अनंत श्री दाता दरियाव सा के अणभै वाणी से "पद"
कहा कहूं मेरे पिउ की बात, जोरे कहूं सोई अंग सुहात!!
जब में रही थी कन्या क्वारी,तब मेरे करम होता सिर भारी!!१!!
जब मेरी पिउ से मनसा दौड़ी, सत गुरू आन सगाई जोड़ी!!२!!
तब मै पिउ का मंगल गाया, जब मेरा स्वामी ब्याहन आया!!३!!
हथलेवा दे बैठी संगा, तब मोहिं लीनी बांये अंगा!!४!!
जन 'दरिया' कहै मिट गई दूती, आपो अरप पीव संग सूती!!५!!
जब मेरी पिउ से मनसा दौड़ी, सत गुरू आन सगाई जोड़ी!!२!!
तब मै पिउ का मंगल गाया, जब मेरा स्वामी ब्याहन आया!!३!!
हथलेवा दे बैठी संगा, तब मोहिं लीनी बांये अंगा!!४!!
जन 'दरिया' कहै मिट गई दूती, आपो अरप पीव संग सूती!!५!!
अमृत नीका कहै सब कोई, पीये बिना अमर नही होई!!१!!
कोई कहै अमृत बसै पाताला, नाग लोग क्यों ग्रासै काला!!२!!
कोई कहै अमृत समुद्र मांहि, बड़वा अगिन क्यों सोखत तांहि!!३!!
कोई कहै अमृत शशि में बासा, घटै बढै़ क्यों होइ है नाशा!!४!!
कोई कहै अमृत सुरंगा मांहि, देव पियें क्यों खिर खिर जांहि!!५!!
सब अमृत बातों की बाता, अमृत है संतन के साथा!!६!!
'दरिया' अमृत नाम अनंता, जा को पी-पी अमर भये संता!!७!!
कोई कहै अमृत समुद्र मांहि, बड़वा अगिन क्यों सोखत तांहि!!३!!
कोई कहै अमृत शशि में बासा, घटै बढै़ क्यों होइ है नाशा!!४!!
कोई कहै अमृत सुरंगा मांहि, देव पियें क्यों खिर खिर जांहि!!५!!
सब अमृत बातों की बाता, अमृत है संतन के साथा!!६!!
'दरिया' अमृत नाम अनंता, जा को पी-पी अमर भये संता!!७!!
है कोई संत राम अनुरागी। जाकी सुरत साहब से लागी।
अरस परश पिवके रंग राती, होय रही पतिब्रता!!१!!
दुतुयां भाव कछु नहीं समझै, ज्यों समुंद समानी सलिता!!२!!
मीन जाय कर समुंद समानी, जहं देखै जहं पानी।
अरस परश पिवके रंग राती, होय रही पतिब्रता!!१!!
दुतुयां भाव कछु नहीं समझै, ज्यों समुंद समानी सलिता!!२!!
मीन जाय कर समुंद समानी, जहं देखै जहं पानी।
काल कीर का जाल न पहुंचै, निर्भय ठौर लुभानी!!३!!
बांवन चंदन भौंरा पहुंचा,जहं बैठे तहं गंदा।
बांवन चंदन भौंरा पहुंचा,जहं बैठे तहं गंदा।
उड़ना छोड़ के थिर हो बैठा, निश दिन करत अनंदा!!४!!
जन दरिया इक राम भजन कर, भरम बासना खोई।
जन दरिया इक राम भजन कर, भरम बासना खोई।
पारस परस भया लोहू कंचन, बहुर न लोहा होई!!५!!
साधो,राम अनूपम बाणी।
पूरा मिला तो वह पद पाया,मिट गई खैंचातानी।।टेक।।
मूल चाँप दृढ आसन बैठा, ध्यान धनीसे लगाया।
उलटा नाद कँवलके मारग, गगना माहिं समाया।।१।।
गुरू के शब्द की कूंजी सेती, अनंत कोठरी खोली।
ध्रू के लोकपै कलश बिराजै, ररंकार धुन बोली।।२।।
बसत अगाध अगम सुख अपार, देख सुरत बौराई।
बस्तु घनी,पर बरतन ओछा, उलठ अपूठी आई।।३।।
सुरत सब्द मिल परचा हुआ, मेरू मध्दका पाया।
तामें पैेसा गगनमे आया, जायके अलख लखाया।।४।।
पण बिन पातुर, कर बिन बाजा,बिन मुख गावैं नारी।
बिन बादल जहाँ मेहा बरसैं,ढुमक-ढुमक सुख क्यारी।।५।।
जन दरियाव,प्रेम गुण गाया,वह मेरा अरट चलाया।
मेरुदंड होय नाल चली है,गगन बाग जहाँ पाया।।६।।
पूरा मिला तो वह पद पाया,मिट गई खैंचातानी।।टेक।।
मूल चाँप दृढ आसन बैठा, ध्यान धनीसे लगाया।
उलटा नाद कँवलके मारग, गगना माहिं समाया।।१।।
गुरू के शब्द की कूंजी सेती, अनंत कोठरी खोली।
ध्रू के लोकपै कलश बिराजै, ररंकार धुन बोली।।२।।
बसत अगाध अगम सुख अपार, देख सुरत बौराई।
बस्तु घनी,पर बरतन ओछा, उलठ अपूठी आई।।३।।
सुरत सब्द मिल परचा हुआ, मेरू मध्दका पाया।
तामें पैेसा गगनमे आया, जायके अलख लखाया।।४।।
पण बिन पातुर, कर बिन बाजा,बिन मुख गावैं नारी।
बिन बादल जहाँ मेहा बरसैं,ढुमक-ढुमक सुख क्यारी।।५।।
जन दरियाव,प्रेम गुण गाया,वह मेरा अरट चलाया।
मेरुदंड होय नाल चली है,गगन बाग जहाँ पाया।।६।।
"साधो ऐसी खेती करई, जासे काल अकाल न मराई!!"
रसना का हल बैल मन पवना, बिरह भोम तहं बाई।
रसना का हल बैल मन पवना, बिरह भोम तहं बाई।
राम नाम का बीज बोया, मेरे सतगुरू कला सिखाई!!१!!
ऊगा बीज भया कुछ मोटा, हिरदा मै डहडाया।
ऊगा बीज भया कुछ मोटा, हिरदा मै डहडाया।
किया निनाण भरम भरम सब खोया, जह प्रेम नीर बरखाया!!२!!
नाभी माहिं भया कुछ दीरघ, पोटा सा दळसाना।
नाभी माहिं भया कुछ दीरघ, पोटा सा दळसाना।
अध कंवल में सिरा निकासा, गगन नाद गरजाना!!३!!
मेरू डंड होय डांडी निकसी, ता ऊपर प्रकाशा।
मेरू डंड होय डांडी निकसी, ता ऊपर प्रकाशा।
बिज बुवाथा बिरह भोम में, फल लागा आकाशा!!४!!
परथम जहां शंक धुन उपजी, मन की आरत जागी।
परथम जहां शंक धुन उपजी, मन की आरत जागी।
गाजै गगन सुधा रस बरसै, नौबत बाजन लागी!!५!!
त्रिकुटी चढा़ अनंत सुख पाया, मन की ऊनत भागी।
त्रिकुटी चढा़ अनंत सुख पाया, मन की ऊनत भागी।
ऊंचे ज्ञान ध्यान सत बरतै, जहां सुषमन चूने लागी!!६!!
चढ़ आकाश सकल जग देखा, जुगती थो सो जानी।
चढ़ आकाश सकल जग देखा, जुगती थो सो जानी।
सम्पत मिली बिपत सब भागी, ब्रह्य जोत दरसानी!!७!!
जम गया दूध ब्रह्य कन निपजा, सुरत अवेरन हारी।
जम गया दूध ब्रह्य कन निपजा, सुरत अवेरन हारी।
हुई रास तब बरतन लागा, आनंद उपजा भारी!!८!!
निपजा नाज भवन भर राखा, ता मध सुरत समाई।
निपजा नाज भवन भर राखा, ता मध सुरत समाई।
जन 'दरिया' निर्भय पद परशा, तहं काल त पहुँचै आई!!९!!
"साधो मेरे सतगुरू भेद बताया, तासे राम निकट ही आया!"
मथुरा कृष्ण अवतार लिया है, धुरै निसाना धाई।
मथुरा कृष्ण अवतार लिया है, धुरै निसाना धाई।
ब्रह्यादिक शिव और सनकादिक, सब मिल करत बधाई!!१!!
गगन मंडल में रास रचा है, सहस गोपि इक कंथा।
गगन मंडल में रास रचा है, सहस गोपि इक कंथा।
शब्द अनाहद राग छती सौं, बाजा बजै अनंता!!२!
अकाश दिशा इक हस्ती उलटा, राई मान दरवाजा।
अकाश दिशा इक हस्ती उलटा, राई मान दरवाजा।
ता में होय गगन में आया, सुनै निरंतर बाजा!!३!!
सर्प एक बासक उनि हारे, विष तज अमृत पीवै।
सर्प एक बासक उनि हारे, विष तज अमृत पीवै।
कृष्ण चरण में लौटे दीन होय, अमर जुगन जुग जीवै!!४!!
जह इडा़ पिंगला राग उचारैं, चंदन सूर थकाना।
जह इडा़ पिंगला राग उचारैं, चंदन सूर थकाना।
बहती नदियां थिर होय बैठी, कलजुग किया पयाना!!५!!
राधा हरि सतभामा सुन्दर, मिली कृष्ण गल लागी।
राधा हरि सतभामा सुन्दर, मिली कृष्ण गल लागी।
अरस परस होय खेलन लागी, जब जाय दुबिधा भागी!!६!!
आइ प्रतीत और भया भरोसा, भीतर आतम जागी।
आइ प्रतीत और भया भरोसा, भीतर आतम जागी।
दरिया इकरंग राम नाम भज, सहज भया बैरागी!!७!!
चल चल वे हंसा राम सिन्ध, बागड़ में क्या रह्यो बन्ध।
जहाँ निर्जल धरती बहुत धूर, जहं साकित बस्ती दूर दूर!!१!!
ग्रीष्म ऋतु में तपै भोम, जहं आतम दुखिया रोम रोम!!२!!
जउवा नारू दुखित रोग, जहं मुकताहल नहीं खानपान!!३!!
जउवा नारू दुखित रोग,जहं मैं तैं बानी हरष सोग!!४!!
माया बागड़ बरनी यह, अब राम सिन्ध बरनूँ सुन लेह!!५!!
अगम अगोचर कथ्या न जाय, अब अनुभव मांहींकहूं सुनाय!!६!!
अगम पन्थ है राम नाम, ग्रह बसौ जाय परम धाम!!७!!
मान सरोवर बिमल नीर, जहं हँस समागम तीर तीर!!८!!
जहं मुकताहल बहु खानपान, जहं अवगत तीरथ नित स्नान!!९!!
पाप पुन्न की नहीं छोत, जहं गुरू शिष्य मेला सहज होत!!१०!!
गुण इन्द्रि मन रहे थाक, जहं पहुँ न सक्के बेद बाक!!११!!
अगम देश जहं अभयराय, जन दरिया सुरत अकेली जाय!!१२!!
जहाँ निर्जल धरती बहुत धूर, जहं साकित बस्ती दूर दूर!!१!!
ग्रीष्म ऋतु में तपै भोम, जहं आतम दुखिया रोम रोम!!२!!
जउवा नारू दुखित रोग, जहं मुकताहल नहीं खानपान!!३!!
जउवा नारू दुखित रोग,जहं मैं तैं बानी हरष सोग!!४!!
माया बागड़ बरनी यह, अब राम सिन्ध बरनूँ सुन लेह!!५!!
अगम अगोचर कथ्या न जाय, अब अनुभव मांहींकहूं सुनाय!!६!!
अगम पन्थ है राम नाम, ग्रह बसौ जाय परम धाम!!७!!
मान सरोवर बिमल नीर, जहं हँस समागम तीर तीर!!८!!
जहं मुकताहल बहु खानपान, जहं अवगत तीरथ नित स्नान!!९!!
पाप पुन्न की नहीं छोत, जहं गुरू शिष्य मेला सहज होत!!१०!!
गुण इन्द्रि मन रहे थाक, जहं पहुँ न सक्के बेद बाक!!११!!
अगम देश जहं अभयराय, जन दरिया सुरत अकेली जाय!!१२!!
साधो एक अचंभा दीठा।
कडुवा नीम कहै सब कोई, पीवै जाको मीठा।,,,,
बूंद के मांहिं समुंद समाना,राई में परबत डौलै।
बूंद के मांहिं समुंद समाना,राई में परबत डौलै।
चींटी के मांहि हस्ती बैठा, घट में अघटा बोलै!!१!!
कूंडा माहिं सूर समाना, चंद्र उलट गया राहू।
कूंडा माहिं सूर समाना, चंद्र उलट गया राहू।
राहू उलट कर केतू समाना, भोम में गगन समाहू!!२!!
त्रिन के भीतर अगिन समानी, राव रंक बस बोलै।
त्रिन के भीतर अगिन समानी, राव रंक बस बोलै।
उलट कयाल तुला माहिं समाना, नाज तराजु तोलै!!३!!
सतगुरू मिलै तो अर्थ बतावैं, जीव ब्रह्य का मेला।
सतगुरू मिलै तो अर्थ बतावैं, जीव ब्रह्य का मेला।
जन 'दरियाव' पद को परसै, सो है गुरू में चेला!!४!!
"ऐसे साधु करम दहै। अपना राम कबहुं नहिं बिसरै, बुरी भली सब सीस सहै।"
हस्ती चलै भुँसै बहु कूकर, ता का औगुन उर ना गहै।
हस्ती चलै भुँसै बहु कूकर, ता का औगुन उर ना गहै।
बाकी कबहूं मन नहीं आनै, निराकार की ओट रहै!!१!!
धन को पाय भया धनवंता, निरधन मिल उन बुरा कहै।
धन को पाय भया धनवंता, निरधन मिल उन बुरा कहै।
बाकी कबहु न मन में लावे, अपने धनी संग जाय रहै!!२!!
पति को पाय भई पतिब्रता, बहु व्यभिचारिन हांस करैं।
पति को पाय भई पतिब्रता, बहु व्यभिचारिन हांस करैं।
वाके संग कब हूं नहिं जावै, पति से मिलकर चिता जरे!!३!!
दरिया राम भजै जो साधू, जगत भेख उपहांस करै।
दरिया राम भजै जो साधू, जगत भेख उपहांस करै।
बाका दोष न अंतर आनै, चढ़ नाम जहाज भव सागर तरै!!४!!
"संतो क्या गृहस्थी क्या त्यागी।
जहां देखूं तेहि बाहर भीतर, घट घट माया लागी!!"
माटी की भीत पवन का थंबा, गुण औगुण से छाया।
माटी की भीत पवन का थंबा, गुण औगुण से छाया।
पांच तत्त आकार मिलकर, सहजां गृह बनाया!!१!!
मन भयो पिता मनसा भई माई, दुख सुख दोनों भाई।
मन भयो पिता मनसा भई माई, दुख सुख दोनों भाई।
आशा तृष्णा बहिनें मिलकर, गृह की सौंज बनाई!!२!!
मोह भयो पुरूष कुबुध भई धरनी, पांचों लड़का जाया।
मोह भयो पुरूष कुबुध भई धरनी, पांचों लड़का जाया।
प्रकृति अनंत कुटंबी मिलकर, कलहल बहुत उपाया!!३!!
लड़कों के संग लड़की जाई, ता का नाम अधीरी।
लड़कों के संग लड़की जाई, ता का नाम अधीरी।
वन में बैठी घर घर डोलै, स्वारथ संग खपीरी!!४!!
पाप पुन्न दोउ पास पडो़सी, अनन्त बासना नाती।
पाप पुन्न दोउ पास पडो़सी, अनन्त बासना नाती।
राम द्वेष का बंधन लागा, गृह बना उतपाती!!५!!
कोई गृह मांड गृह में बैठा, वैरागी बन बासा।
कोई गृह मांड गृह में बैठा, वैरागी बन बासा।
जन दरिया इक राम भजन बिन, घट घट में घर बासा!!६!!
है कोई संत राम अनुरागी,जाकी सुरत साहबसे लागी।।
अरस-परस पिवके सँग राती,होय रही पतिबरता।
दुनियाँ भाव कछू नहिं समझै,ज्यों समुँद समानी सरिता।।१।।
मीन जाय करि समुँद समानी,जहँ देखे तहँ पानी।
अरस-परस पिवके सँग राती,होय रही पतिबरता।
दुनियाँ भाव कछू नहिं समझै,ज्यों समुँद समानी सरिता।।१।।
मीन जाय करि समुँद समानी,जहँ देखे तहँ पानी।
काल कीरका जाल न पहूँचे, निर्भय ठौर लुभानी।।२।।
बावन चन्दन भौरा, पहुँचा, जहँ बैठे तहँ गन्धा।
बावन चन्दन भौरा, पहुँचा, जहँ बैठे तहँ गन्धा।
उडना छोडके थिर हो बैठा, निसदिन करत अनन्दा।।३।।
जन दरिया, इक राम-भजन कर भरम बासना खोई।
जन दरिया, इक राम-भजन कर भरम बासना खोई।
पारस परसि भया लोहकंचन,बहुरि न लोहा होई।।४।।
"पतिव्रता पति मिली है लाग, जहँ गगन मण्डल में परम भाग!!"
जहं जल बिन कंवला बहु अनन्त, जहँ बपु बिन भौंरागोह करन्त!!१!!
अनहद बानी अगम खेल, जहं दिपक जलै बिन बाती तेल!!२!!
जहं अनहद शब्द है करत घोर, बिन मुख बोले चात्रिक मोर!!३!!
बिन रसना गुन उदत नार, पांव बिन पातर निरत कार!!४!!
जहं जल बिन सरवर भरा पूर, जहं अनन्तजात बिन चन्द सूर!!५!!
बारह मास जहं ऋतु बसन्त, ध्यान धरैं जहँ अनन्त सन्त!!६!!
त्रिकुटी सुखमन चुवत छीर, बिन बादल बरषै मुक्ति नीर!!७!!
अमृत धारा चलै सीर, कोई पीवै बिरला सन्त धीर!!८!!
ररंकार धुन अरूप एक, सुरत गही उनही की टेक!!९!!
जन दरिया वैराट चूर, जहं बिरला पहूँचै सन्त सूर!!१०!!
जहं जल बिन कंवला बहु अनन्त, जहँ बपु बिन भौंरागोह करन्त!!१!!
अनहद बानी अगम खेल, जहं दिपक जलै बिन बाती तेल!!२!!
जहं अनहद शब्द है करत घोर, बिन मुख बोले चात्रिक मोर!!३!!
बिन रसना गुन उदत नार, पांव बिन पातर निरत कार!!४!!
जहं जल बिन सरवर भरा पूर, जहं अनन्तजात बिन चन्द सूर!!५!!
बारह मास जहं ऋतु बसन्त, ध्यान धरैं जहँ अनन्त सन्त!!६!!
त्रिकुटी सुखमन चुवत छीर, बिन बादल बरषै मुक्ति नीर!!७!!
अमृत धारा चलै सीर, कोई पीवै बिरला सन्त धीर!!८!!
ररंकार धुन अरूप एक, सुरत गही उनही की टेक!!९!!
जन दरिया वैराट चूर, जहं बिरला पहूँचै सन्त सूर!!१०!!
जीव बटाऊ रे बहता भाई मारग माहिं।
आठ पहर को चालना, घडी़ एक ठहरै नाहिं!!१!!
गरभ जनम बालक भयोरे, तरुनाये गर्भान।
गरभ जनम बालक भयोरे, तरुनाये गर्भान।
वृद्ध मृतक फिर गर्भ बसेरा, यह मारग परमान!!२!!
पाप पुन्न सुख दुख की करनी, बेड़ी थारे लागी पांय।
पाप पुन्न सुख दुख की करनी, बेड़ी थारे लागी पांय।
पंच ठगों के बस पड़यो रे, कब घर पहुंचै जाय!!३!!
चौरासी बासो बस्यो रे, अपना कर कर जान।
चौरासी बासो बस्यो रे, अपना कर कर जान।
निश्चय होय गोर रे, पद पहुंचै निर्बान!!४!!
राम बिना तो ठौर नहीं रे। जहं जावै तहं काल।
राम बिना तो ठौर नहीं रे। जहं जावै तहं काल।
जन दरिया मन उलट जगत सूं, अपना राम सम्भाल!!५!!
"चल सूवा तेरे आद राज, पिज्जरा में बैठा कौन काज!!"
बिल्ली का दुख दहै जोर, मारे पिज्जरा तोर तोर!!१!!
मरने पहले मरो धीर, जो पाछे मुक्ता सहज छीर!!२!!
सतगुरू शब्द हदये में धार, सहजां सहजां करो उचार!!३!!
प्रेम प्रबाह धसै जब आभ, नाद प्रकाशै परम लाभ!!४!!
फिरग्रह बसावो गगन जाय, जहं बिल्ली मृत्यु न पहूँचै आय!!५!!
आम फलै जहं रस अनन्त, जहं सुख में पावो परम तन्त!!६!!
झिरमिर झिरमिर बरसै नूर, बिन कर बाजै ताल तूर!!७!!
जन दरिया आनन्द पूर, जहं बिरला पहूँचै भाग सूर!!८!!
बिल्ली का दुख दहै जोर, मारे पिज्जरा तोर तोर!!१!!
मरने पहले मरो धीर, जो पाछे मुक्ता सहज छीर!!२!!
सतगुरू शब्द हदये में धार, सहजां सहजां करो उचार!!३!!
प्रेम प्रबाह धसै जब आभ, नाद प्रकाशै परम लाभ!!४!!
फिरग्रह बसावो गगन जाय, जहं बिल्ली मृत्यु न पहूँचै आय!!५!!
आम फलै जहं रस अनन्त, जहं सुख में पावो परम तन्त!!६!!
झिरमिर झिरमिर बरसै नूर, बिन कर बाजै ताल तूर!!७!!
जन दरिया आनन्द पूर, जहं बिरला पहूँचै भाग सूर!!८!!
"साधो अरट बहै घट मांहि।
जो देखा ताहि को दरसै, आदि अंत कछु नांहि!!"
अरध उरध बिच अमृत कूवा, जल पीवै कोई दासा।
उलटी माल गगन को चाली, सहज भरै अकाशा!!१!!
चेतन बैल चलै नहीं डोलै, अलख निरंजन माली।
इच्छा बिना दशों दिश पावै, सहज होत हरियाली!!२!!
नेपै हुई तभी मन परचा, कन की रास बढा़ई।
नेपै हुई तभी मन परचा, कन की रास बढा़ई।
सुरत सुन्दरी संग नहीं छोडै़, टारी टरै न जाई!!३!!
अगम अर्थ कोई बिरला जानै, जिन खोजा तिन पाया।
अगम अर्थ कोई बिरला जानै, जिन खोजा तिन पाया।
जन दरिया कोइ पूरा जोगी, कांसे नाद समाया!!४!!
"दुनियाँ भरम भूल बौराई,
आतम राम सकल घट भीतर, जाकी शुद्ध न पाई!!
मथुरा काशी जाय द्वारका, अड़सठ तीरथ न्हावै।
मथुरा काशी जाय द्वारका, अड़सठ तीरथ न्हावै।
सतगुरू बिन सोजी नहीं कोई, फिर फिर गोता खावै!!१!!
चेतन मुरत जड़ को सेवै, बड़ा थूल मत गैला।
चेतन मुरत जड़ को सेवै, बड़ा थूल मत गैला।
देह अचार किया कहा होई, भीतर है मन मैला!!२!!
जप तप संजय काया कसनी, सांख्य जोग ब्रत दाना।
जप तप संजय काया कसनी, सांख्य जोग ब्रत दाना।
यांते नहीं ब्रह्य से मेला, गुण हर करम बन्धाना!!३!!
बकता होय कर कथा सुनावै, श्रोता सुनघर आवैं।
बकता होय कर कथा सुनावै, श्रोता सुनघर आवैं।
ज्ञान ध्यान की समझ न कोई, कह सुन जनम गमावै!!४!!
जन दरिया यह बडा़ अचम्भा, कहै न समझै कोई।
जन दरिया यह बडा़ अचम्भा, कहै न समझै कोई।
भेड़ पूँछ गहि सागर लांघे, निश्चय डुबे सोई!!५!!
"अब मेरे सतगुरू करी सहाई।
भरम भरम बहु अवधि गंवाई, मैं आपहि में थित पाई!!"
हिरनी जाय सिंघ घर रोका डरप सिंघनी हारी।
हिरनी जाय सिंघ घर रोका डरप सिंघनी हारी।
सोता साह होय कर निर्भय, बस्तु करै रखवारी!!१!!
अजगर उडा़ शिखर को डा़का, गरूड़ थकित होय बैठा!!२!!
सिंह भया जाय स्याल अधीना, मच्छा चढै़ आकाशा।
अजगर उडा़ शिखर को डा़का, गरूड़ थकित होय बैठा!!२!!
सिंह भया जाय स्याल अधीना, मच्छा चढै़ आकाशा।
कुरम जाय अगन में सोता, देखै खलक तमाशा!!३!!
राजा रंक महल में पौढा़, रानी तहां सिधारी।
राजा रंक महल में पौढा़, रानी तहां सिधारी।
जन 'दरिया, वा पद को परसे, ता जन की बलिहारी!!४!!
"जांके उर उपजी नहीं भाई, सो क्या जाने पीर पराई।"
ब्यावर जाने पीर की सार, बांझ नार क्या लखै विकार!!१!!
पतिब्रता पति को ब्रत जानै,व्यभिचारिन मिल कहा बखानै!!२!!
हीरा को पारख जौहरी जानै, मूरख निरख के कहा बतावै!!३!!
लागा घाव करावै सोई, कोगत हारके दर्द न होई!!४!!
राम नाम मेरा प्राण-अधार, सोई राम रस पीवनहार!!५!!
जन 'दरिया' जानैगा सोई, प्रेम की भाल कलेजे पोई!!६!!
ब्यावर जाने पीर की सार, बांझ नार क्या लखै विकार!!१!!
पतिब्रता पति को ब्रत जानै,व्यभिचारिन मिल कहा बखानै!!२!!
हीरा को पारख जौहरी जानै, मूरख निरख के कहा बतावै!!३!!
लागा घाव करावै सोई, कोगत हारके दर्द न होई!!४!!
राम नाम मेरा प्राण-अधार, सोई राम रस पीवनहार!!५!!
जन 'दरिया' जानैगा सोई, प्रेम की भाल कलेजे पोई!!६!!
"नाम बिन भाव करम नहीं छूटै!"
साध संगत और राम भजन बिन, काल निरन्तर लूटै!!१!!
मल सेती जो मल को धोवै,सो मल कैसे छूटै!!२!!
प्रेम का साबुन नाम का पानी, दोय मिल तांता टूटै!!३!!
भेद अभेद भरम का भाण्डा, चौड़े पड़ पड़ फूटै!!४!!
गुरू मुख शब्द गहै उर अन्तर, सकल भरम से छूटै!!५!!
राम का ध्यान तू धर रे प्राणी, अमृत का मेंह बूटै!!६!!
जन दरियाव अरप दे आपा, जरा मरन तब छूटे!!७!!
साध संगत और राम भजन बिन, काल निरन्तर लूटै!!१!!
मल सेती जो मल को धोवै,सो मल कैसे छूटै!!२!!
प्रेम का साबुन नाम का पानी, दोय मिल तांता टूटै!!३!!
भेद अभेद भरम का भाण्डा, चौड़े पड़ पड़ फूटै!!४!!
गुरू मुख शब्द गहै उर अन्तर, सकल भरम से छूटै!!५!!
राम का ध्यान तू धर रे प्राणी, अमृत का मेंह बूटै!!६!!
जन दरियाव अरप दे आपा, जरा मरन तब छूटे!!७!!
"मै अरज करू गुरा थाने चरणा में राखो म्हाणे!"
हेलो प्रकट सुनो चाहे छाणे, मारी लाज शरम सब थाने।
हेलो प्रकट सुनो चाहे छाणे, मारी लाज शरम सब थाने।
ये भाई बंधु सुत माता मारे संग चले नही साथा!!१!!
सब स्वारथ का है नाता, गुरू तारण तिरण तुम दाता।
सब स्वारथ का है नाता, गुरू तारण तिरण तुम दाता।
ये भवजल भरियो भारी, दाता सुजत नाही किनारों!!२!!
मै डुब रहयो मझधारो, दाता दिल में दया बिचारो।
मै डुब रहयो मझधारो, दाता दिल में दया बिचारो।
ये संत बड़ा उपकारी है, जीवों का हितकारी!!३!!
म्हाने आयो भरोसो भारी नही छोडु शरण तुम्हारी।
म्हाने आयो भरोसो भारी नही छोडु शरण तुम्हारी।
ये तन मन धन गुरा थारो, चाहे शिस काट लो म्हारो!!४!!
यू दरिया दास ऊचारो मै चाकर हुँ चरणारों!!५!!
यू दरिया दास ऊचारो मै चाकर हुँ चरणारों!!५!!
"थाने नमो नमो गुरू दरिया,
थारी शरण किता जीव तिरिया!"
तुम ऐसा भगत उजीरा, जैसे बप घर दास कबिरा।
तुम ऐसा भगत उजीरा, जैसे बप घर दास कबिरा।
तुम नाम रता ज्युं नामा,गुरू राखा ज्युं नेह कामा!!१!!
तुम पुरण ब्रम्ह पठाया, धिन भाग हमारे आया।
तुम पुरण ब्रम्ह पठाया, धिन भाग हमारे आया।
तुम नाम अमिरस दिया, म्हे तो शरण तुम्हारी जिया!!२!!
तुम हिंदु तुरक निराली, तुम काड़ी ग्यान गिराली।
तुम हिंदु तुरक निराली, तुम काड़ी ग्यान गिराली।
तुम पंथ पकड़िया आदु, गुरू दर्शन जैसा दादु!!३!!
मै तो तुम देख्याई जिऊँ, मै तो बार बार जल पिऊँ।
मै तो तुम देख्याई जिऊँ, मै तो बार बार जल पिऊँ।
मै तो बेर बेर बलीहारी, जन सुखिया शरण तुम्हारी!!४!!
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