुरुदेव के चरणो मे प्रणाम करके उस भक्त ने कहा की-- मेरे गुरुदेव,,,जबसे मेरे जीवन मे राम नाम की मस्ती आयी है

तबसे दूनियावाले मेरा मजाक उडाने लगे है ओर वो सब मुझे देखकर मेरा नाम लेकर नही बुलाते बल्कि मुझे देखकर मेरा मजाक उडाते हुए मुझे राम राम कहते रहते है,,

वो कहते रहते है की अरे राम राम कहां जा रहा है ??

अरे राम राम खाना खाया या नही ??
अरे राम राम अब सो जा,---

गुरुदेव ईस प्रकार की बाते दूनियावाले मुझे बोलते है ओर मेरा मजाक उडाते है तो मुझे बहूत बुरा लगता है---

उस भक्त की ये सब बातें सुनकर गुरुदेव के ह्रदय मे आनंद भर आया ओर गुरुदेव ने कहा की-- बेटा फिर तु रोता क्यो है ??

ये तो राम जी की बहूत बडी कृपा है तुमपर की तुम्हारे जीवन मे राम नाम की मस्ती आई है
ओर तुझे दुनिया की मजाक वाली बाते सुनकर दुखी नही होना चाहिये बल्कि तुम्हे तो खुश होना चाहिये की तुम्हारी वजह से दूनियावालो के मुख से भी राम राम नाम निकलता है-

उनके मुख से राम नाम निकल रहा है यानि उनका भी कल्याण हो रहा है--

राम नाम की बहुत महिमा है--

कलियुग मे नाम की बहूत महिमा है इसलिए नाम चाहे कैसे भी लो,, नाम हर परिस्थिति मे कल्याण ही करता है---
हे मेरे गुरुदेव.....
मोह लिया आप ने मुझ को ऐसे
कुछ ना और दिखाई दे
राम के रस में मे ऐसे डूबे
हर तरफ राम जी राम राम राम दिखाई दे
🙏🏻राम जी राम राम राम राम🙏🏻

दरियावजी महाराज की वाणीजी



















Thursday 18 October 2018

श्री किशनदासजी महाराज की 'अनुभव गिरा' वाणीजी

अथ श्री किशनदासजी महाराज की गुरु महिमा प्रारंभ ।राम राम ।
   
नमो राम निर्वाण ब्रह्म , सतगुरु सब ही सन्त ।
किशनदास कर जोड़ के, वंदन बहुत करंत (1)       
सतगुरू जन दरियाव सही , मन मान्या मेरे ।
शूरवीर सत वैण कहो , कुण पूठा फेरे  (2)
मेट्या भ्रम अंधेर , किया गुरू ज्ञान उजाला ।
अखंड अमल भरपूर,  सदा संग शिख मतवाल (3)           
राम नाम नित प्रीति , शिष्यगण सुमिरै सारा ।
नैन बैण हरि हेत , सदा साहब का प्यारा  (4)              
खबरदार होशियार, पार पुरूषोत्तम पागी ।
'दरिया ' मेरू उलंघ , सुरती ब्रह्म चरणा लागी (5)                                                   दोहा                                           
निराकार आकार बिच , जहं दरिया का बास ।
अगम अगोचर गम किया, देख्या किसनेदास {१}
छन्द                            
शिष मन को नारेल, मेल्हि गुरु चरणों आगे ।
प्रेम प्रीति जिज्ञास , चाह गुरु चरणों  लागे (1)            
दयावन्त गुरुदेव, अनंत फल शरणे आया ।
भरम कर्म अघ पाप मिटै , गुरु दर्शन पाया (2)               
 जप तीर्थ व्रत दान,  पुण्य फल सुकृत किया ।
सकल धर्म की याद, परम पद गुरु ने दीया  (3)      
होम यज्ञ आचार शील, समता गुरू सेवा ।
वाणी कथा विचार,  दीन बंधु गुरु देवा (4)                
सांख्य योग गुरुदेव अर्थ, अनुभव सुखरासी ।
भक्ति मुक्ति महामोक्ष , अमर अक्षय अविनाशी  (5)                                                
सकल मण्ड का जीव तिरै , गुरु दर्शन परस्यां ।
तारण तरण उदार, पार गुरु दरस्यां (6)                       
सतगुरू शरणै आय , आन दिश जाय अभागी ।
कौन बुझावे दाह , लाय कर्मों की लागी (7)                
 सतगुरू आज्ञा मांग,  शिष्य मुख अमृत पीवे ।
जन्म मरण मिट जाय , ज्योति मिल अक्षय जीवे (8)                 
 दोहा                   
भाग भला शिष्य गुरु मिला , दिल में रखे न दूज ।
 'किशनदास' तन मन अरप , गुरु समर्थ पद पूज {२}
चौपाई                          
बार बार सतगुरू समझावै , ऐसो जन्म बहुरि नहीं आवै । 
राम राम भजले शिष भाई , मुगति होण की जुगति बताई (1)                            
जामण मरण मिटैगा तैरा , यूं सत शब्द मान शिष मेरा ।
सत का शब्द मान शिष लीजै , सतगुरू शब्द कहै सो कीजै (2)                            
गुरू बिन नाम हाथ नहीं आवै ,  गुरू बिन पार कौन पहुंचावै । 
गुरू बिन कथै-बकै सब झूठा , गुरू बिन साहब रहे अपूठा (3)              
गुरु बिन सब तीर्थ फिर आवै , गुरू बिन मुक्ति मूल नहीं पावै ।
 गुरु बिन पांच नाम नित पेखे , गुरु बिन सेवा लगे न लेखे (4)               
गुरू बिन मन मूक ज्ञान विचारे , गुरू बिन भरम बहुत पचहारे । 
गुरू बिन कुण घर भेद बतावै , गुरू बिन ठौर ठीक नहीं पावै (5) 
गुरू बिन अगम निगम कुण बोले ,  गुरू बिन दसूँ द्वार कुण खोले ।
 गुरू बिन भूला जन्म गमावै , गुरू बिन निज तत् हाथ न आवै (6)
गुरु बिन हद में कौन हलावै , गुरु बिन बेहद कौन बतावै । 
गुरु बिन योग युक्त नहीं पावै , गुरु बिन मोक्ष मुक्ति नहीं आवै (7)              
गुरू बिन अन्धा बहुत अलूजै , गुरू बिन सत साहब नहीं सूजै । 
गुरू बिन भेख पहर फिर फूल्या , गुरू बिन आपो आपण भूल्या (8)    
गुरू बिन योग  नहीं बैरागी , गुरू बिन त्यागी भी अणत्यागी । 
गुरू बिन अजरी बजरी करि हैं, गुरू बिन भवसागर में फिरि हैं (9)           
गुरु बिन कौन अष्टांग कमावे,  गुरु बिन कौन प्रसिद्ध कहावे । 
गुरु बिन सिध अगाध न होई , गुरू बिन अलख लखै न कोई  (10)       
गुरू बिन राम नाम कुण लागै , गुरू बिन भव सूता कुण जागै । 
गुरू बिन बहुत चले गए वीरा ,  जम की मार पड़े रहे धीरा (11)      
भव सागर से पार उतारे , महा प्रलय सूं अवश्य उबारे । 
तारण तिरण उद्धारण आया , भाग बड़ा पूरा गुरू पाया (12)
शिष कर जोड़ लग्या गुरु चरणा , कृपया दया मया कर घरणा । 
दया  करी गुरु दर्शन दीया,  तुमरे चरण शरण हम जीया  (13)                  
मैं मति हीन मार्ग नहीं जाण्या , पार ब्रह्म गुरू नहीं पहचाण्या ।
 मैं भूला तुम भेद बताया , तुम साहब मैं शरणे आया (14)      
मैं कर्मी दुष्टि अहंकारी , पतित उधारण पर उपकारी । 
तुम गुरुदेव  अलख अविनाशी , तुम बिन कुण काटे यम फाँसी (15)                    
तुम गुरुदेव निरंजन निर्भय, शिष का शत्रु किया गुरू सब व्यय ।
 तुम गुरुदेव नाथ निरंकारी , शिष भव डूबत लिया उबारी (16)           
तुम गुरूदेव महा सुख दीना , काग पलट हंसा कर लीना ।
 राम नाम मोती चुगाया ,  काग पलट शिष हँस कहाया (17)
गुरू बिन चेला कौन उबारै , गुरु बिन भवसागर कुण तारै । 
गुरु बिन जीव कहो क्यों जावै , गुरु बिन सत अमृत कुण पीवै (18)           
दोहा               
वार पार गुरू गम अगम ,  अवगत अकल अनन्त । 
किशनदास गुरू गम अगम , गुरू जैसा भगवन्त (3)                           
अलख लेख में गुरु नहीं, गुरु है अगम अपार ।
किशनदास वन्दन करै , नमो सिरजन हार (4)           
गुरू बिन अन्धा वे सकल , गुरू बिन मूढ़ अजान ।
 किशनदास गुरू गम बिना , सब नर पशु समान (5)
गुरु बिन भटकत बहु दिन बीता , गुरु बिन स्वाँग रहा सब रीता । 
गुरु बिन सुध-बुध हाथ न आवै , गुरु बिन भुगत-भुगत मर जावै (19)                                        
गुरू बिन माया बहुत नचाया , गुरं बिन जोगी जगत हंसाया । 
गुरू बिन खट् दर्शन ठग बाजी , गुरू बिन मक्कर पंडित काजी (20)      
गुरु बिन जोर कहावै जोसी , गुरु बिन अन्तकाल फिर रोसी । 
गुरु बिन करै कीर्तन रासा , गुरु बिन घर घर फिरे उदासा (21)             
गुरू बिन झालर ताल बजावै , गुरु  बिन माया बहुत मनावै ।
 गुरू बिन कुल मार्ग में बूड़ा , गुरू बिन राम न जाने रूड़ा (22)                       
गुरू बिन आन-देव सब लूटै , गुरु बिन जीव कहो क्यों छूटै । 
गुरु बिन परम पंथ नहीं पावै , गुरु बिन जगत अगत सब जावै (23)          
गुरू बिन कौन सरोदा साजै , गुरु बिन गगन नाद किम गाजै । 
गुरू बिन चंद सूर घर हेरे , गुरू बिन पंच पवन कुण फेरै (24)
गुरु बिन निज निर्वाण न पावै , गुरु बिन अवधि एली गमावै । 
गुरु बिन कुण भव पार लंघावै , कर किरपा करतार बतावै (25)               
शब्द हीन सतगुरू नहीं कीजै , पारस छोड़ पत्थर क्यों लीजै ।
 सतगुरू ऐसा कीजै साधू , पाँचू पेल परम तत्त लाधू (26)     
सतगुरू ऐसा कीजै भाई, परम ज्योति में ज्योति मिलाई ।
 जैसा गुरू तैसा शिष होई , खर से खर बन्ध्या सब कोई  (27)               
  ज्यों दीपक बिन मंदिर अंधारा , यूं सतगुरू बिन साहब न्यारा ।
 'किशनदास ' गुरु अधम उद्धारे , आप तिरै औरो को तारे (28)         
   ऐसा है गुरुदेव हमारा , ' किशनदास ' सतगुरू का चेरा ।
 निराकार निर्भय नारायण, 'किशनदास ' पहुँचा पारायण (29)                                          
   जामण मरण महा डर मेट्या , 'किशनदास ' पूरा गुरु भेट्या । 
ब्रह्म उजागर सतगुरू पाया, 'किशनदास ' गुरु शरणै आया  (30)             
   दोहा                   
   'किशनदास ' ऐसो जनम , बार बार नहीं होय ।
   सावधान साहब भजो , खबरदार! सब कोय (6)   
   राम-राम रसना रटौ , जब लग पिंजर श्वास ।
    'किशनदास 'कीजै भजन होय दासन को दास (7)        

 इति श्री किशनदासजी महाराज की 'अनुभव गिरा ' संपूर्ण । राम राम 