Friday 6 July 2018

59. व्यवहार शुद्ध किये बिना धर्म मे शुद्धता नही:

59. व्यवहार शुद्ध किये बिना धर्म मे शुद्धता नही:

यदि व्यक्ति का समाज के प्रति व्यवहार शुद्ध नही है तो धर्म मे शुद्धता कैसे आएगी । इसलिए आवश्यक है कि धर्म पालन के लिए पहले शुद्ध सद व्यवहार की भावना जीवन मे अपनाये। आज अपने आप को धार्मिक कहलाने वाला व्यक्ति अधिक अधार्मिक बनता जा रहा है । जबकि नास्तिक व्यक्ति के जीवन मे धार्मिकता का सद्व्यवहार प्रगट हो रहा है । केवल उपासना व पुजा करना ही धर्म नही है । पूजा व उपासना चाहे कितनी ही करते हो किन्तु व्यवहार में आपने धर्म की महत्ता को स्वीकार नही किया तो उपासना व पूजा का महत्व नही रहेगा । व्यक्ति को वास्तव में धार्मिक बनना है तो उसको अपनी आदतों में बदलाव लाना होगा । और व्यवहारिक ज्ञान को प्राप्त करना होगा ।
*भरा नही जो भावों से , बहती जसमे स्नहे धार नही । वह हृदय नही पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नही।।*

रेण पीठाधीश्वर  "श्री हरिनारायण जी शास्त्री" कर्त "सागर के बिखरे मोती"

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