44.मानव मात्र को ईश्वर का ही स्वरूप समझकर उसकी सेवा करें:
✍जिन लोगों के कर्म ईश्वर अर्पण बुद्धि से होते है, जिनका सारा समय ईश्वर व ईश चर्चाओं में व्यतीत होता है, ऐसे लोग गृहस्थाश्रम में रहें तो भी घर उनके बंधन का कारण नही होते हैं । गृहस्थ में रहते हुए भी अपने जीवन को ईश्वरार्पित करके मानव मात्र को ईश्वर का ही स्वरूप समझकर शुद्ध बुद्धि से पद पद पर उनकी सेवा करनी चाहिये।
यही ईश्वर की सच्ची पूजा है।👌
*जात पांत कारण नही कोई,सब ही का हरि एको होई।ऊंच नीच नही कोई,सब ही नर प्रभु संतति होई।।*
🌸" *सागर के बिखरे मोती "🌸*
✍रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी महाराज"
No comments:
Post a Comment