Friday 15 November 2019

रामस्नेही सम्प्रदाय रेण की वंशावली

वंशावली

श्री रामानंदाचार्य जी महाराज
श्री अन्नतान्दाचार्य जी महाराज
श्री कृष्ण दास जी पयहारी महाराज
श्री अग्रदास जी महाराज 
श्री नारायणदास (भक्तमालि नाभादासजी) महाराज
श्री प्रेमपठा जी महाराज
श्री प्रेमभूरा जी महाराज
श्री रामदास जी महाराज
श्री छोटा नारायणदास जी महाराज
श्री सन्तदास जी महाराज
श्री प्रेमदास जी महाराज 
श्री दरियाव जी महाराज
श्री हरखाराम जी महाराज
श्री रामकरण जी महाराज 
श्री भगवतदास जी महाराज 
श्री रामगोपाल जी महाराज
श्री क्षमाराम जी महाराज
श्री बलरामदास जी महाराज
श्री हरिनारायण जी महाराज 

Tuesday 12 November 2019

अपने गुरुदेव का गुरुपद यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश से भी ऊँचा पद है।

अपने गुरुदेव का गुरुपद यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश से भी ऊँचा पद है। *गुरु साक्षात् परब्रह्म हैं।* ब्रह्माजी ने तो बाहर का शरीर दिया *किंतु गुरुदेव ने हमको ज्ञान का वपु (शरीर) दिया।*  विष्णु जी बाहर के शरीर का पालन करते हैं  *लेकिन गुरुदेव हमारे ज्ञान को  पुष्ट करते हैं। हमारे “मैं” को, हमारे चैतन्य वपु को ब्रह्ममय उपदेश दे के पुष्ट करते हैं।*  शिवजी तो बाहर के ‘कचरा (मलिनता भरे) शरीर’ को मारकर नये की परम्परा में ले जाते हैं।   *लेकिन गुरु जी तो जन्म-जन्मांतर के संस्कारों की सफाई करके हमें शुद्ध स्वरूप में जगाते हैं।* तो गुरुदेव ब्रह्मा-विष्णु-महेश की नाईं हमारे अंदर इतना परिवर्तन करते हैं फिर भी रूकते नहीं, *गुरुदेव तो अपने स्वरूप का दान दे देते हैं- ‘जो मैं हूँ वह तू है।’* तो ब्रह्म-परमात्मा से अपने को अभिन्न अनुभव करना यह गुरु तत्त्व का प्रसाद पाना है।

कहाँ तो अनंत ब्रह्मांडनायक परमेश्वर और कहाँ एक हाड़-मांस के शरीर में रहने वाला चेतन लेकिन ‘शरीर मैं हूँ’ यह भ्रांति मिटते ही *अनंत ब्रह्मांडनायक के साथ एका करा देते हैं गुरुदेव*

*ऐसे गुरुदेव को मेरा दण्डवत कोटि कोटि  नमन, नमन !*
*राम जी राम*

Friday 8 November 2019

गुरु –शिष्य का रिश्ता ही शाश्वत संबंध है

गुरु –शिष्य का रिश्ता ही शाश्वत संबंध है
हमारी देह हमें माँ-पिता से मिली है, और हम देह नहीं हैं। देह नश्वर भी है इसलिए देह के रिश्ते भी नश्वर हैं। मित्र से हमारा मन का रिश्ता होता है और क्योंकि हम मन भी नहीं हैं, इसलिए मन के रिश्ते भी बनते तो हैं लेकिन ये रिश्ता भी नश्वर है किन्तु गुरु से एक शिष्य का जो रिश्ता होता है वही एक मात्र आत्मा के तल पर होता है और ये आत्म तत्व ही शाश्वत है, अतः केवल गुरु –शिष्य का रिश्ता ही शाश्वत है। तभी कहा भी गया है कि गुरु से एक बार संबंध बन जाए अर्थात यदि एक बार आपके अंदर शिष्यत्व का जन्म हो जाए तो फिर गुरु से आपका रिश्ता अटूट हो जाता है। शिष्य एक बकरी या भेड़ की तरह होता है और गुरु एक गड़रिये की भांति होता है। यदि गौर किया हो तो समझिए कि जब एक गड़रिया जंगल में भेड़ों को छोड़ देता है चरने के लिए और शाम को जब वापसी का वक्त आता है तो यदि कोई भेड़ कम हो जाए तो वो फिर वो उसे ढूँढने के लिए निकलता, तो उस समय वो बाकी भेड़ों को तो छोड़ देता है और खोयी हुई भेड़ को ढूँढने निकल जाता है और जब वो मिल जाती है तो उसको फिर वो पैदल नहीं बल्कि अपने कंधे पर लाद कर बड़े प्यार से लाता है।
इसी प्रकार एक बार जब ये गुरु-शिष्य का रिश्ता बन जाता है तो भले ही हम नादानियों के कारण इस भव सागर में कहीं भी गुम हो जाएँ लेकिन वो जो हमारा परमपूज्य सतगुरु है वो हमें जन्म दर जन्म ढूँढता है उस भेड़ की तरह और फिर हमें उसी प्रेम से परम घर अर्थात मूल की तरफ उन्मुख कर देते है।
सतगुरु के चरणों में कोटि कोटि नमन।