Sunday 2 June 2019

"चिन्तनधारा" अघ्यात्म की और हो

*"चिन्तनधारा" अघ्यात्म की और हो*
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व्यक्ति का चिन्तन साकार नही होता, तब वह चिन्ता करने लग जाता है, जिससे अवसाद नामक बीमारी हो जाती है और शरीर घटने लगता है । चिन्ता व्यक्ति को मृत्यु के कगार पर ले जाती है ।
              हमारी चिन्तनधारा आध्यात्मिकता की और होनी चाहिए । व्यक्ति सांसारिक चिन्तन में लगा रहा तो उसकी ऊर्जा परिवार में ही सीमित रह कर समाप्त हो जाएगी । व्यक्ति का चिन्तन ऐसा हो जिससे खुद का तथा औरों का भी भला हो। *जिसे रामनाम की चिन्तामणी मिल जाती है, वह सांसारिक लोंगो से सीमित संपर्क ही रखता है।* हमारे मास्तिक्ष में अज्ञानता की गांठ पड़ी हुई है। *सतगुरु के ज्ञानरूपी चिन्तन से ही उस गांठ को खोला जा सकता है।*
             सतगुरु ही जीने की विधि बताते है । जीवन में सुख,दुख,हानि,लाभ का क्रम चलता ही रहता है । मनुष्य इस संकट से उभरना चाहता है , लेकिन वह उभर नही पा रहा है ।

*चिन्तन धारा*
*(रेण पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 आचार्य श्री हरिनारायण जी महाराज के प्रवचन)*

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