सन्त श्री सुखराम जी महाराज सा (मेड़ता)विरह का अंग
निशदिन जोऊँ बाट, पीव घर आईये । चाहि तुम्हारी मोहि, दरश दिख लाईये । कैसे धरिये धीर, पीर है पीव की । हरि हाँ! बिन दरशन सूख राम, किसी गत
तलफत रेण बिहाय, दिवस जाय तलफतां । बीत गई सब आयु, विरहनी कलपतां । दया न आवे तोय, खबर नहीं लेत है। हरि हाँ! यूं बिरहन सुखराम, सन्देशो देत है
आवो दया विचार, सलोना श्यामजी । आया ही सुख होय, सरे सब कामजी। चेरी अपणी जान, दरश पिव दीजिये। हरि हाँ! साच कहे सुखराम, बिलम नहीं कीजिये
राग रंग रुचि नांहि, बात नहिं स्वावही । चातक ज्यूं चित्त चाह, पीव कब आवहीं । दीजै दरश दयाल, पीव मन-भावणा । हरि हाँ! तलफत है सुखराम, राम घर आवणा
जिस दिन बिछडे पीव, नहीं जक मोहिजी । दूभर निश दिन जाय, दया नहिं तोयजी। अब तो आव, दयाल अनाथां नाथजी । हरि हाँ! शरणागत सुखराम, गहो पिव हाथजी
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