श्रीमद् दरियावाय नमः
नत्वाभवाब्धिं पोतांस्तान्हेतून् गुरूपदान् ।
यदरियाव चालीसाम्पठाम्यात्म हिताय वै ॥
राम नाम अरू सन्त जन, गुरू दरिया से हेत ।
धर्म अर्थ अरू काम मोक्ष, फल चारों ही देत ॥
चौपाई
जय दरियाव दयानिधि भारी,
जीव मात्र भव भय हारी।
राम रसिक आतम तत् ज्ञानी,
गीगापुत्र मनसा सुख दानी ।
शील सन्तोष दया उर मांही,
राग द्वेष क्रोध मद नाही ।
सर्पराज बासुकी जब आया,
जय तारण में दर्शन पाया।
तुम बलवान शास्त्र सब ज्ञाता,
मात पिता गुरू दरिया दाता ।
अखण्ड तपस्वी भोग रस त्यागी,
राम सनेही प्रेम अनुरागी ।
राम नाम रस मधुर पियारा,
नव रस षट-रस धन-रस खारा ।
हाथ काम मुख राम उचारी,
दयावन्त अखण्ड ब्रह्मचारी |
दाढी धावल मूच्छ सुन्दराई,
लोमश कच सम भय जटिलाई ।
शशि सम शीतल तेज तपोसम,
अचल हिमाचल ये उपमा कम ।
सरल गुणापम सबसे न्यारे ।
साधु सन्यासी के रखवारे,
पतित पावन कर पार उतारे ।
संत सनकादिक देव गौरीसा,
करि हरि दर्शन करत खगेसा ।
यम कुबेर शेष सुर राया,
सूर्य शशि तुमरी ये माया ।
राजा बगतसिंह घबराया,
प्रभु तुमने ही धैर्य बंधाया।
तुम उपकार नृपति का कीये,
शीघ्र दोह देय प्रभु धर लीये ।
हिन्दु तुरक ये भेद मिटाया,
राम नाम रस अमृत पाया।
एहि भांति कीन्ह उपकारा,
जेहि जानत सत शिव संसारा ।
जग उद्धारक पालक स्वामी,
तीनुं देव तुमरे अनुगामी।
दरिया देव के दर्शन पावे,
देव दैत्य दानव यश गावै ।
गुरू लघु व्यापक तुम तन धारी,
भू पाताल गगन दिगवारी ।
शिक्षक बन संसार में आये,
मोक्ष पन्थ के पथिक बनाये।
पांच देव भये शिष्य तिहारे,
मोक्ष हेतु नर देह को धारे।
धाता रूप किशन धर आये,
राम रूप सुखराम कहाये ।
सोम भये पूरण के रूपा,
देव गुरू दरियाव अनूपा ।
नृसिंह रूप धर नानक दासा,
गुरू दरियाव चरण चित्त आसा ।
हरकाराम स्वरूप कुबेरा,
पांच देव दरिया के चेरा।
आपकी लीला है सुखदाई,
दरियाव उच्चारण दुख मिट जायी ।
प्रेत पिशाच विघ्न नहीं छावे,
जय दरियाव ये नाम सुनावे।
राम नाम दरियाव बतावे,
यक्ष - योगिनी अति भय खावे।
राहु अरू केतु शनिश्चर लागे,
दरिया नाम श्रवण कर भागे ।
कुछल कपट डायन भरमाया,
राम नाम से दूर हटाया।
नित प्रति दरिया को जो ध्यावे,
रोग शोक भय कष्ट न आवे।
जनम मरण मेट दुख दोषू,
अभय होय पावे सन्तोषु ।
श्री दरियाव के हो शरणाई,
अष्ट सिद्धी नवनिद्धि घर आई ।
देहिक वाचिक मानस पापू,
काम क्रोध दूर होय तापू ।
शक्ति हीन बलवान कहावे,
मानव मूढ विद्या यश पावे।
जय जय जय दरियाव नमामि
चरणाश्रम मम देवों स्वामी ।
सफल होई स्वेच्छा मन धरई,
अष्टोत्तर शत पाठ जो करई।
सायं प्रातः पढे चालीसा
ते सुख भोग मोक्ष पद वासा |
दोहा :
उर में बसो दरियावजी, ताप त्रय स्वयं नशाय ।
बलरामा को ज्ञान दो, दुविधा सब मिट जाय।।