Monday 7 August 2023

श्री दरियाव चालीसा :- स्वामी श्री बलरामदासजी महाराज कृत

श्रीमद् दरियावाय नमः

नत्वाभवाब्धिं पोतांस्तान्हेतून् गुरूपदान् । 
यदरियाव चालीसाम्पठाम्यात्म हिताय वै ॥

राम नाम अरू सन्त जन, गुरू दरिया से हेत । 
धर्म अर्थ अरू काम मोक्ष, फल चारों ही देत ॥

चौपाई

जय दरियाव दयानिधि भारी, 
जीव मात्र भव भय हारी। 
राम रसिक आतम तत् ज्ञानी, 
गीगापुत्र मनसा सुख दानी । 
शील सन्तोष दया उर मांही, 
राग द्वेष क्रोध मद नाही । 
सर्पराज बासुकी जब आया, 
जय तारण में दर्शन पाया।
तुम बलवान शास्त्र सब ज्ञाता, 
मात पिता गुरू दरिया दाता । 
अखण्ड तपस्वी भोग रस त्यागी, 
राम सनेही प्रेम अनुरागी । 
राम नाम रस मधुर पियारा, 
नव रस षट-रस धन-रस खारा । 
हाथ काम मुख राम उचारी, 
दयावन्त अखण्ड ब्रह्मचारी | 
दाढी धावल मूच्छ सुन्दराई, 
लोमश कच सम भय जटिलाई । 
शशि सम शीतल तेज तपोसम, 
अचल हिमाचल ये उपमा कम । 
सरल गुणापम सबसे न्यारे । 
साधु सन्यासी के रखवारे, 
पतित पावन कर पार उतारे । 
संत सनकादिक देव गौरीसा, 
करि हरि दर्शन करत खगेसा ।
यम कुबेर शेष सुर राया, 
सूर्य शशि तुमरी ये माया ।
 राजा बगतसिंह घबराया, 
 प्रभु तुमने ही धैर्य बंधाया। 
 तुम उपकार नृपति का कीये, 
 शीघ्र दोह देय प्रभु धर लीये । 
 हिन्दु तुरक ये भेद मिटाया, 
 राम नाम रस अमृत पाया। 
 एहि भांति कीन्ह उपकारा, 
 जेहि जानत सत शिव संसारा । 
 जग उद्धारक पालक स्वामी, 
 तीनुं देव तुमरे अनुगामी। 
 दरिया देव के दर्शन पावे, 
 देव दैत्य दानव यश गावै । 
 गुरू लघु व्यापक तुम तन धारी, 
 भू पाताल गगन दिगवारी । 
 शिक्षक बन संसार में आये, 
 मोक्ष पन्थ के पथिक बनाये।
 पांच देव भये शिष्य तिहारे, 
 मोक्ष हेतु नर देह को धारे। 
 धाता रूप किशन धर आये,
  राम रूप सुखराम कहाये । 
   सोम भये पूरण के रूपा, 
 देव गुरू दरियाव अनूपा ।
   नृसिंह रूप धर नानक दासा, 
   गुरू दरियाव चरण चित्त आसा ।
    हरकाराम स्वरूप कुबेरा, 
    पांच देव दरिया के चेरा। 
    आपकी लीला है सुखदाई, 
    दरियाव उच्चारण दुख मिट जायी । 
    प्रेत पिशाच विघ्न नहीं छावे, 
    जय दरियाव ये नाम सुनावे। 
    राम नाम दरियाव बतावे, 
    यक्ष - योगिनी अति भय खावे। 
    राहु अरू केतु शनिश्चर लागे, 
    दरिया नाम श्रवण कर भागे ।
    कुछल कपट डायन भरमाया,
     राम नाम से दूर हटाया।
      नित प्रति दरिया को जो ध्यावे,
       रोग शोक भय कष्ट न आवे।
जनम मरण मेट दुख दोषू, 
अभय होय पावे सन्तोषु । 
श्री दरियाव के हो शरणाई,
 अष्ट सिद्धी नवनिद्धि घर आई । 
 देहिक वाचिक मानस पापू, 
 काम क्रोध दूर होय तापू । 
 शक्ति हीन बलवान कहावे, 
 मानव मूढ विद्या यश पावे। 
 जय जय जय दरियाव नमामि 
 चरणाश्रम मम देवों स्वामी । 
 सफल होई स्वेच्छा मन धरई, 
 अष्टोत्तर शत पाठ जो करई। 
 सायं प्रातः पढे चालीसा 
 ते सुख भोग मोक्ष पद वासा |

दोहा : 
उर में बसो दरियावजी, ताप त्रय स्वयं नशाय । 
बलरामा को ज्ञान दो, दुविधा सब मिट जाय।।