Sunday 10 May 2020

उदैगिरी व किस्तुरां बाई की रक्षा करना व शिष्य बनाना

अनंत विभूषित आदि आचार्य श्री अनंत श्री दरियाव जी महाराज की जीवन घटना

उदैगिरी व किस्तुरां बाई की रक्षा करना व शिष्य बनाना

आकासर (बीकानेर) के उदैगिरी व किस्तुरा बाई दोनों गुरु भाई बहिन थे। एक बार दोनों गुरु भाई बहिन गुरु के दर्शन के लिए आकासर से रेन को रवाना हुए। रास्ते में लुटेरों ने मौका देखकर इन पर हमला कर दिया। उस समय उन्होंने अपने गुरू दरिया साहब का स्मरण किया। गुरु दरियाव ने प्रकट होकर दोनों को लुटेरों से बचाया और लुटेरों को अंधा कर दिया।

उ अचानक मारण ध्याया, वात वणी अब भारी।
हो दरियाव आपकै  दरसण,जातां आ गत मारी।।
सुणी पुकार  प्रगट्या पल में,सतगुरु साहेब नैरा।
रूपिया पावर हुवा कर ऊचा,आख्या भया अंधेरा।।

प्रातः काल होने पर किस्तुरा बाई अपने गुरु भाई उदैगिरि को ढूंढने लगी। उदैगिरी तो गुरु दर्शन को चला गया यह सोच कर किस्तुरा बाई धरती पर व्याकुल होकर गिर पड़ी और गुरु दरियाव का स्मरण कर पुकारने लगी कि मैं अबला अनाथ अकेली किसके साथ आऊ और आपके दर्शन कैसे पाऊं ? किस्तुरा की आतुरता देखकर संत दरियाव जी महाराज ने प्रकट होकर किस्तुरा बाई को दर्शन दिए।

आतुर सुणी पधारया आपी, विडद प्रगट कीनौ।
अपनी दास जाण के दरसण,किस्तुरां कूं दीनौ।।

गुरु के दर्शन पाकर उन्होंने गुरु दरियाव को प्रणाम किया। गुरु दर्शन के बाद उदैगिरी जी व किस्तुराबाई दोनों गुरु दरियाव के शिष्य बन गये।

आकासर लौटकर दोनों गुरु भाई बहन ने सबको बताया कि गुरु दरियाव ने हमें बचाया।

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