राम राम कहे किसनदास, जबलग सास सरीर ।
अवध उलांग्या जात हे, ज्युं परबत को नीर
जब लग सास सरीर में, तबलग राम संभाल ।
किसना जेजन कीजिये, आय पहूंचे काल
राम भजन कर लिजीये, कर सतगुरु सुं हेत।
किसनदास ओसर भलो, चेत सके तो चेत
किसनदास ओसर बण्यो, राम भजन को डाव ।
ओसर चाल्यो जात है, कर कुछ व्हेतो उपाव
किसनदास निस दिन करे, राम भजन को गाड ।
बाहिर भीतर ओक रस, राम लडावो लाड
सपने राम न बीसरे, निस दिन करे फिराद ।
किसना जद ही जाणिये, सांई हंदा साद
राम राम रटबो करे, इमरत झरे अछूट ।
किसनदास वे संतजन, तारे च्यारुं खूंट।।
राम भजन कर किसनदास, लागो सांची सेव ।
सतगुरु का परताप सूं, परस्या अलख अभेव ।।
किसनदास करतार का, भजन किया भरपूर ।
घरही ज्ञान प्रकासियो, उदे अखंडित सूर।।
राम नाम का किसनदास, भजन किया भरपूर ।
सतगुरु का परताप सुं, परस्या निर्मल नूर।।
सेनी में सतगुर कही, मोकूं गुपती बात।
किसनदास रट बोकरो, राम राम दिन रात।।
Jai ho
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