Wednesday 8 September 2021

नामजप से बढ़कर कोई साधना नहीं है।


नामजप से बढ़कर कोई साधना नहीं है। तुम जो चाहो सो करो, पर नाम लेते रहो।अन्य किसी साधन की कोई जरूरत नहीं है। बस निष्ठा के साथ नाम जपते रहो।
 भवसागर से पार उतरने का सबसे श्रेष्ठ साधन है ध्यान और ध्यान का आधार है नाम-जप। नाम-जप चलता फिरता परमात्मा है। ध्यान तो दिन में घण्टे-दो घंटे ही करना होता है, शेष समय में नाम जप ही सुलभ और श्रेष्ठ साधन है। इसमें भी अखंड नाम जप की महिमा तो अतुलनीय है। नाम जप ईश्वरीय शक्ति का आहार है। जैसे हम अतिथि को प्रसन्न करने के लिए स्वादिष्ट पकवान परोसते है, वैसे ही ईश्वर को रिझाने के लिए एकाग्रचित्त श्रद्धाभाव से लय-तालपूर्वक किया गया नाम-जप बहुत श्रेष्ठ आध्यात्मिक भोजन है। नाम धुन एक अलौकिक आनंद की जननी है। इसमें डूबने के लिए आवश्यक है कि जपकर्त्ता अपने आपको उसमें विलीन कर दे।
राम जी राम
जय गुरुदेव🌹🙏
✍️गुरु कृपा सन्देश......

Tuesday 17 August 2021

अनुभव 2 :- बीमारी से मुक्ति दिलाना।।आचार्य श्री हरीनारायण जी महाराज की चमत्कारपूर्ण घटनाएं


जोधपुर के राम मोहल्ले के निवासी केवलजी माली का लड़का बहुत अधिक बीमार था । वह बड़े दुखी मन से आचार्य श्री के पास जोधपुर के चातुर्मास के अवसर पर पहुंचे । उन्होंने आचार्य श्री को सारी स्थिति बताई । आचार्य श्री ने उसी समय घर पहुंच कर उस बीमार बच्चे को देखा और केवल जी को निश्चित रहने का आश्वासन दिया । तत्पश्चात उनका पुत्र शीघ्र ही स्वस्थ हो गया ।
दीन दुखी दरिया दर आता , मन अभिलाषा पूरी पाता।

अनुभव 1:- कुँए का पानी मीठा होना ।। आचार्य श्री हरीनारायण जी महाराज की चमत्कारपूर्ण घटनाएं

आचार्य श्री हरीनारायण जी महाराज की चमत्कारपूर्ण घटनाएं

 "संकट पड़े जब साध पे, सब सन्तन के सोग ।
दरिया सहाय करे हरि, परचा माने लौग ।।

बात सन् 1982 की है जब आचार्य श्री हरिनारायणजी महाराज पीपाड़ सिटी में चातुर्मास करने पधारे । तब लोगों ने बड़ी उदासीनता से उन्हें बताया कि यहाँ के प्रवचन स्थल माहेश्वरी भवन के कुएँ का जल खारा है। तत्क्षण आचार्य श्री ने
ध्यानस्थ होकर लोगों से कहा की "रामजी जल को मीठा कर देंगे।"ऐसा आश्वासन देते ही वास्तव में उस कुएँ का खारा पानी मीठा हो गया ।

 "शहर पीपाड़ में परचा दीना, खारा पानी मिठा कीना"

Friday 30 July 2021

सन्त श्री सुखराम जी महाराज सा (मेड़ता)विरह का अंग

सन्त श्री सुखराम जी महाराज सा (मेड़ता)विरह का अंग

निशदिन जोऊँ बाट, पीव घर आईये । चाहि तुम्हारी मोहि, दरश दिख लाईये । कैसे धरिये धीर, पीर है पीव की । हरि हाँ! बिन दरशन सूख राम, किसी गत

तलफत रेण बिहाय, दिवस जाय तलफतां । बीत गई सब आयु, विरहनी कलपतां । दया न आवे तोय, खबर नहीं लेत है। हरि हाँ! यूं बिरहन सुखराम, सन्देशो देत है

आवो दया विचार, सलोना श्यामजी । आया ही सुख होय, सरे सब कामजी। चेरी अपणी जान, दरश पिव दीजिये। हरि हाँ! साच कहे सुखराम, बिलम नहीं कीजिये

राग रंग रुचि नांहि, बात नहिं स्वावही । चातक ज्यूं चित्त चाह, पीव कब आवहीं । दीजै दरश दयाल, पीव मन-भावणा । हरि हाँ! तलफत है सुखराम, राम घर आवणा

जिस दिन बिछडे पीव, नहीं जक मोहिजी । दूभर निश दिन जाय, दया नहिं तोयजी। अब तो आव, दयाल अनाथां नाथजी । हरि हाँ! शरणागत सुखराम, गहो पिव हाथजी

जन दरियाव तुम्हारा दरसन,भागभला सोई पावे

*जन दरियाव तुम्हारा दरसन,*
*भागभला सोई पावे*
*दरियाव दयाल तुमारा दर्शन*
*भाग भला सोई पावे*

*सप्तपुरी रायणमे प्रगटे,*
*दरस परस सुख पावे*
*नाम जहाज भवसागर मांही,*
*बैठत पार लगावे*

*देश देशका रामस्नेही,*
*हिलमिल दरसन पावे*
*तपोभूमिमें जो कोई आवे,*
*करम सकल मिट जावे*

*कामी क्रोधी ओर मती हिना,*
*व्यभिचारी टल जावे*
*दरशन आवे परमपद पावे,*
*अवागमन मिट जावे*

*शिव सनकादिक ओर ब्रम्हादिक,*
*मिलन नारदजी आवे*
*स्वर्गलोग से देवगण आवे,*
*निशदिन चवर ढुरावे*

*गढ गिरनारसु मुनिश्वर आवे,*
*चरण में शिश नमावे*
*गोरखनाथ भरथरी आवे,*
*गोपी चंन्द यश गावे*

*मुरधर देश जहां पुरी रायण,*
*राजा दर्शन आवे*
*पुरणदास दासन के दासा,*
*मनवंछित फल पावे*

Wednesday 21 July 2021

सन्त श्री किशनदास जी महाराज की दिव्य वाणी

राम राम कहे किसनदास, जबलग सास सरीर । 
अवध उलांग्या जात हे, ज्युं परबत को नीर

जब लग सास सरीर में, तबलग राम संभाल ।
 किसना जेजन कीजिये, आय पहूंचे काल 

राम भजन कर लिजीये, कर सतगुरु सुं हेत। 
किसनदास ओसर भलो, चेत सके तो चेत 

किसनदास ओसर बण्यो, राम भजन को डाव । 
ओसर चाल्यो जात है, कर कुछ व्हेतो उपाव

 किसनदास निस दिन करे, राम भजन को गाड । 
बाहिर भीतर ओक रस, राम लडावो लाड

 सपने राम न बीसरे, निस दिन करे फिराद । 
किसना जद ही जाणिये, सांई हंदा साद

 राम राम रटबो करे, इमरत झरे अछूट । 
किसनदास वे संतजन, तारे च्यारुं खूंट।।

 राम भजन कर किसनदास, लागो सांची सेव । 
सतगुरु का परताप सूं, परस्या अलख अभेव ।।

किसनदास करतार का, भजन किया भरपूर । 
घरही ज्ञान प्रकासियो, उदे अखंडित सूर।।

 राम नाम का किसनदास, भजन किया भरपूर । 
सतगुरु का परताप सुं, परस्या निर्मल नूर।।

सेनी में सतगुर कही, मोकूं गुपती बात। 
किसनदास रट बोकरो, राम राम दिन रात।।

दृष्टांत:- एक नर्तकी द्वारा सबको बैराग।

           एक नर्तकी द्वारा सबको बैराग।
एक राजा को राज करते काफी समय हो गया था।
बाल भी सफ़ेद होने लगे थे।
एक दिन उसने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमन्त्रित किया व अपने गुरुदेव को भी बुलाया।

उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया।

राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्रायें अपने गुरु जी को भी दी, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे भी उसे पुरस्कृत कर सकें।

सारी रात नृत्य चलता रहा। ब्रह्म मुहूर्त की बेला आई, नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊँघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे।

तो उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा -

"घणी गई थोड़ी रही,
 या में पल पल जाय। 
एक पलक के कारणे,
 युं ना कलंक लगाय।"

अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरुप अर्थ निकाला.......

तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा। 
जब यह दोहा गुरु जी ने सुना, तो गुरुजी ने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दी।

दोहा सुनते ही राजकुमारी ने  भी अपना नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया।

दोहासुनते ही राजा के युवराज ने भी अपना मुकुट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया ।

राजा बहुत ही अचम्भित हो गया।

सोचने लगा रात भर से नृत्य चल रहा है पर यह क्या!

अचानक एक दोहे से सब  अपनी मूल्यवान वस्तु बहुत ही ख़ुश हो कर नर्तकी को समर्पित कर रहें हैं ? 

 राजा सिंहासन से उठा और नर्तकी को बोला एक दोहे द्वारा एक नीच या सामान्य नर्तकी  होकर तुमने सबको लूट लिया।

जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आँसू आ गए और गुरुजी कहने लगे - "राजा ! इसको नीच नर्तकी  मत कह, ये अब मेरी गुरु बन गयी है, क्योंकि इसके दोहे ने मेरी आँखें खोल दी हैं। दोहे से यह कह रही है कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुज़रा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहाँ चला आया हूँ,भाई ! मैं तो चला ।" यह कहकर गुरुजी तो अपना कमण्डल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।

राजा की लड़कीने कहा - "पिता जी ! मैं जवान हो गयी हूँ। आप आँखें बन्द किए बैठे हैं, मेरा विवाह नहीं कर रहे थे। आज रात मैं आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद करने वाली थी। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुमति दी, कि जल्दबाज़ी न कर, हो सकता है तेरा विवाह कल हो जाए, क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है ?" 

युवराज ने कहा -महाराज ! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे। मैं आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपको मारने वाला था। लेकिन इस दोहे ने समझाया कि पगले ! आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है! थोड़ा धैर्य रख।"

जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया ।

 राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरन्त फैंसला लिया -

"क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूँ।" फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा - "पुत्री ! दरबार में एक से एक राजकुमार आये हुए हैं। तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रुप में चुन सकती हो।"

 राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया ।

यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा - "मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूँ नहीं सुधर पायी ?"

 उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया । उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना नृत्य बन्द करती हूँ

"हे प्रभु ! मेरे पापों से मुझे क्षमा करना। बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करुँगी ।"

घणीगई थोड़ी रही, या में पल-पल जाय।
एक पलक रे कारणे, युं ना कलंक लगाय।