Tuesday 14 November 2017

48. निष्काम कर्म ही सुख प्रदाता है

48. निष्काम कर्म ही सुख प्रदाता है

सभी प्राणियों से मनुष्य जन्म ही श्रेष्ठ है क्योंकि मनुष्य योनि ज्ञान व विज्ञान के मूल स्रोत है । जो इस दुर्लभ मानव शरीर को प्राप्त करके भी अपने आत्मस्वरूप परमात्मा को नही जान लेते उसे अन्य किसी योनि में भी शांति नही मिल सकती । सांसारिक सुखों के लिये जो चेष्टायें की जाती है , वे सुख के बजाय दुख देती है । सभी स्त्री पुरुष सुख प्राप्ति के लिये तथा दुखो से मुक्ति पाने के लिये कर्म करते है ,लेकिन न तो उनके दुख दूर होते है और नही उन्हें सुख मिलता है । सुखों की प्राप्ति तभी सम्भव है जब प्राणी मात्र को भगवत्स्वरूप मान कर निष्काम सेवा भाव से कर्म करें ।

*दरिया सुमिरे राम को कोट कर्म की हान। जम ओर काल का भय मिटे ना काहू की कान।।*

रेंन पीठाधीश्वर " श्री हरिनारायण जी शास्त्री"

🌸सागर के बिखरे मोती

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