Tuesday 14 November 2017

55. महापुरूषो का सत्संग राम बाण ओषधि है


55. महापुरूषो का सत्संग राम बाण ओषधि है :
सनातम काल से विद्यमान अनन्त भाव, कर्म,परम प्रभु के पवित्र नाम के बिना विगलित नही हो सकते है । शास्त्र विपरीत भावकर्म को बदलने के लिये महापुरूषो का सत्संग राम बाण औषधि है । राम नाम का अभिमान साधक जीव , स्वयं अभिमान रहित होकर जब तक नाम स्वरूप नही हो जाता तब तक संसार के राग व द्वेष भाव नही छूट सकेंगे तथा व्यक्ति वास्तविक सुख भी नही पा सकेगा । सांसारिक जीव मल से मल (कर्म से कर्म) को धोना चाहता है जबकि सन्त नैषकर्मीय सिद्धान्त को मुक्ति जे प्रति परम साधना स्वीकर करते है । जब व्यक्ति नाम (राम )का स्मरण करता है तो जीव तदरूप जीव ही नाम (राम) बन जाता है ।
दरिया छुरी कसाव की पारस परसे आय । 
लोह पलट कंचन भया ,आमिष भखा न जाय।।
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री ",,,,,कर्त,,,,"सागर के बिखरे मोती"
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