Friday 6 July 2018

60. दुखी आत्मा को सुख पहुँचाना ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है

60. दुखी आत्मा को सुख पहुँचाना ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है

भारत मे धर्म सम्प्रदाय व जाति के नाम पर समाज मे जो जहर घोला जा रहा है उसके पीछे अप्रत्यक्ष रूप से कुछ विदेशी एजेंसियां कार्य कर रही है । ऐसी विषम व विकट परिस्थितियों में स्नेह व सदभाव की प्रबल अवश्यकता है । वर्तमान परिस्तिथियों में पत्रकार अपने पत्रों में स्नहे व सदभाव बढ़ाने वाले समाचारों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ बनाने में सक्रीय भूमिका का निर्वाह कर सकते है । आज पंजाब व अन्य प्रांतों की समस्या केवल इन प्रान्तों की ही समस्या नही है यह तो सम्पूर्ण भारत की समस्या है अंगुली में दर्द होता है तो पूरे शरीर को कष्ट पहुचता है कोई भी धर्म अपने अनुयायो को यह शिक्षा नही देता है कि वह किसी अन्य धर्म की निंदा करे। धर्म का अर्थ परोपकार करना होता है । इसी में मानव कल्याण की भावना निहित होती है । दुखी आत्मा को केवल मानव समझकर सुख पहुचना ही श्रेष्ठ धर्म है । धर्म व राष्ट्र एक ही गाड़ी है जिसमे सभी धर्म सम्प्रदायो के श्रद्धालु एवं अनुयायी सवार होकर सम्पूर्ण देश का कल्याण कर सकते है ।

रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री" कर्त "सागर के बिखरे मोती"

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