मिश्रित साखी का अंग
अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का " मिश्रित साखी का अंग " प्रारंभ । राम राम
फूलों
में फल मानकर,
भली विभूति जाय ।
अति शीतल सुगंधता, नवधा भक्ति उपाय (1)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि आज हम फूलों को ही फल मानकर प्रसन्न हो गए हैं जिससे वास्तव में जो परमात्मा की विभूति है वह हाथ से निकल रही है । यह संसार भी फूल की भांति प्रारंभ में बहुत सुन्दर एवं प्यारा लगता है लेकिन आज अज्ञानी मानव यह बात बिल्कुल भूल गया है कि ईश्वर ही उसके सच्चे प्रेमास्पद है । राम राम !
अति शीतल सुगंधता, नवधा भक्ति उपाय (1)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि आज हम फूलों को ही फल मानकर प्रसन्न हो गए हैं जिससे वास्तव में जो परमात्मा की विभूति है वह हाथ से निकल रही है । यह संसार भी फूल की भांति प्रारंभ में बहुत सुन्दर एवं प्यारा लगता है लेकिन आज अज्ञानी मानव यह बात बिल्कुल भूल गया है कि ईश्वर ही उसके सच्चे प्रेमास्पद है । राम राम !
फूलों
में फल मानकर,
भली विभूति येह ।
ता सेती मऊवा भला, सकल त्याग फल लेह (2)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मऊवा के वृक्ष के पत्ते और फूल तो झड़ जाते हैं तथा केवल फल रह जाते हैं जो काम के होते हैं । इसी प्रकार जीवन में भक्ति नहीं है परन्तु सांसारिक सभी सुख-वैभव है तो वे किस काम के । राम राम !
ता सेती मऊवा भला, सकल त्याग फल लेह (2)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मऊवा के वृक्ष के पत्ते और फूल तो झड़ जाते हैं तथा केवल फल रह जाते हैं जो काम के होते हैं । इसी प्रकार जीवन में भक्ति नहीं है परन्तु सांसारिक सभी सुख-वैभव है तो वे किस काम के । राम राम !
दरिया
धन बहुता मिला, तूं नहीं जाणत मोय ।
ताते उनत रहित है, साच कहत हूँ तोय (3)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मुझे इतना धन मिला है जिसका कोई पार नहीं है । मैं सत्य कहता हूँ कि मुझे कैसा धन मिला है तुम नहीं जान सकते इसलिए तुम उस धन से वंचित हो । भगवद् भजन, सत्संग-स्वाध्याय रूपी धन ही वास्तविक धन है क्योंकि इससे शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है । राम राम !
ताते उनत रहित है, साच कहत हूँ तोय (3)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मुझे इतना धन मिला है जिसका कोई पार नहीं है । मैं सत्य कहता हूँ कि मुझे कैसा धन मिला है तुम नहीं जान सकते इसलिए तुम उस धन से वंचित हो । भगवद् भजन, सत्संग-स्वाध्याय रूपी धन ही वास्तविक धन है क्योंकि इससे शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है । राम राम !
जन
दरिया अंग साध का, शीतल
वचन शरीर ।
निर्मल दशा कमोदिनी, मिल्यां मिटावे पीर (4)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि संतो के वचन और शरीर दोनों ही शीतल होते हैं । कमोदिनी (कमलनी) फूल कितना कोमल होता है, इसी प्रकार संतों का स्वभाव भी बिल्कुल निर्मल होता है । जब वे महापुरुष मिलते हैं तो पीड़ा मिट जाती है । यही तो वास्तव में सतगुरु के लक्षण हैं । राम राम !
निर्मल दशा कमोदिनी, मिल्यां मिटावे पीर (4)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि संतो के वचन और शरीर दोनों ही शीतल होते हैं । कमोदिनी (कमलनी) फूल कितना कोमल होता है, इसी प्रकार संतों का स्वभाव भी बिल्कुल निर्मल होता है । जब वे महापुरुष मिलते हैं तो पीड़ा मिट जाती है । यही तो वास्तव में सतगुरु के लक्षण हैं । राम राम !
संकट
पड़े जब साध
पे, सब संतन
के सोग ।
दरिया सहाय करे हरि, परचा माने लोग (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जब संतों पर कोई संकट आता है तो भगवान उनकी सहायता करते हैं परंतु लोग समझते हैं की महाराज ने परचा दिया । संतजन अहर्निश राम नाम जाप करते रहने के कारण उनकी आत्मा का परमात्मा से तादात्म्य भाव स्थापित हो जाता है । राम राम !
दरिया सहाय करे हरि, परचा माने लोग (5)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जब संतों पर कोई संकट आता है तो भगवान उनकी सहायता करते हैं परंतु लोग समझते हैं की महाराज ने परचा दिया । संतजन अहर्निश राम नाम जाप करते रहने के कारण उनकी आत्मा का परमात्मा से तादात्म्य भाव स्थापित हो जाता है । राम राम !
बाताँ
में ही बह
गया, निकस गया दिन रात ।
दरिया मोलत पूरी भई, आण पड़ी जम घात (6)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि बातों-ही बातों में ये दिन-रात जा रहे हैं तथा शरीर की अवधि पूरी होने वाली है । अतः यदि भजन नहीं किया तो बातें करने में ही सारा जीवन बरबाद हो जायेगा । हम यहाँ मोलत लेकर आए हैं, मोलत पूरी होते ही सबको छोड़कर वापस जाना पड़ेगा । राम राम !
दरिया मोलत पूरी भई, आण पड़ी जम घात (6)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि बातों-ही बातों में ये दिन-रात जा रहे हैं तथा शरीर की अवधि पूरी होने वाली है । अतः यदि भजन नहीं किया तो बातें करने में ही सारा जीवन बरबाद हो जायेगा । हम यहाँ मोलत लेकर आए हैं, मोलत पूरी होते ही सबको छोड़कर वापस जाना पड़ेगा । राम राम !
दरिया
औषध राम रस, पीयां
होत समाध ।
महारोग जामण मरण, तेहि की लगे न व्याध (7)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज बहुत ही सुंदर बात कह रहे हैं कि यह राम रस बहुत ही अच्छी औषधी है । जब यह औषधी पी जाती है तो समाधि लगती है तथा जन्म-मरण का रोग सदा-सदा के लिए मिट जाता है अर्थात जीव परम पद (मोक्ष) को प्राप्त हो जाता है । राम राम !
महारोग जामण मरण, तेहि की लगे न व्याध (7)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज बहुत ही सुंदर बात कह रहे हैं कि यह राम रस बहुत ही अच्छी औषधी है । जब यह औषधी पी जाती है तो समाधि लगती है तथा जन्म-मरण का रोग सदा-सदा के लिए मिट जाता है अर्थात जीव परम पद (मोक्ष) को प्राप्त हो जाता है । राम राम !
दरिया
अमल है आसुरी,
पीयां होत शैतान ।
राम रसायन जो पिवे, सदा छाक गलतान (8)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि अमल आसुरी है और इसे पीने वाले व्यक्ति के अंदर शैतानी आती है । अमल, तंबाकू, भांग, धतूरा, मदिरा इत्यादि की पुराणों बहुत निन्दा की है तथा इनका सेवन करने वाले व्यक्ति की अधोगति होती है । यदि नशा करना ही है तो राम नाम का करो जो कि एक बार कर लेने के पश्चात फिर कभी उतरता नहीं है । राम राम !
राम रसायन जो पिवे, सदा छाक गलतान (8)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि अमल आसुरी है और इसे पीने वाले व्यक्ति के अंदर शैतानी आती है । अमल, तंबाकू, भांग, धतूरा, मदिरा इत्यादि की पुराणों बहुत निन्दा की है तथा इनका सेवन करने वाले व्यक्ति की अधोगति होती है । यदि नशा करना ही है तो राम नाम का करो जो कि एक बार कर लेने के पश्चात फिर कभी उतरता नहीं है । राम राम !
'र' रा
तो रब्ब आप है,
'म' मा मोहम्मद
जाण ।
दोय हरफ के मायनें, सब ही वेद पुराण (9)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि रकार और मकार के अंदर सभी धर्म - संप्रदायों का समावेश हो गया जिसका नाम जाप करते रहना चाहिए ।राम राम !
दोय हरफ के मायनें, सब ही वेद पुराण (9)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि रकार और मकार के अंदर सभी धर्म - संप्रदायों का समावेश हो गया जिसका नाम जाप करते रहना चाहिए ।राम राम !
" र " रंकार
अनहद की, दरिया
परख अवाज ।
और इष्ट पहुंचे नहीं, जहाँ राम का राज (10)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि ररंकार परमात्मा की परख अनुभूति केवल ध्यान योग से ही हो सकती है । जहाँ उस निर्गुण ब्रह्म "राम "का प्रभाव होता है वहाँ अन्य देवताओं की पहुंच असंभव है । राम राम !
और इष्ट पहुंचे नहीं, जहाँ राम का राज (10)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि ररंकार परमात्मा की परख अनुभूति केवल ध्यान योग से ही हो सकती है । जहाँ उस निर्गुण ब्रह्म "राम "का प्रभाव होता है वहाँ अन्य देवताओं की पहुंच असंभव है । राम राम !
शिव
ब्रह्मा
अरू विष्णु का, ये
ही उरे मँडाण ।
जन दरिया इनके परे, निर्गुण का निसाण (11)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि शिव,ब्रह्मा, विष्णु आदि देवों का प्रभाव केवल मन, बुद्धि, चित्त तक ही सीमित रहता है । इनके आगे त्रिकुटी से ब्रह्मरन्ध्र तक केवल निर्गुण ब्रह्म का ही प्रभाव रहता है , जिसे केवल ध्यान योग से अनुभव किया जा सकता है । अतः जिसने भगवान का नाम ले लिया, उसने सब कुछ कर लिया । राम राम !
जन दरिया इनके परे, निर्गुण का निसाण (11)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि शिव,ब्रह्मा, विष्णु आदि देवों का प्रभाव केवल मन, बुद्धि, चित्त तक ही सीमित रहता है । इनके आगे त्रिकुटी से ब्रह्मरन्ध्र तक केवल निर्गुण ब्रह्म का ही प्रभाव रहता है , जिसे केवल ध्यान योग से अनुभव किया जा सकता है । अतः जिसने भगवान का नाम ले लिया, उसने सब कुछ कर लिया । राम राम !
दरिया
देही गुरुमुखी, अविनाशी की हाट
।
सन्मुख होय सौदा करे, सहजां खुले कपाट (12)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि यदि यह शरीर गुरुमुखी होतो यह अविनाशी ( परमात्मा ) की हाट है । तथा यदि यह जीव सतगुरु के सन्मुख होकर सौदा करता है तो सहज ही परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है । तथा सहज ही कपाट खुल जाता है । राम राम !
सन्मुख होय सौदा करे, सहजां खुले कपाट (12)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि यदि यह शरीर गुरुमुखी होतो यह अविनाशी ( परमात्मा ) की हाट है । तथा यदि यह जीव सतगुरु के सन्मुख होकर सौदा करता है तो सहज ही परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है । तथा सहज ही कपाट खुल जाता है । राम राम !
अरंड
आक अरू बांस तरू, होता चन्दन संग ।
गाँठ गंठीला थोथरा, पलटा नाहिं अंग (13)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो लोग गुरूमुखी नहीं हैं वे अरंड, आक और बाँस के समान हैं अर्थात वे गाँठ गंठीले थोथे हैं । इसलिए चंदन का संग करने पर भी उनमें चन्दन की सुगंधी नहीं आती । इसी प्रकार इस संसार में जो आक और बांस के समान दुष्ट व्यक्ति होते हैं, उनमें परिवर्तन नहीं हो सकता क्योंकि उनके पेट में गाँठे (कपट) है । राम राम !
गाँठ गंठीला थोथरा, पलटा नाहिं अंग (13)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो लोग गुरूमुखी नहीं हैं वे अरंड, आक और बाँस के समान हैं अर्थात वे गाँठ गंठीले थोथे हैं । इसलिए चंदन का संग करने पर भी उनमें चन्दन की सुगंधी नहीं आती । इसी प्रकार इस संसार में जो आक और बांस के समान दुष्ट व्यक्ति होते हैं, उनमें परिवर्तन नहीं हो सकता क्योंकि उनके पेट में गाँठे (कपट) है । राम राम !
उभय
करम बंधन करे, नाम करे भय हाण
।
दरिया ऐसे दास के, बरते खैंचातण (14)
विधि और निषेध अंततः तो कर्म ही है तथा कर्म की जननी है जड़ता और अज्ञान । इस प्रकार से पाप तो बंधन है ही परन्तु पुण्य भी बंधन है । बंधन का तात्पर्य केवल इतना ही है कि उस शुभकर्म का फल भोगने के लिए उस कर्ता जीव को पुनः जन्म धारण करना पड़ेगा । अतः इसी दृष्टि से वह बंधन है । राम राम !
दरिया ऐसे दास के, बरते खैंचातण (14)
विधि और निषेध अंततः तो कर्म ही है तथा कर्म की जननी है जड़ता और अज्ञान । इस प्रकार से पाप तो बंधन है ही परन्तु पुण्य भी बंधन है । बंधन का तात्पर्य केवल इतना ही है कि उस शुभकर्म का फल भोगने के लिए उस कर्ता जीव को पुनः जन्म धारण करना पड़ेगा । अतः इसी दृष्टि से वह बंधन है । राम राम !
दरिया
दुखिया जब लगी,
पखा पखी बेकाम ।
सुखिया जब ही होयगा, राज निकण्टा राम (15)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि आज हमारे जीवन में दुःखों का सिलसिला जारी है परन्तु इन दुःखों का अनुभव तब तक ही है, जब तक कि हमारे अंतःकरण में राग-द्वेष है तथा हम अपने और पराये की सीमा में बंधे हुए हैं । जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में भगवद् नाम को ही प्राथमिकता दी है, वह किसी भी परिस्थिति में दुःखी नहीं हो सकता । इस प्रकार से जब एक ही राम का राज होगा, तभी हम सुखी हो सकते हैं । राम राम !
सुखिया जब ही होयगा, राज निकण्टा राम (15)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि आज हमारे जीवन में दुःखों का सिलसिला जारी है परन्तु इन दुःखों का अनुभव तब तक ही है, जब तक कि हमारे अंतःकरण में राग-द्वेष है तथा हम अपने और पराये की सीमा में बंधे हुए हैं । जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में भगवद् नाम को ही प्राथमिकता दी है, वह किसी भी परिस्थिति में दुःखी नहीं हो सकता । इस प्रकार से जब एक ही राम का राज होगा, तभी हम सुखी हो सकते हैं । राम राम !
दिष्ट
न मुष्ट न अगम
है, अति ही करड़ा
काम ।
दरिया पूर्ण ब्रह्म में, कोई संत करे विश्राम (16)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि वह परमात्मा की दृष्टि में भी आते हैं तथा मुष्टि अर्थात पकड़ में भी नहीं आते हैं । वास्तव में उस पूर्णब्रह्म परमात्मा में कोई महापुरुष ही विश्राम ले सकते हैं । क्योंकि जो परमात्मा जैसा होगा वही परमात्मा में विश्राम लेगा । राम राम !
दरिया पूर्ण ब्रह्म में, कोई संत करे विश्राम (16)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि वह परमात्मा की दृष्टि में भी आते हैं तथा मुष्टि अर्थात पकड़ में भी नहीं आते हैं । वास्तव में उस पूर्णब्रह्म परमात्मा में कोई महापुरुष ही विश्राम ले सकते हैं । क्योंकि जो परमात्मा जैसा होगा वही परमात्मा में विश्राम लेगा । राम राम !
है
कोई अवगुण दास में, नहीं राम को दोष
।
साधु चाले पेंड दस, हरि आवे सौ कोस (17)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि अवगुण तो दास (साधक) में ही है । यदि राम का मिलन नहीं हो रहा है तो इसमें भगवान का दोष नहीं है क्योंकि यदि साधु दस कदम आगे रखता है तो परमात्मा सौ कोस करीब आते हैं । अतः हरि के ऐसे उदार स्वभाव को देखकर साधक को चहिये कि वह सदा उनकी याद में डूबा रहे । राम राम !
दरिया साधु कृपा करे, तो तारे संसार ।
तारणहारा राम है, जा में फेर न सार (18)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि एक साधु कृपा करता है तो सारे संसार को तार देता है । तारणहारा तो राम का नाम है जिसमें कुछ भी संदेह नही है । इसीलिए तो लोग संतों के दर्शन के लिए लालायित रहते हैं तथा दर्शन करके अपने अहोभाग्य समझते हैं । राम राम !
साधु चाले पेंड दस, हरि आवे सौ कोस (17)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि अवगुण तो दास (साधक) में ही है । यदि राम का मिलन नहीं हो रहा है तो इसमें भगवान का दोष नहीं है क्योंकि यदि साधु दस कदम आगे रखता है तो परमात्मा सौ कोस करीब आते हैं । अतः हरि के ऐसे उदार स्वभाव को देखकर साधक को चहिये कि वह सदा उनकी याद में डूबा रहे । राम राम !
दरिया साधु कृपा करे, तो तारे संसार ।
तारणहारा राम है, जा में फेर न सार (18)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि एक साधु कृपा करता है तो सारे संसार को तार देता है । तारणहारा तो राम का नाम है जिसमें कुछ भी संदेह नही है । इसीलिए तो लोग संतों के दर्शन के लिए लालायित रहते हैं तथा दर्शन करके अपने अहोभाग्य समझते हैं । राम राम !
दरिया
गम दरियाव की, खबर
मरजीवा लावे ।
तन की आशा छोड़ ही, तब हीरा पावे (19)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि भगवान का नाम अथाह दरिया के समान है । उसकी सीमा और गहराई का पता लगाना कोई साधारण बात नहीं है । जो व्यक्ति अपने तन की आशा छोड़ देता है वही समुद्र की गहराई का पता लगा सकता है । इसी प्रकार जो साधक परमात्मा के नाम में डुबकी लगा लेता है वही परमात्मा रूपी हीरे को प्राप्त कर सकता है । राम राम !
तन की आशा छोड़ ही, तब हीरा पावे (19)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि भगवान का नाम अथाह दरिया के समान है । उसकी सीमा और गहराई का पता लगाना कोई साधारण बात नहीं है । जो व्यक्ति अपने तन की आशा छोड़ देता है वही समुद्र की गहराई का पता लगा सकता है । इसी प्रकार जो साधक परमात्मा के नाम में डुबकी लगा लेता है वही परमात्मा रूपी हीरे को प्राप्त कर सकता है । राम राम !
पद
गावे साखी कहे, मन रिझावे
आन ।
दरिया कारज ना सरे, देह करी गुजरान (20)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि तुम पद गाकर और साखियाँ कहकर लोगों के मन को भले ही रिझा लो परन्तु इससे लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाओगे । इस प्रकार से तुम शरीर के द्वारा गुजरान कर सकते हो परन्तु परम लाभ की प्राप्ति नहीं हो सकती । अतः महापुरुषों के वचनों को प्रत्येक व्यक्ति नहीं समझ पाते हैं । राम राम ।
दरिया कारज ना सरे, देह करी गुजरान (20)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि तुम पद गाकर और साखियाँ कहकर लोगों के मन को भले ही रिझा लो परन्तु इससे लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाओगे । इस प्रकार से तुम शरीर के द्वारा गुजरान कर सकते हो परन्तु परम लाभ की प्राप्ति नहीं हो सकती । अतः महापुरुषों के वचनों को प्रत्येक व्यक्ति नहीं समझ पाते हैं । राम राम ।
दरिया
दाई बांझड़ी, आवे ब्यावर संग ।
दरद मरम जाणे नहीं, करे रंग में भंग (21)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो व्यक्ति राम नाम के तथा परमात्मा के स्वरूप के प्रेमी होते हैं वे ही प्रेम का स्वरूप तथा रहस्य जान सकते हैं । प्रसव काल की पीड़ा को वही स्त्री जान सकती है, जिसके संतान उत्पन्न हुई है । परंतु जो बांझड़ी दाई होती है , उसे क्या पता कि प्रसव काल की पीड़ा कितनी कठिन होती है । अतः वह उसे सहारा तो क्या देगी अपितु और भी गड़बड़ी कर देगी । राम राम !
दरद मरम जाणे नहीं, करे रंग में भंग (21)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो व्यक्ति राम नाम के तथा परमात्मा के स्वरूप के प्रेमी होते हैं वे ही प्रेम का स्वरूप तथा रहस्य जान सकते हैं । प्रसव काल की पीड़ा को वही स्त्री जान सकती है, जिसके संतान उत्पन्न हुई है । परंतु जो बांझड़ी दाई होती है , उसे क्या पता कि प्रसव काल की पीड़ा कितनी कठिन होती है । अतः वह उसे सहारा तो क्या देगी अपितु और भी गड़बड़ी कर देगी । राम राम !
बहु
विघन माया करे, निश दिन झंपे काल ।
दरिया कुण बल साध के, रक्षक राम दयाल (22)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि साधक बैचारा किस प्रकार साधन करे, क्योंकि जब कोई साधक साधना शुरु करना चाहता है तब माया आकर विघ्न करती है तथा काल तो रात दिन झपट्टा मारता ही रहता है । साधकों के तो केवल भागवान का ही बल है तथा राम को छोड़कर महापुरुषों के पास अन्य कोई शक्ति नहीं है । राम राम !
दरिया कुण बल साध के, रक्षक राम दयाल (22)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि साधक बैचारा किस प्रकार साधन करे, क्योंकि जब कोई साधक साधना शुरु करना चाहता है तब माया आकर विघ्न करती है तथा काल तो रात दिन झपट्टा मारता ही रहता है । साधकों के तो केवल भागवान का ही बल है तथा राम को छोड़कर महापुरुषों के पास अन्य कोई शक्ति नहीं है । राम राम !
दरिया
देखी बानगी, वेस मुलाई नांहि ।
धन्य धन्य वे साधवां, गरक भया ता मांहि (23)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि व्यापार करते समय व्यापारी वस्तु का केवल एक नमूना देखकर बड़ी मात्रा में वस्तु क्रय करता है । इसी प्रकार सतगुरु भी परमात्मा का थोड़ा सा नमूना बताते हैं कि भगवान का स्वरूप ऐसा है, वे प्रेमी हैं, दयालु हैं, करूणा-वरूणालय हैं । जो साधक सतगुरु के ऊपर दृढ़ विश्वास करके परमात्मा की विशालता में डूब जाते हैं, वे धन्यवाद के पात्र हैं । राम राम !
धन्य धन्य वे साधवां, गरक भया ता मांहि (23)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि व्यापार करते समय व्यापारी वस्तु का केवल एक नमूना देखकर बड़ी मात्रा में वस्तु क्रय करता है । इसी प्रकार सतगुरु भी परमात्मा का थोड़ा सा नमूना बताते हैं कि भगवान का स्वरूप ऐसा है, वे प्रेमी हैं, दयालु हैं, करूणा-वरूणालय हैं । जो साधक सतगुरु के ऊपर दृढ़ विश्वास करके परमात्मा की विशालता में डूब जाते हैं, वे धन्यवाद के पात्र हैं । राम राम !
दरिया
काया कारवि, औगण की ही
रास ।
औगण ऊपर गुण करे, ता जन को शाबाश (24)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज इस शरीर के हानि और लाभ, इन दो पक्षों का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि हमारा यह शरीर अत्यंत महिमामय भी है और नारकीय अवगुणों से भरा हुआ पतनकारक भी है । इस देव दुर्लभ मानव शरीर की महिमा केवल इसके सदुपयोग से ही है । दुष्कर्मों से यह मानव शरीर दुख का दाता बन जाता है तथा जो इन अवगुणों के ऊपर गुण कर लेता है उसे महाराजश्री बार बार शाबाशी ( धन्यवाद ) देते हैं । राम राम !
औगण ऊपर गुण करे, ता जन को शाबाश (24)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज इस शरीर के हानि और लाभ, इन दो पक्षों का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि हमारा यह शरीर अत्यंत महिमामय भी है और नारकीय अवगुणों से भरा हुआ पतनकारक भी है । इस देव दुर्लभ मानव शरीर की महिमा केवल इसके सदुपयोग से ही है । दुष्कर्मों से यह मानव शरीर दुख का दाता बन जाता है तथा जो इन अवगुणों के ऊपर गुण कर लेता है उसे महाराजश्री बार बार शाबाशी ( धन्यवाद ) देते हैं । राम राम !
किसको
नींदू किसको बंदू , दोनों पल्ला भारी ।
निरगुण तो है पिता हमारा, सरगुण है महतारी (25)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सगुण और निर्गुण में कोई अंतर नहीं है परन्तु लोग सगुण और निर्गुण को लेकर झगड़ा कर लेते हैं । महाराजश्री ने जनभावना का आदर करके ही सगुण ब्रह्म को माता तथा निर्गुण ब्रह्म को पिता के रूप में स्वीकार करके समन्वयवादी उदार दृष्टिकोण अपनाया है तथा बताया है कि दोनों एक ही है । अतः मैं किसकी निन्दा करूँ और किसकी वन्दना करूँ । मेरे लिए तो दोनों ही महान हैं । राम राम !
निरगुण तो है पिता हमारा, सरगुण है महतारी (25)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सगुण और निर्गुण में कोई अंतर नहीं है परन्तु लोग सगुण और निर्गुण को लेकर झगड़ा कर लेते हैं । महाराजश्री ने जनभावना का आदर करके ही सगुण ब्रह्म को माता तथा निर्गुण ब्रह्म को पिता के रूप में स्वीकार करके समन्वयवादी उदार दृष्टिकोण अपनाया है तथा बताया है कि दोनों एक ही है । अतः मैं किसकी निन्दा करूँ और किसकी वन्दना करूँ । मेरे लिए तो दोनों ही महान हैं । राम राम !
जन दरिया
के दोय पख, दोनूँ
उत्तम सार ।
निर्गुण मेरा शीश पर, सरगुण है आधार (26)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज ने इस कलियुग में केवल "राम" का ही महात्म्य बताया है । यद्यपि उन्होंने राम नाम के माध्यम से निर्गुण भक्ति को अधिक महत्व दिया है तथा जन भावना का आदर करते हुए सगुण भक्ति का भी गुणगान किया है । आचार्यश्री ने आगे कहा है कि सगुण परमात्मा उनके हृदय के आधार हैं तथा निर्गुण परमात्मा उनके शीश पर विराजमान हैं । इस प्रकार से दोनों ही पक्ष उत्तम हैं । राम राम !
निर्गुण मेरा शीश पर, सरगुण है आधार (26)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज ने इस कलियुग में केवल "राम" का ही महात्म्य बताया है । यद्यपि उन्होंने राम नाम के माध्यम से निर्गुण भक्ति को अधिक महत्व दिया है तथा जन भावना का आदर करते हुए सगुण भक्ति का भी गुणगान किया है । आचार्यश्री ने आगे कहा है कि सगुण परमात्मा उनके हृदय के आधार हैं तथा निर्गुण परमात्मा उनके शीश पर विराजमान हैं । इस प्रकार से दोनों ही पक्ष उत्तम हैं । राम राम !
दरिया
भरिया नाम सूँ , भरिया हिलोला लेह ।
जो कोई प्यासा नाम का , ताहि को भर देह (27)
आचार्यश्री दरिरावजी महाराज फरमाते हैं कि मेरा हृदय परमात्मा के नाम से दरिया के समान भरा हुआ है । यदि कोई नाम का प्यासा आता है तो उसे भी भर दिया जाता है । परंतु यदि कोई " दरिया " किनारे आते ही नहीं हैं तो वो कैसे तृप्त होंगे । महाराजश्री कहते हैं कि मेरा हृदय अब हिलोरे लेने लगा है अर्थात अन्दर का प्रेम उफनकर बाहर उछलने लगा है । राम राम !
जो कोई प्यासा नाम का , ताहि को भर देह (27)
आचार्यश्री दरिरावजी महाराज फरमाते हैं कि मेरा हृदय परमात्मा के नाम से दरिया के समान भरा हुआ है । यदि कोई नाम का प्यासा आता है तो उसे भी भर दिया जाता है । परंतु यदि कोई " दरिया " किनारे आते ही नहीं हैं तो वो कैसे तृप्त होंगे । महाराजश्री कहते हैं कि मेरा हृदय अब हिलोरे लेने लगा है अर्थात अन्दर का प्रेम उफनकर बाहर उछलने लगा है । राम राम !
दरसण आडा सहस पाप, परसण आडा लाख ।
सुमिरण आडा क्रोड़ है, जन दरिया की साख (28)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जब हम महापुरुषों के दर्शन हेतु प्रयत्न करते हैं तब हमारे दस हजार पाप सामने आते हैं तथा हमें दर्शन नहीं करने देते हैं । इसी प्रकार हम महापुरुषों की शरण में जाकर उन्हें स्वीकार कर लें, ऐसी श्रद्धा उत्पन्न होने में एक लाख पाप सामने आते हैं तथा उनके प्रति कई तरह की शंकाऐं उत्पन्न होने लगती हैं जिसके कारण उनके प्रति हृदय में श्रद्धा उत्पन्न नहीं कर पाते हैं । इसी प्रकार जब हम राम-राम करने बैठते हैं तो हमारे एक करोड़ पाप सामने आते हैं तथा हमें नाम जप नहीं करने देते हैं । ध्यान करने बैठते हैं तो नींद आती है या बिना मतलब की बातें याद आती हैं । राम राम !
सुमिरण आडा क्रोड़ है, जन दरिया की साख (28)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जब हम महापुरुषों के दर्शन हेतु प्रयत्न करते हैं तब हमारे दस हजार पाप सामने आते हैं तथा हमें दर्शन नहीं करने देते हैं । इसी प्रकार हम महापुरुषों की शरण में जाकर उन्हें स्वीकार कर लें, ऐसी श्रद्धा उत्पन्न होने में एक लाख पाप सामने आते हैं तथा उनके प्रति कई तरह की शंकाऐं उत्पन्न होने लगती हैं जिसके कारण उनके प्रति हृदय में श्रद्धा उत्पन्न नहीं कर पाते हैं । इसी प्रकार जब हम राम-राम करने बैठते हैं तो हमारे एक करोड़ पाप सामने आते हैं तथा हमें नाम जप नहीं करने देते हैं । ध्यान करने बैठते हैं तो नींद आती है या बिना मतलब की बातें याद आती हैं । राम राम !
दरिया
इन्द्र पधारिया, कर धरती
सूँ हेत ।
सब जीवां आनन्द भया , साँडे दर मुख रेत (29)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि साँडा नामक जानवर को वर्षा अच्छी नहीं लगती है । वर्षा होने पर वह गड्ढे में घुसकर ऊपर से रेत डाल लेता है । जबकि अन्य जीव वर्षा होने पर आनन्द मनाते हैं क्योंकि इन्द्र धरती से हेत करता है । वर्षा होने पर सब जीवों की रक्षा होती है । इसी प्रकार साँडे जैसे लोग वर्षा को भी अच्छा नहीं मानते हैं तथा सतपुरूषों की कृपा को भी अच्छा नहीं मानते हैं । राम राम !
सब जीवां आनन्द भया , साँडे दर मुख रेत (29)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि साँडा नामक जानवर को वर्षा अच्छी नहीं लगती है । वर्षा होने पर वह गड्ढे में घुसकर ऊपर से रेत डाल लेता है । जबकि अन्य जीव वर्षा होने पर आनन्द मनाते हैं क्योंकि इन्द्र धरती से हेत करता है । वर्षा होने पर सब जीवों की रक्षा होती है । इसी प्रकार साँडे जैसे लोग वर्षा को भी अच्छा नहीं मानते हैं तथा सतपुरूषों की कृपा को भी अच्छा नहीं मानते हैं । राम राम !
दरिया
भरिया रहत हैं, भगत मुगत का माट
।
साधु पीवे सुरत सूँ, देखे औघट घाट (30)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जिस प्रकार सागर पानी से भरा हुआ रहता है, उसी प्रकार भगवद्भक्त मुक्ति और भक्ति रूपी जल से भरे रहते हैं तथा अपनी सुरति के द्वारा वे इस राम रूपी सागर का उपयोग करते रहते हैं । परमात्मा को पीने के लिए एक सुरति विशेष मुख की आवश्यकता होती है । राम राम !
साधु पीवे सुरत सूँ, देखे औघट घाट (30)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जिस प्रकार सागर पानी से भरा हुआ रहता है, उसी प्रकार भगवद्भक्त मुक्ति और भक्ति रूपी जल से भरे रहते हैं तथा अपनी सुरति के द्वारा वे इस राम रूपी सागर का उपयोग करते रहते हैं । परमात्मा को पीने के लिए एक सुरति विशेष मुख की आवश्यकता होती है । राम राम !
पंचा
मांहि परण के, लावे
गह कर हाथ
।
दरिया खेलत और सूँ , सुख पावे नहीं नाथ (31)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जब लड़की का विवाह पांच व्यक्तियों के सामने भारतीय संस्कृति एवं शास्त्र संविधान का पालन करते हुए किया जाता है परंतु जब वही स्त्री अपने पति को छोड़कर परपुरूष से प्रेम करती है तो नाथ अर्थात उसका पति सुख नहीं पाता है । इसी प्रकार यह जीव परमात्मा का अंश होते हुए परमात्मा को छोड़कर दूसरों के साथ संबंध जोड़ता है तो वह व्यभिचारिणी भक्ति कहलाती है जिससे जीव का कल्याण नहीं होता है । भक्ति तो अनन्य होनी चाहिए । राम राम !
दरिया खेलत और सूँ , सुख पावे नहीं नाथ (31)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जब लड़की का विवाह पांच व्यक्तियों के सामने भारतीय संस्कृति एवं शास्त्र संविधान का पालन करते हुए किया जाता है परंतु जब वही स्त्री अपने पति को छोड़कर परपुरूष से प्रेम करती है तो नाथ अर्थात उसका पति सुख नहीं पाता है । इसी प्रकार यह जीव परमात्मा का अंश होते हुए परमात्मा को छोड़कर दूसरों के साथ संबंध जोड़ता है तो वह व्यभिचारिणी भक्ति कहलाती है जिससे जीव का कल्याण नहीं होता है । भक्ति तो अनन्य होनी चाहिए । राम राम !
पति
कू भूला ना बणै,
अन्त होगी खवार ।
चौरासी के चौहटे , दरिया पड़सी मार (32)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पति अर्थात परमात्मा को भूलने से बात नहीं बनेगी । परमात्मा सबकी रक्षा करते हैं इसलिए वे प्राणी मात्र के पति हुए । यदि कोई परमात्मा को भूलता है तो अंत में उसकी कोई रक्षा नहीं कर पाएगा एवं जीव जन्म-मरण के चक्कर में आकर अत्यधिक कष्टों का सामना करता ही रहेगा । राम राम !
चौरासी के चौहटे , दरिया पड़सी मार (32)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पति अर्थात परमात्मा को भूलने से बात नहीं बनेगी । परमात्मा सबकी रक्षा करते हैं इसलिए वे प्राणी मात्र के पति हुए । यदि कोई परमात्मा को भूलता है तो अंत में उसकी कोई रक्षा नहीं कर पाएगा एवं जीव जन्म-मरण के चक्कर में आकर अत्यधिक कष्टों का सामना करता ही रहेगा । राम राम !
दरिया
पतिव्रत
राम सूँ, दूजा सब व्यभिचार
।
दूजा देखे बीर सम, गड़णहार भरतार (33)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पतिव्रता स्त्री अपने पति को ही सर्वोपरि मानती है परन्तु घर के अन्य सदस्यों के साथ भी गलत व्यवहार नहीं करती है , परन्तु जो प्रेम पति के साथ में होता है , वह किसी अन्य के साथ नहीं हो सकता । पतिव्रता स्त्री पति को छोड़कर अन्य सभी पुरूषों को भाई के समान देखती है तथा बड़े हैं तो पितातुल्य समझती है । अतः राम के प्रति हमारा प्रेम भी पतिव्रता जैसा ही होना चाहिए । राम राम !
दूजा देखे बीर सम, गड़णहार भरतार (33)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पतिव्रता स्त्री अपने पति को ही सर्वोपरि मानती है परन्तु घर के अन्य सदस्यों के साथ भी गलत व्यवहार नहीं करती है , परन्तु जो प्रेम पति के साथ में होता है , वह किसी अन्य के साथ नहीं हो सकता । पतिव्रता स्त्री पति को छोड़कर अन्य सभी पुरूषों को भाई के समान देखती है तथा बड़े हैं तो पितातुल्य समझती है । अतः राम के प्रति हमारा प्रेम भी पतिव्रता जैसा ही होना चाहिए । राम राम !
जतन
जतन कर जोड़
ही, दरिया हित चित लाय ।
माया संग न चाल ही, जावे नर छिटकाय (34)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि बहुत प्रयास करके जिस माया का संग्रह किया तथा जिसमें अपना हित मानकर चित्त को लगाये रखा , वही माया उसके साथ नहीं गई तथा मनुष्य उसे छिटकाकर अकेला ही चला गया । अतः माया को नही पकड़ कर मायापति परमपिता परमात्मा का ध्यान करना चाहिए । राम राम !
माया संग न चाल ही, जावे नर छिटकाय (34)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि बहुत प्रयास करके जिस माया का संग्रह किया तथा जिसमें अपना हित मानकर चित्त को लगाये रखा , वही माया उसके साथ नहीं गई तथा मनुष्य उसे छिटकाकर अकेला ही चला गया । अतः माया को नही पकड़ कर मायापति परमपिता परमात्मा का ध्यान करना चाहिए । राम राम !
सूई डोरा साह का , सुरग
सिधाया नांह ।
जन दरिया माया यहू , रही यहँ की यांह (35)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि एक सेठ ने धन इस भाव से संग्रह किया कि यह सारा धन मृत्यु के उपरांत उसके साथ चलेगा । परंतु जब सेठ शरीर छोड़ने लगा तो उसका सुई और डोरा (धागा ) भी साथ में नहीं चला । महाराजश्री कहते हैं कि सांसारिक वस्तुऐं बुरी नहीं है परन्तु जब मानव उनको अपनी मानकर आसक्ति पूर्ण भोग बुद्धि से भोगता है तब वे बंधन का कारण बन जाती है । अतः आसक्ति युक्त जीवन ही बंधन है । राम राम !
जन दरिया माया यहू , रही यहँ की यांह (35)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि एक सेठ ने धन इस भाव से संग्रह किया कि यह सारा धन मृत्यु के उपरांत उसके साथ चलेगा । परंतु जब सेठ शरीर छोड़ने लगा तो उसका सुई और डोरा (धागा ) भी साथ में नहीं चला । महाराजश्री कहते हैं कि सांसारिक वस्तुऐं बुरी नहीं है परन्तु जब मानव उनको अपनी मानकर आसक्ति पूर्ण भोग बुद्धि से भोगता है तब वे बंधन का कारण बन जाती है । अतः आसक्ति युक्त जीवन ही बंधन है । राम राम !
मोटी माया सब तजे,
झिणी तजी न जाय
।
दरिया झिणी सो तजे, जो रहे राम लिव लाय (36)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मोटी माया अर्थात स्त्री और धन का तो त्याग कर सकते हैं परन्तु झिणी माया अर्थात अहंकार का त्याग करना कोई साधारण बात नहीं है । अहंकार का त्याग तो कोई भाग्यशाली ही कर सकता है । जिसके ऊपर भगवान की कृपा होती है, वही इससे छुटकारा प्राप्त कर सकता है । राम राम !
दरिया झिणी सो तजे, जो रहे राम लिव लाय (36)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मोटी माया अर्थात स्त्री और धन का तो त्याग कर सकते हैं परन्तु झिणी माया अर्थात अहंकार का त्याग करना कोई साधारण बात नहीं है । अहंकार का त्याग तो कोई भाग्यशाली ही कर सकता है । जिसके ऊपर भगवान की कृपा होती है, वही इससे छुटकारा प्राप्त कर सकता है । राम राम !
ररंकार
मुख उचरे, पाले शील संतोष ।
दरिया जिनको धिन्न है, सदा रहे निर्दोष (37)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि भगवद्नाम के साथ-ही-साथ शील और संतोष रखना भी अति आवश्यक है । इस प्रकार से भगवान के नाम रूपी जहाज से ही संसार-सागर को पार करके मनुष्य जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो सकता है , इसीलिए श्री दरियावजी महाप्रभु ने सभी ग्रन्थों का यही निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि अहर्निश राम नाम जाप करने में ही जीवन की सार्थकता है । राम राम।
दरिया जिनको धिन्न है, सदा रहे निर्दोष (37)
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि भगवद्नाम के साथ-ही-साथ शील और संतोष रखना भी अति आवश्यक है । इस प्रकार से भगवान के नाम रूपी जहाज से ही संसार-सागर को पार करके मनुष्य जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो सकता है , इसीलिए श्री दरियावजी महाप्रभु ने सभी ग्रन्थों का यही निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि अहर्निश राम नाम जाप करने में ही जीवन की सार्थकता है । राम राम।
सकल ग्रन्थ का अर्थ है, सकल बात की बात ।
दरिया सुमिरन "राम" का, कर लीजै दिन रात ।।
इति श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का ' मिश्रित साखी का अंग ' संपूर्ण हुआ । इसके साथ ही दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी संपूर्ण हुई । राम जी राम । सभी संतों के चरणों में दण्डवत प्रणाम । राम राम
आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com .
डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241
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