Thursday 14 May 2020

वाणीजी को जल में विसर्जित करना

अनंत विभूषित आदि आचार्य श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज द्वारा वाणी को जल में विसर्जित करना

श्री दरियाव दिव्य वाणी के अनुसार संत श्री दरियाव जी महाराज की 100000 वाणी थी। किंतु दरिया साहब नहीं से यह कहते हुए पानी में पानी में विसर्जित कर दिया था-

               अणैभ झूठी थोथरी नीरगुण सांचा नाम ।
               परम जोत परचे भई तो धुआं से क्या काम ।।

रेण में जो तालाब है उसी में संत दरियाव जी महाराज ने अपनी वाणी को विसर्जित कर दिया तब से उस तालाब का नाम 'लाखा सागर' पड़ गया। 

संत दरियाव जी महाराज के द्वारा वाणी विसर्जित करने का कारण

संत दरियाव जी महाराज के मामा का भाई फतेह राम संत दरियाव जी महाराज से द्वेष रखता था। एक बार फतेह राम संत दरियाव जी महाराज की अनुभव वाणी के पत्रों को चुरा कर ले गया और उन पत्रों को अनादर भाव से रास्ते में फेंक दिया। वाणी लिखे हुए वे पत्र संत दरियाव जी महाराज को पैरों से रौंदे जाते हुए मिले, तब संत दरियाव जी महाराज अपनी शिष्य मंडली सहित राम सरोवर को स्नान करने जा रहे थे। इन पत्रों में से एक में लिखा था-
                     ' आत्मराम सकल घट भीतर'

इन शब्दों को पढ़कर संत दरियाव जी महाराज को बहुत दुख हुआ और उन्होंने सोचा कि कलयुग में वाणी  का सम्मान नहीं होगा, इसलिए संत दरियाव जी महाराज ने वाणी को जल में विसर्जित कर दिया। कहा जाता है कि संत दरियाव जी महाराज से द्वेष रखने के कारण फतेह राम प्रेत योनी को प्राप्त हुआ। बाद में फतेह राम ने प्रेत योनी से मुक्ति के लिए संत दरियाव जी महाराज के समक्ष जाकर प्रार्थना की, संत दरियाव जी महाराज की कृपा पाकर फतेह राम को मोक्ष की प्राप्ति हुई। वाणी के विसर्जित हो जाने के बाद संत दरियाव जी महाराज के शिष्यों ने संत दरियाव जी महाराज से कहा कि वाणीयो के अभाव में हमारा मार्गदर्शन कौन कराएगा? तब संत दरियाव जी महाराज ने कहा-

               सकल ग्रंथ का अर्थ है सकल बात की बात।
              दरिया सुमिरन राम को कर लीजै दिन-रात।।

संत दरियाव जी महाराज की वर्तमान में जो वाणी है वह उनके शिष्यों द्वारा परंपरागत रूप से कंठस्थ थी । वही लिखित रूप में प्रकट हुई।

Monday 11 May 2020

श्री किशनदासजी महाराज की अनुभव गिरा (वाणीजी)

 श्री किशनदासजी महाराज की अनुभव गिरा (वाणीजी)





















सेठ मधुचंद की रक्षा करना


अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के प्रवर्तक प्रधान आदि आचार्य श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज की जीवन घटना

सेठ मधुचंद की रक्षा करना

दिल्ली निवासी सेठ मधुचंद एक दिन प्रातः काल यमुना में स्नान करते हुए डूबने लगा। डूबते समय सेठ ने गुरु दरियाव का स्मरण किया। गुरु दरिया साहब ने  रेन में रहते हुए यमुना नदी में प्रकट होकर अपने शिष्य सेठ मधुचंद को यमुना नदी में डूबते हुए को बाहर निकाल कर रक्षा की।

धरयो रूप भगवान दास दरिया को भारी।
करी सहाय तत्काल इस्या है देव मुरारी।।

Sunday 10 May 2020

उदैगिरी व किस्तुरां बाई की रक्षा करना व शिष्य बनाना

अनंत विभूषित आदि आचार्य श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज की जीवन घटना

उदैगिरी व किस्तुरां बाई की रक्षा करना व शिष्य बनाना

आकासर (बीकानेर) के उदैगिरी व किस्तुरा बाई दोनों गुरु भाई बहिन थे। एक बार दोनों गुरु भाई बहिन गुरु के दर्शन के लिए आकासर से रेन को रवाना हुए। रास्ते में लुटेरों ने मौका देखकर इन पर हमला कर दिया। उस समय उन्होंने अपने गुरू दरिया साहब का स्मरण किया। गुरु दरियाव ने प्रकट होकर दोनों को लुटेरों से बचाया और लुटेरों को अंधा कर दिया।

उ अचानक मारण ध्याया, वात वणी अब भारी।
हो दरियाव आपकै  दरसण,जातां आ गत मारी।।
सुणी पुकार  प्रगट्या पल में,सतगुरु साहेब नैरा।
रूपिया पावर हुवा कर ऊचा,आख्या भया अंधेरा।।

प्रातः काल होने पर किस्तुरा बाई अपने गुरु भाई उदैगिरि को ढूंढने लगी। उदैगिरी तो गुरु दर्शन को चला गया यह सोच कर किस्तुरा बाई धरती पर व्याकुल होकर गिर पड़ी और गुरु दरियाव का स्मरण कर पुकारने लगी कि मैं अबला अनाथ अकेली किसके साथ आऊ और आपके दर्शन कैसे पाऊं ? किस्तुरा की आतुरता देखकर संत दरियाव जी महाराज ने प्रकट होकर किस्तुरा बाई को दर्शन दिए।

आतुर सुणी पधारया आपी, विडद प्रगट कीनौ।
अपनी दास जाण के दरसण,किस्तुरां कूं दीनौ।।

गुरु के दर्शन पाकर उन्होंने गुरु दरियाव को प्रणाम किया। गुरु दर्शन के बाद उदैगिरी जी व किस्तुराबाई दोनों गुरु दरियाव के शिष्य बन गये।

आकासर लौटकर दोनों गुरु भाई बहन ने सबको बताया कि गुरु दरियाव ने हमें बचाया।

Saturday 9 May 2020

जोधपुर के राजा विजय सिंह और राजा बगत सिंह द्वारा शिष्यत्व ग्रहण करना


अनंत विभूषित आदि आचार्य श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज के जीवन की घटना 

जोधपुर के राजा विजय सिंह और राजा बगत सिंह द्वारा शिष्यत्व ग्रहण करना

दरिया साहब सच्चे साधक और महात्मा थे। इनकी साधना और आलौकिक व्यक्तित्व की प्रशंसा सुनकर तत्कालीन मारवाड़ नरेश महाराज बगत सिंह,जो त्रिविध ताप रूपी असाध्य रोग से पीड़ित थे, संत दरियाव जी महाराज की शरण में आए और निरोग होने की प्रार्थना की थी।

तब बोले नृपराय कृपया कर भेद बताओ।
सांसों सोग संताप भरम सब दूर उड़ावो।।
बगत सिंह नरेश देश मरुधर के राजा।
जन दरिया के चरण सरण सब सरीया काजा।।

तब संत दरियाव जी महाराज ने अपने शिष्य सुखराम जी महाराज को उपदेश देने हेतु कहा-

सुखरामजी जात लवारा,जां की देषी करङी धारा।
जांत पांत को कारण नाही,राम राम कही राम समाही।
दरिया सा को हुक्म उठायो, जीब राजा कु ग्यान सुनायो।

संत दरियाव जी महाराज की कृपा से महाराजा बगत सिंह रोग मुक्त हुए। रोग मुक्त होने के बाद जोधपुर नरेश रेण जाकर संत दरियाव जी महाराज के दर्शन कर संत दरियाव जी महाराज के शिष्य बन गये।

महाराजा बगत सिंह के बाद में जोधपुर के राजा विजय सिंह हुए। उन्होंने भी संत दरियाव जी महाराज का शिष्यत्व  ग्रहण किया और संत दरियाव जी महाराज की अनुरोध पर प्रजा की लाग बाग (कर) बंद कर दिये, जिससे जनता को अपार सुख की प्राप्ति हुई।

तब राजा बिजैपाल,भेंट पूजा विसतारी।
लाग बाग सब माफ ,सही कर दीनी सारी।।

Friday 8 May 2020

दिल्ली के बादशाह ने अपने दिवान मदली खान पठान का ह्रदय परिवर्तन करना

रामस्नेही संप्रदाय के प्रवर्तक प्रधान आदि आचार्य श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज की जीवन घटना

दिल्ली के बादशाह ने अपने दिवान मदली खान पठान को संत दरियाव जी महाराज की हत्या करने के लिए रेन भेजा किंतु संत दरियाव जी महाराज की आलोकिक व्यक्तित्व को देखकर मदली खान पठान का हृदय परिवर्तन हो गया। वह संत दरियाव जी महाराज के चरणों में गिर गया और संत दरियाव जी महाराज का शिष्य बन गया। उस समय दिल्ली का प्रशासक अहमदशाह अब्दाली था। सन् 1761 ई. में मराठों के विरुद्ध पानीपत की तीसरी युद्ध में मदली खान पठान ने भाग लिया था। मदली खान पठान जब युद्ध में घायल हो गया तब उसने गुरु संत दरियाव जी महाराज का स्मरण किया। संत दरियाव जी महाराज ने रेन मे रहते हुए अपने शिष्य मदली खान पठान को संकट में जान उनकी पीड़ा को दूर किया। अपने गुरु के नाम पर ही मदली खान पठान ने दिल्ली में 'दरियागंज' नाम से उपनगर बसाया।

मदली खान पठान, दिल्ली को दीवान जाण।
भयों भाव नीके संत , पानीपत जंग में।।
हो हो जन दरियाव, दया कर आप पधारो।
मेटो तन की पीड़ा, विपत सब दूर निवारो।।

भक्त केसाराम जाट की मनोकामना पूर्ण करना

अनंत विभूषित आदि आचार्य श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज के जीवन की घटना

भक्त केसाराम जाट की मनोकामना पूर्ण करना

जावली ग्राम निवासी केसाराम जाट निसंतान थे , उनके कोई पुत्र नहीं था और वह निर्धन भी थे। एक बार भक्त केसाराम ने संत दरियाव जी महाराज को अपने घर बुलाकर सेवा की। सेवा से प्रसन्न होकर संत दरियाव जी महाराज ने केसाराम जाट की मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया।

पुत्र होयगा तेरे दोई,माया घणी तेरे घर होई।
वर दियो दरिया सा सामी,अब केसा के रहो नही खामी।।

Wednesday 6 May 2020

कुएं का जल मीठा करना

अनंत विभूषित आदि आचार्य श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज के जीवन की घटना

कुएं का जल मीठा करना

जयपुर राजा के निमंत्रण पर संत श्री दरियाव जी महाराज अपने शिष्यों के साथ जयपुर जाते समय भादू गांव में रुके। पानी की आवश्यकता होने पर एक शिष्य कुएं के पास जाकर पानी लाया और बताया कि कुएं में पानी खा रहा है । तब संत दरियाव जी महाराज ने अपने शिष्य से कहा दुबारा जाकर पानी लाओ। तब सीसी दोबारा जाकर पानी लाया तो पानी अमृत के समान मीठा था। कुएं के पानी को संत दरियाव जी महाराज ने अपने चमत्कार से मीठा कर दिया।

महाराज जल मांगे तब ही, कह सतगुरु सु खारा जल ही।
कहां महाराज मीठा है भाई, तुम दिल में मत घबराई।।
इमृत है जल गियो भाई ।