Sunday 19 November 2017

नाम महातम का अंग

नाम महातम का अंग

अथ श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का " नाम महातम का अंग " प्रारंभ । राम राम

सोहि कंत कबीर का, दादू का महाराज ।
सब सन्तन का बालमा, दरिया का सिरताज (1) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो राम संत कबीर का पति था, जिस राम का भजन दादू ने किया था तथा जो राम सभी संतों का बालमा है, वही राम मेरा भी पूर्ण पति है एवं वही प्यारा राम मेरे सिर का ताज है । अतः उस राम के बिना सब कुछ निरर्थक है । राम राम!

दरिया तीनों लोक में, ढूँढा सब ही धाम ।
तीर्थ व्रत विधी करत बहु, बिना राम किस काम  (2)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि तीनों लोकों तथा सभी धामों में घूमने के पश्चात केवल यही निष्कर्ष निकला कि ये सभी धाम तथा तीर्थ व्यर्थ हैं । केवल निर्गुण निराकार सत्यरूप राम के नाम का जाप करने में ही जीवन की सार्थकता है । राम राम  !

तीन लोक चौदह भवन, दरिया देख्या जोय ।
एक राम सरीखा राम है, इसा न दूजा कोय (3) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि तीन लोक चौदह भवन का अवलोकन करने के पश्चात मैंने देखा कि राम ही सर्वशक्तिमान सर्वज्ञ तथा समर्थ है । जो होने वाला कार्य है, उसे परमात्मा रोक देता है तथा जो नहीं होने वाला कार्य है , उसको करके दिखा देता है । अतः ऐसी भावना उदय होगी, तभी परमात्मा से प्रेम होगा । उस परमात्मा के समान संसार में कोई है ही नहीं । अतः राम के समान तो राम है । राम राम  !

तीन लोक चौदह भुवन, ढूँढा सब ही धाम ।
दरिया देख्या निरत कर, एक राम सरीखा राम (4)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज कण-कण में ब्रह्म के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं । उनके विचारानुसार समस्त सृष्टि का  रचियता सर्वशक्तिमान, सर्वान्तर्यामी कण-कण में व्याप्त निर्गुण राम ही है । वही तीन लोक चौदह भुवनों को प्रकाशित करने वाला है । राम राम  !

दरिया परचे नाम के, दूजा दिया न जाय ।
या पर तन मन वार के, राखीजे उर माय (5) 

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि भगवत नाम के सामने सभी वस्तुएं नगण्य हैं । संसार में ऐसा कोई उदाहरण है ही नहीं, जिसे देकर हम राम नाम की महिमा को उजागर कर सकें । अतः इस नाम को हृदय में स्थायित्व देने हेतु एक ही उपाय है कि अपना तन-मन परमात्मा को समर्पित कर दो, इसे ही शरणागति कहते हैं । राम राम  !

कंचन भाजन विष भरा, सो मेरे किस काम ।
‎दरिया बासण सो भला, जामें अमृत राम (6)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि सोने का घड़ा है परन्तु अंदर जहर भरा हुआ है तो वह घड़ा कोई काम का नहीं है कयोंकि यदि उसका उपयोग करेंगे तो जहर से हमारी मृत्यु हो जाएगी । इसके विपरीत मिट्टी के घड़े में भी अमृत है तो हम उससे प्यार करेंगे । राम राम  !

जो काया कंचन भई, रत्नों जड़िया चाम ।
‎जन दरिया किस काम की, जां मुख नांहि राम (7)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि यदि किसी का शरीर सोने का हो गया है और उसके रोम रोम में रत्न जड़े हुए हैं  परन्तु यदि उसके मुख में राम का नाम नहीं है तो वह किसी काम का नहीं है । क्योंकि परमात्मा तो प्रेम के भूखे हैं । राम राम  !

राम सहित मध्यम भला, गलत कोढ़ होय अंग ।
‎उत्तम कुल कुँ त्याग के, रहिये उनके संग (8)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि यदि कोई मध्यम जाति का व्यक्ति है तथा उसके शरीर में कुष्ठ रोग है परन्तु यदि वह राम का नाम लेता है तो अच्छा है । इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति उत्तम कुल का है तथा शरीर से इत्र की सुगंधि आ रही है परंतु हृदय में राम नाम नहीं है तो वह उत्तम नहीं है । अतः ऐसे उत्तम कुल के व्यक्ति का त्याग  करके उस मध्यम कुल के व्यक्ति का संग करना चाहिए । राम राम  !

 कस्तूरी कुँडे भरी, मेली उंडे ठांव ।
‎दरिया छानी क्यों रहे, साख भरे सब गाँव  (9)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि कस्तूरी किसी बर्तन में ढककर  बहुत ही नीचे छिपाकर रख दिया जाए तो भी सुगंध के कारण सारा गाँव साक्षी देने लगता है कि यहाँ कस्तूरी छिपाई हुई रखी है । इसी प्रकार महापुरुष एवं भगवद्भक्त भी छिपे हुए नहीं रह सकते क्योंकि उन्हीं के द्वारा भगवान की भक्ति प्रकट की जाती है । राम राम  !

कूड़ो आलो चाम को, भीतर भरया कपूर ।
‎दरिया बर्तन क्या करे, वस्तु दिखावे नूर  (10)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि मरे हुए जानवर की चमड़ी से बने हुए कूड़े में कपूर भरा हुआ है, परन्तु चमड़े से बना हुआ होने पर भी कपूर तो अपनी सुगंध चारों तरफ फैला देता है । चर्म निर्मित इस शरीर में सुन्न समाधि अपना प्रभाव सबको दिखाकर ही रहती है । राम राम  !

कूड़ो आलो चाम को, जाँ में उत्तम काह ।
‎दरिया संगत घीव की, सिर ले चाल्या साह (11) 

‎आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि ऊँट की खाल के कूड़े के अंदर  घी भर दिया जाता है तो बड़े बड़े सेठ भी उसे सिर पर रखते हैं । कूड़ा तो गंदे चमड़े का बना होता है तथापि सेठ उसे सिर पर रखकर बेचने के लिए जाते हैं क्योंकि उसने घी की संगतकी है । इसी प्रकार जो व्यक्ति परमात्मा के नाम का संग कर लेता है , उसका जीवन पूजनीय हो जाता है । राम राम  !

जन दरिया पुन्य पाप का, थोथे तीरां जूंझ ।
‎करे दिखावा ओर को, आप समावे गूंझ (12)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पाप और पुण्य दोनों ही एक जैसे ही हैं । जिस प्रकार तीर की नोक में लोहे का सिरा यदि लगा हुआ नहीं है तो वह केवल बांस का थोथा तीर ही कहलाता है । ऐसा तीर लक्ष्य भेदन नहीं कर सकता । इसी प्रकार लोग पुण्य भी करते हैं और लोगों के सामने दिखावा भी करते हैं जो थोथे तीरों से जूंझने के समान है । राम राम  !

पाप पुन्य सुख दुख की, अरट भरत है साख ।
‎जन दरिया रह राम सूँ, या सब ही हो राख (13)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि पाप, पुन्य, सुख और दुःख अरट में लगी हुई डालियों के समान हैं, जिस प्रकार अरट की डोलियां पानी से भर-भर कर खाली होती जाती हैं इसी प्रकार ये पाप पुन्य और सुख-दुख के दिन भी बदलते रहते हैं । परंतु जो व्यक्ति सच्चाई से राम से स्नेह करता है राम ही उसका रक्षक होता है । राम राम  !

जीव विलम्ब्या जीव से, कारज सरे न कोय ।
‎जन दरिया सतगुरु मिले, ब्रह्म विलंबन होय (14)

‎आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जीव तो जीव से दिन-रात मिलते ही रहते हैं परंतु इससे कार्य की सिद्धी नहीं होती किन्तु जब जीव सतगुरू से मिल जाता है तो उसे राम का साक्षात्कार हो जाता है तथा समाधान प्राप्त हो जाता है । राम राम  !

जीव विलंबन झूठ है, मिल मिल बिछड़ जाय ।
‎ब्रह्म विलंबन साच है, रह उर मांय समाय (15) 

‎आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जीव का जो आपस में मिलना है, वह झूठ है क्योंकि वे मिल-मिलकर पुनः बिछुड़ जाते हैं । परंतु राम गुरुदेव का मिलना सत्य है, जो कि मिलने  के  पश्चात सदा ही हृदय में  स्थाई रहता है । राम राम  !

सकल आदि सबके परे, है अविनाशी राम ।
‎उपजे वरते विनस जाय, सो माया रूपी काम (16)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो सबसे परे अनादि परमात्मा हैं, वे कभी जन्म-मरण में नहीं आते हैं । इसके विपरीत जो उत्पन्न होता है, वृद्धि को प्राप्त होता है और तत्पश्चात जीर्ण होकर विनाश को प्राप्त हो जाता है, वह माया रूपी काम है । राम राम  !

दरिया दस दरवाज में, ता बिच पढत निमाज।
‎ 'र' रो 'म' मो इक रटत है, और सकल बैकाज (17)
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 आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि यह शरीर दस दरवाजे का एक मंदिर है । इस मंदिर में मैं सदा ही नमाज पढता रहता हूँ अर्थात रकार और मकार की रटन करता रहता हूँ । राम राम!

जन दरिया कण नीपजे, सिरो पान गया सूख ।
‎हरियाली मिट कन भया, भीतर भागी भूख (18) 

‎आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि हरियाली मिट गई तथा पत्ता सूख गया । जो सिट्टा हरा भरा था उसमें कण आ गये । कच्चे बीज पककर कड़े हो गये जिससे भीतर की भूख समाप्त हो गई । इसी प्रकार भगवद्नाम जपने से हमारे अंदर व्याप्त मान-बड़ाई की भूख, सांसारिक सुखों और भोगों की भूख मिट जाती है । राम राम  !

रवि शशि चाले पूर्व दिश, पश्चिम कहे सब लोय ।
‎दरिया या गत साध की, लखे सो बिरला कोय (19) 
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दुनिया कहती है कि सूर्य और चंद्रमा पश्चिम की ओर जाते हैं परंतु आचार्यश्री दरियावजी महाराज कहते हैं कि नहीं! ये दोनों पूर्व की ओर ही जाते हैं । सूर्य अपने उद्गम स्थान अर्थात पूर्व से बिछुड़ कर तथा पश्चिम को माध्यम बनाकर पुनः पूर्व में ही जाता है । इसी प्रकार साधकों की  गति भी उल्टी होती है । महापुरुषों के जीवन को कोई बिरले ही पहचान सकते हैं । राम राम  !

दरिया सुमिरे राम को, पारख कीजे जाय ।
‎श्रवण ढ़ल नेतर ढ़ले, देह रसना ढ़ल जाय (20)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि राम नाम जाप करने से साधक के शरीर का प्रत्येक अंग ढ़ल जाता है अर्थात परिवर्तन हो जाता है । जिन कानों से दुनिया की राग द्वेष की बातें सुनते थे, उन्ही कानों से आज ईश्वर की सुधामयी कथाओं का श्रवण करते हैं । जो नेत्र सांसारिक अश्लील दृश्य देखते थे,  वही नेत्र आज राम गुरूदेव का दर्शन करके स्वयं को धन्य मान रहे हैं । राम राम  !

दरिया सतगुरु शब्द ले, करे राम संयोग ।
‎ज्ञान खुले अरू बल बढ़े, देही रहे निरोग (21)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जब शिष्य सतगुरू से शब्द लेकर राम-राम  (ध्यान ) करता है, तब कुछ समय पश्चात प्रभु से मधुर मिलन हो जाता है । अतः ऐसी स्थिति में साधक का ज्ञान खुलता है, आत्मबल बढ़ता है तथा देही निरोग हो जाती है । राम राम  !

दरिया प्रेमी आत्मा, करे भजन को गाड़ ।
‎आवे उबासी चौगुनी, भाजन लागे हाड़ (22)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जब भी कोई साधक परमात्मा का भजन करता है तो उसे उबासी आती है क्योंकि उसके अंदर का पाप बाहर निकलता है जिससे बार-बार उसका मुँह खुलता है तथा हड्डियाँ भी दुखती है । यदि नींद आने लगती है तो और भी अधिक जोर से भजन में लग जाना चाहिए । राम राम  !

बड़ के बड़ लागे नहीं, बड़ के लागे बीज ।
‎दरिया नाना होय कर,  राम नाम गह चीज  (23)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि बड़ अर्थात वटवृक्ष  के ऊपर वटवृक्ष नहीं लगता है । वटवृक्ष के ऊपर तो छोटे-छोटे बीज लगते हैं तथा इसी बीज में इतना विशाल वटवृक्ष समाया हुआ होता है । इसी प्रकार राम का नाम छोटा सा है किन्तु इसमें सारा संसार समाया हुआ है । अतः यदि हमें भजन करना है तो छोटा बन कर रहना होगा क्योंकि बड़ा होते ही व्यक्ति में अभिमान आ जाता है । राम राम  !

रसना अन्तर भाइये, लोक लाज सब खोय ।
‎"दरिया " पानी प्रेम का, सींच सहज बड़ होय (24) 
आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि अंतर में हमारी रसना निरंतर जाप करती रहनी चाहिए । यदि कुल की समाज की लाज भगवद्भजन में व्यवधान डालती है तो उस लाज का भी त्याग कर देना चाहिए परन्तु भगवद् नाम जाप का कभी त्याग नहीं करना चाहिए । इस प्रकार से यदि राम नाम रूपी बीज में प्रेम रूपी पानी का सींचन किया जाता है तो राम नाम बहुत बड़ा वटवृक्ष बन जाता है । राम राम  !

दरिया तीनों लोक में, देखा दोय विधान ।
‎गुजरानी गुजरान में, गलतानी गलतान (25)                    

गुजरानी गलतान की, दरिया यह पहचान ।
‎आन रत्ता गुजरान सब, कोई राम रत्ता गलतान  (26)    

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि हमने इस संसार में दो ही प्रकार के लोग देखें है । एक तो गुजरानी होते हैं, जो प्रतिदिन दो-चार रूपये कमाकर केवल पेट भरते हैं । दूसरे गलतानी होते हैं जो प्रतिदिन लाखों रुपये कमाकर  मालामाल रहते हैं । इसी प्रकार जो थोड़ा राम-राम करते हैं वे गुजरानी हैं तथा जो अहर्निश नाम जाप करते रहते हैं, वे गलतानी हैं । अतः ऐसे गलतानी का शीघ्र कल्याण हो जाता है । राम राम  !

पाय विसारे राम को, भिष्ट होत है सोय ।
‎रवि दीपक दोनों बिना, अंधकार ही होय (27)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो व्यक्ति सतगुरू से शब्द लेकर कुछ दिन तो नामजाप करता है परन्तु बाद में छोड़ देता है उसका जीवन भ्रष्ट हो जाता है । जिस प्रकार सूर्य भी नहीं है और दीपक भी नहीं है तो अंधकार ही होगा । उसी प्रकार सतगुरू की कृपा भी समाप्त हो जाती है तथा राम रूपी सूर्य भी अस्त हो जाता है तो जीवन अंधकारमय हो जाता है । राम राम!

पाय विसारे राम को, बैठा सब ही खोय ।
' दरिया ' पड़े आकाश चढ़, राखण हार न कोय (28)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो व्यक्ति राम को याद करके फिर राम को भूल जाता है तो उसकी वैसी ही दशा होती है, जैसे कोई आकाश पर ऊँचा चढ़कर अचानक नीचे गिरता है तो वह चकनाचूर हो जाता है, फिर उसकी जिंदगी बच नहीं सकती । राम राम  !

पाय बिसारे राम को, महा अपराधी सोय ।
‎' दरिया ' तीनों लोक में, ईस्यो न दूजो कोय (29)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि रामजी को भूलना, सबसे बड़ा पाप और अपराध है । जिस ईश्वर ने तुम्हे यह शरीर दिया है, तुम्हारे लिए सब व्यवस्था की है, उसे ही तुम भूल रहे हो तो इससे बड़ा अपराध क्या हो सकता है ? राम राम  !

पाय बिसारे राम को, तीन लोक तल सोय ।
‎जन दरिया अघ जीव का, दिन दिन दूणा होय (30)

आचार्यश्री दरियावजी महाराज फरमाते हैं कि जो व्यक्ति परमात्मा को भूल जाता है तो तीन लोकों में भी उसके जैसा अपराधी नहीं मिलेगा । इस प्रकार से वह भगवद् भजन करना तो छोड़ देता है परन्तु उसके पाप की गति तो स्वभाविक ही गतिमान होती है अतः पाप में तो अभिवृद्धि होती ही रहती है । ऐसे व्यक्ति के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष भी समाप्त हो जाते हैं । राम राम  !

दरिया निर्गुण नाम है, सगुण सतगुरु देव ।
‎ये सुमरावे राम को, वो है अलख अभेव (31)
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आचार्यश्री दरियावजी महाराज ने भगवान के नाम को निर्गुण के रूप में तथा सतगुरु को सगुण के रूप में माना है । सतगुरू तो राम नाम का सुमिरन करवाते हैं तथा परमात्मा अलख अभेव है । अतः ये दोनों ही पक्ष आध्यात्मिक जीवन के लिए कारगर हैं । इन दोनों से प्रेम होगा तभी जीव का कल्याण संभव है । राम राम  !

इति श्री दरियावजी महाराज की दिव्य वाणीजी का नाम महातम का अंग संपूर्ण हुआ । राम जी राम ।

आदि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज एंव सदगुरुदेव आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज की प्रेरणा से श्री दरियाव जी महाराज की दिव्य वाणी को जन जन तक पहुंचाने के लिए वाणी जी को यहाँ डिजिटल उपकरणों पर लिख रहे है। लिखने में कुछ त्रुटि हुई हो क्षमा करे। कुछ सुधार की आवश्यकता हो तो ईमेल करे dariyavji@gmail.com .

डिजिटल रामस्नेही टीम को धन्येवाद।
दासानुदास
9042322241

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