Wednesday 29 November 2017

भजन :- संतो क्या गृहस्थी क्या त्यागी

⚛ *"संतो क्या गृहस्थी क्या त्यागी। जहां देखूं तेहि बाहर भीतर, घट घट माया लागी!!",,,,*
➡ दाता दरियासा फरमाते है कि, संतो मैंने सारा जगत देख लिया लेकिन जहाँ देखता हूँ वहां गृहस्थी हो या त्यागी सबके पीछे किसीके बाहर और किसीके घट भीतर माया लगी हुई है।
⚛ *माटी की भीत पवन का थंबा गुण औगुण से छाया। पांच तत्त आकार मिलकर, सहजां गृह बनाया!!१!!*
➡ सभी के माटी रूपी तन( शरीर) में पवन (स्वास) रूपी खंबा एक आधार है , जिसके गुण अवगुण रूपी छाया है , और पांच तत्व(शब्द,स्पर्श,रूप,रस,गंध) से गृह (घर) बना हुआ है।
⚛ *मन भयो पिता मनसा भई माई, दुख सुख दोनों भाई। आशा तृष्णा बहिनें मिलकर, गृह की सौंज बनाई!!२!!*
➡ इस पांच तत्व के शरीर के मन रूपी पिता और मनसा(इच्छा) रूपी माता है , सुख और दुःख रूपी दोनों भाई है ,आशा और तृष्णा रुपी दोनों बहनों ने मिलकर इस घर को सजाया है ।
⚛ *मोह भयो पुरूष कुबुध भई धरनी, पांचों लड़का जाया। प्रकृति अनंत कुटंबी मिलकर, कलहल बहुत उपाया!!३!!*
➡ इस माया रूपी घट(घर) मे मोह रूपी पुरुष और कुबुद्धि रूपी स्त्री के पांच पुत्र है तथा प्रुकृति रूपी कुटुंबिय के अनेक प्रकार के कोलाहल से यह घर भरा हुआ है ।
⚛लड़कों के संग लड़की जाई, ता का नाम अधीरी। वन में बैठी घर घर डोलै, स्वारथ संग खपीरी!!४!!
➡ इस मोह और कुबुद्धि के लड़कों के संग जिसका ब्याह हुआ है उसका नाम अधिरी है उनका निवास तो वन में है लेकिन वह हरएक के घर मे जाकर स्वार्थ रूपी झगड़ा लगाती है ।
⚛पाप पुन्न दोउ पास पडो़सी, अनन्त बासना नाती। राम द्वेष का बंधन लागा, गृह बना उतपाती!!५!!
➡ इस घर के पाप और पुण्य दोनों पड़ोसी है ,उन पड़ोसी के अनन्त नाती-पोती है , ये पडोसी राग-द्वेष रूपी दोष बंधन(लांछन) लगाकर घर में सदा उत्पात मचाते है ।
⚛कोई गृह मांड गृह में बैठा, वैरागी बन बासा। जन दरिया इक राम भजन बिन, घट घट में घर बासा!!६!!
➡ ऐसे माया रूपी शरीर को लेकर कोई घर परिवार के साथ(गृहस्थी) रहता है तो कोई वैरागी बनकर वन में बैठा है लेकिन दाता *दरिया* सा कहते है कि ,एक *राम* भजन के शिवाय सभी घट में माया का ही निवास है ।
*राम राम सा* 🙏🙏

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