Monday 27 March 2023

श्री अभाँबाई का विरह का अंग ••

श्री अभाँबाई का विरह का अंग ••

नमो नमो निराकार को, नमो निरंजन नाथ । 
जय अँभा की वन्दना, (कर) जोड़ नमाऊँ माथ ॥ 
नमो नमो जगदेव को, सकल सुधारणा काम । 
जन अभा प्रणाम कर, निस दिन सिवरुँ राम ।।
बिरह आण जाग्रत भई, किया देह में बास । 
ताला बेली जीव में, आवे अमूं ज्या स्वास ।।
हाथां पांवा फूटणी, चले कमर में पीर । 
नाड़ नाड़ नशां सब दूखे, घायल हुवो शरीर।।
बिरह घटा घन ऊमटी, नैण न खण्डे धार।
रोम रोम चेतन भयो, सब तन भयो सुमार
मात पिता जग देख कर, मन में किया विचार ।
बेग बुलावो वेद ने, औषध करो तैयार।।
देखत सब इचरजकरे, सही भाजसी देह । 
भंग पड़यो कोई भक्ति में, यूं कह रामस्नेह।।
राम शब्द परगट सुण्यो, अदरत हुई अवाज ।
सही पाधाय सन्त जन, सुण अनहद की गाज।।
किस्तूरी कूँपा खुल्या, सो मुख कह्या न जाय।
नाड़ नाड़ हर रोम में, सिलता चले सुभाय।।
रैन न आये निंदडी, दिवस न लागे भूक ।
साहबजी से आंतरो, पूर्व जनम की चूक।।
जन अँभा बिरह भेद की, किण सू कहिये बात ।
बिती सोहि जाणसी, जाणे निरंजन नाथ।।
नेण बेण बुदता भया, पांवा चल्यो न जाय।
बोलन की सरदा नही, श्रवणा सुण्यो न जाय।।
कहता आवे लाजडी, बिरह तणा बिस्तार ।
के तो जाणे सतगुरु, के जाणे सिरजनहार।।
जन अभा इण बिरहकी, किण सूं बुझं बात ।
मन मिलावू संतजन, सतगुरु पकड्यो हात।।
खारो लागे जगत सब, मिठा लागे राम ।
अँभा आसा राम की, सकल पुरवे काम।।
मन मैला दिसे नही, किण सूँ कहिये बात ।
सतगुरु साचा टेमजी, समरथ पकडे हाथ।।
जन अंभा इण दरदकी, पीड न जाणे कोय ।
सो चोकस इण जाणसी, ज्या उर बिती होय।।

Friday 3 March 2023

श्री आचार्य चालीसा

श्री आचार्य चालीसा
विध्न हरण मंगल करण, भज दरियाव का नाम
श्री हरिनारायण चालीसा, पढ़े ध्यान धर राम

जय जय जय जय हरिनारायण
जय जग वंदित धर्म परायण
रामस्नेही सन्त शिरोमणि
पीठाधीश्वर रेण मुकुटमणि
शीलगाव मरुधर जग चांवा
भादवा बदी आठम प्रगटावा
भौतिक सुख सब नश्वर जाना
गुरु बलराम शरण मे आना
चार वेद उपनिषद पुराणा
पठन मनन चिंतन परिज्ञाना
षड दर्शन भाषा विख्याता
रामायण गीता व्याख्याता
दिवस चतुर्थी पोष महीना
पीठाधीश्वर पदवी दीना
दिव्य ललाट नेत्र विशाला
ब्रह्मचर्य का तेज निराला
वसन गुलाबी गुरुवर सोहे
निर्मल वचन राम मन मोह
राम राम श्री राम सुमिरते
राम छवि हिर्दय में धरते
मधुर मधुर संगीत सुनावे
श्रोता मंत्र मुग्ध हो जावे
गरुड़ासन जब आप विराजे
प्रवचन सिंह समान है गाजे
चतुर्कषाय से किया किनारा
कनक कमल सम तव व्यवहारा
जप तप वृत अनुपम अवतारी
ध्यान साधना मय अविकारी
नमो नमामि अंतर्यामी
सर्व ऋद्धि सिद्धि के स्वामी
राष्ट्र सन्त सुरतरु महाज्ञानी
घर घर गूंजे अमृत वाणी
संकट मोचक सब सुख दाता
भक्त जनों के भाग्य विधाता
सन्मति सागरवर गंभीरा
समता योगी स्नेह समीरा
नर नारी बालक जन मोह
जनता सारी भजति तोहे
देश विदेश में भक्त है नामी
धनपति निर्धन सबके स्वामी
हरिजन मन परिवर्तन किना
हिन्दू धर्म प्रतिष्ठित किना
राम नाम का अलख जगाया
पतित जनो को पार लगाया
राम धाम रेन अति भारी
जीर्णोद्धार किया अवतारी
रेन पीठ के अष्ठम पठधर
जग में चमके महामुनिस्व्र
तरक मनिसि महाधुरंध्र
अविचल योगी ध्यान पुरन्दर
अचल अमल अटल जगदेवा
निर्मल सबल करत सब सेवा
अदभुत योगी महातपस्वी
सुरसती साधक परम्मनस्वी
स्यंमनिष्ठ धर्म महा नायक
सन्त परम्परा के उन्नायक
गुरु दरियाव का नाम कमाया
रेन पीठ जग में चमकाया
बड़े बड़ो का आदर किना
दरिया रत्न अलंकर दीना
एं हिं श्रीम क्लिम हरिनारायण
जाप जपो शुभ राम रसायन
चमत्कार कहि दिए दिखाई
निर्धन अक्षत सम्पति पाई
मिटी बीमारी मिरगी भारी
कैंसर रोग मुक्त नरनारी
बंध्या पुत्र वती हो जावे
हरिनारायण कृपा पावे
दिन दुखी दरिया दर आता
मन अभिलाषा पुरी पाता
शहर पिंपाड़ में पर्चा दिना
खारा पानी मीठा किना
राम रक्षा मन्त्र जो पावे
डाकिन साकिन प्रेत भगावे
सेवा में मेरा मन प्यारा
विन्यवान शिष्य परिवारा
जैसे दुख सबन के टारे
दूर करो प्रभु विध्न हमारे
राम सुमिर चालीसा गाओ
नवल सिद्धि नर नारी पावो

देव किशन सुभ प्रेरणा, गुरुवर आशिर्वाद।
चालीसा नित गाइये, गुरु दरियाव प्रशाद।।